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अनुबन्ध की समाप्ति का अर्थ एंव विधियाँ

अनुबन्ध की समाप्ति का अर्थ एंव विधियाँ
अनुबन्ध की समाप्ति का अर्थ एंव विधियाँ

अनुबन्ध की समाप्ति से क्या आशय है? अथवा उन रीतियों का वर्णन कीजिए जिनमें अनुबन्ध समाप्त हो जाता है? 

अनुबन्ध की समाप्ति का अर्थ- किसी भी अनुबन्ध में दो पक्षकार होते हैं-‘वचनदाता’ और ‘वचनग्रहीता’। ये दोनों ही पक्षकार अनुबन्ध से सम्बन्धित अपने दायित्वों को पूर्ण करने के लिए बाध्य होते हैं। जब पक्षकारों के दायित्वों की समाप्ति हो जाती है तो कहा जाता है कि अनुबन्ध समाप्त हो गया। इस प्रकार अनुबन्धों के उन्मोचन से आशय, अनुबन्धों के निष्पादन अथवा आय विधि के अनुबन्धों की ऐसी समाप्ति है, जिसके द्वारा उनके पक्षकारों दायित्वों तथा कर्तव्यों एवं अधिकारों का अन्त हो जाता है। संक्षेप में, अनुबन्ध द्वारा पक्षकारों के बीच उत्पन्न उत्तरदायित्वों की समाप्ति ही अनुबन्धों की समाप्ति होती है।

अनुबन्ध समाप्ति की विभिन्न विधियाँ या रीतियाँ-

1. निष्पादन द्वारा – जिस अनुबन्ध के पक्षकारों के द्वारा अपने-अपने दायित्वों को पूरा करना; अनुबन्ध की समाप्ति का सबसे अच्छा और प्रमुख तरीका होता है। पक्षकारों के माध्यम से अपने दायित्वों की पूर्ति करना ही अनुबन्ध को निष्पादित करना होता है। यदि अनुबन्ध के दोनों पक्ष अनुबन्ध की शर्तों के नियमानुसार उनका निष्पादन करने में सफलता प्राप्त करते हैं तो उस अनुबन्ध की समाप्ति सम्भव हो जाती है। उदाहरण- राखी; सारिका का कम्प्यूटर 10,000 में क्रय करने का अनुबन्ध करती है। जब राखी द्वारा 10,000 रु. सारिका को दे दिया जाता है और सारिका के द्वारा राखी को कम्प्यूटर दे दिया जाता है; तब अनुबन्ध समाप्त हो जाता है; क्योंकि दोनों पक्षकार अपने-अपने दायित्वों को पूर्ण कर चुके हैं।

2. अनुबन्ध के भंग होने पर- जब अनुबन्ध से सम्बन्धित किसी भी पक्षकार के द्वारा अपने वचन के निष्पादन करने के लिए इनकार कर दिया जाता है तो वचनग्रहीता अनुबन्ध की समाप्ति उस समय तक कर सकता है; जब तक इनके विरुद्ध किसी प्रकार की कोई बात न हो अनुबन्ध का खण्डन दो आधारों पर किया जा सकता है; जो निम्नलिखित हैं-

(अ) वास्तविक अनुबन्ध खण्डन- अनुबन्ध का निष्पादन करने के लिए किसी निर्धारित किये गये समय से पहले अनुबन्ध का खण्डन करना वास्तविक अनुबन्ध खण्डन करना कहलाता है। उदाहरण– ‘शीला’ 23 सितम्बर 2011 को ‘महिमा’ को 4000 रुपये देने का समझौता करती है। निश्चित तिथि पर वह माल नहीं दे पाती है। 23 सितम्बर को अनुबन्ध भंग समझा जायेगा और ‘शीला’ को इसके परिणामों के लिए उत्तरदायी माना जायेगा।

(ब) प्रत्याशित अनुबन्ध खण्डन- अनुबन्ध का निष्पादन करने के लिए वचनदाता द्वारा निर्धारित समय से पहले परित्याग करना प्रत्याशित अनुबन्ध खण्डन कहलाता है। उदाहरण-‘सक्षम’ ‘सुरभि’ से विवाह करने का अनुबन्ध करता है परन्तु विवाह की निर्धारित तिथि से पहले कृतिका से विवाह कर लेता है। सक्षम ने इस प्रकार निष्पादन की तिथि से पहले ही अपने आचरण द्वारा अनुबन्ध का परित्याग कर दिया है। इस ही अनुबन्ध का प्रत्याशित खण्डन कहते है।

3. अनुबन्ध का त्याग या अधिकार का त्याग – प्रत्येक वचनग्रहीता पूर्ण रूप से अपने साथ किये गये वचन पूरे किये जाने का परित्याग कर सकता है या वचन के बदले में जिस प्रकार चाहे वह सन्तुष्टि स्वीकार कर सकता है। उदाहरण-‘अन्यास, अवन्तिका’ का 5000 रु. है का ऋणी है, अन्यास, अवन्तिका को पूर्ण ऋण के भुगतान में 3000 रु. देता है और अवन्तिका उसे स्वीकार कर लेती है। तब भुगतान पूर्ण हो जाता है उसी को अधिकार का त्याग कहते हैं।

4. समझौता और सन्तुष्टि- जब किसी नये अनुबन्ध के द्वारा ठहराव के किसी एक पक्षकार के द्वारा मूल अनुबन्ध के प्रतिफल के स्थान पर किसी अन्य प्रतिफल की प्राप्ति कर ली जाती है। तो दूसरा पक्षकार अपने दायित्व से पूर्णतः मुक्ति प्राप्त कर लेता है तो इस प्रकार की दशा में इसे अनुबन्ध का ठहराव सन्तुष्टि के साथ सम्पन्न होना कहते हैं। उदाहरण- हर्षिता, प्रियंका को 40,000 रुपये की देनदार है। हर्षिता, प्रियंका को 400 रुपये के स्थान पर 40000 रु. देने का वचन देती है; जिसे प्रियंका पूर्ण भुगतान में स्वीकार कर लेती है ऐसी दशा में मूल ऋण को देने का अनुबन्ध समाप्त हो जाता है।

5. असम्भवता के कारण- ऐसे ठहराव को व्यर्थ होने की मान्यता प्रदान है जिस ठहराव का निष्पादन करना आरम्भ से ही मुश्किल माना जाता है, ऐसी मान्यता धारा 56 के अनुसार प्रदान की गयी है। कभी-2 तो ऐसा भी सम्भव हो जाता है कि अनुबन्ध को स्थापित करते समय ठहराव इस प्रकार का होता है कि जिसकों पूर्ण करना सम्भव था; लेकिन निष्पादन की असम्भवता के कारण उसकी समाप्ति होना असम्भव था। उदाहरण-‘अंकिता’ रोहिणी से नेपाल से आयात किये गये माल को बेचने का अनुबन्ध करती है। यदि सरकार द्वारा आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये तो अंकिता के लिए अनुबन्ध का निष्पादन असम्भव हो जायेगा; जिसके कारण अनुबन्ध समाप्त माना जायेगा।

6. निष्पादन से मुक्ति या क्षमा द्वारा – यदि किसी दूसरे राजनियम के प्रभाव से निष्पादन को मुक्ति प्रदान कर दी जाती है; तो पक्षकार को निष्पादन की कोई आवश्यकता नहीं होती है, ऐसी स्थिति को निष्पादन की समाप्ति का कारण माना जाता है। उदाहरण- एक दिवालिया को अपने ऋणों का भुगतान करने से छुटकारा मिल जाता है।

7. अनुबन्ध के नवीनीकरण, परित्याग और परिवर्तन का प्रभाव- यदि उस अनुबन्ध के स्थान पर अनुबन्ध के पक्ष उसके परित्याग करने के लिए सहमत हो जाते हैं; तो मूल अनुबन्ध के निष्पादन की कोई और किसी भी प्रकार की आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरण ‘काजल’ को सपना के लिए 50000 रु. देने हैं। काजल और सपना के मध्य एक ठहराव हुआ है; जिसके द्वारा काजल 50000 रु. के बदले में अपनी चैन 25000 रु. में सपना के पास गिरवी रख देती है। यह एक नया अनुबन्ध है जो पुराने ऋण की समाप्ति कर देता है।

8. निष्पादन के प्रस्ताव को अस्वीकार करने पर- इस विधि के अनुसार यदि कोई वचनदाता वचन को पूर्ण करने का प्रस्ताव पेश करता है तथा वचन ग्रहण करने वाला व्यक्ति इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है; तो वचनदाता को उसके अपूर्ण होने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जायेगा और यह अनुबन्ध के अधीन होकर अपने अधिकारों को नहीं गंवाता है। ऐसा होने पर इस अनुबन्ध का अन्त होना सम्भव हो जाता है। इस मान्यता को धारा 36 के अन्तर्गत स्वीकृति प्रदान की गयी है।

9. सन्नियम के लागू होने पर – धारा 37 के आदेशानुसार इस अनुबन्ध का निष्पादन किसी अधिनियम की व्यवस्थाओं के अन्तर्गत मुक्त कर दिया गया है तो पक्षकारों को इस प्रकार का निष्पादन करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। उदाहरण- संविलियन होने पर, दिवालिया घोषित हो जाने पर, मृत्यु हो जाने पर, एक अनुबन्ध के परिवर्तन हो जाने पर।

10. वचनग्रहीता द्वारा वचनदाता को निष्पादन करने के लिए उचित सुविधायें न देने पर- जब किसी वचनग्रहीता द्वारा अपने वचन का निष्पादन करने के लिए वचनदाता को उचित निर्देश नहीं दिया जाता है तो इसके अभाव के फलस्वरूप वचनदाता अपने निष्पादन के दायित्व से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। उदाहरण ‘किशोर’ ‘राकेश’ से कुर्सियां बनाने का अनुबन्ध करता है किन्तु अनुबन्ध की निर्धारित शर्तों के अनुसार ‘किशोर’ ‘राकेश’ को कुर्सियों के लिए लकड़ी देने को कहता है। यदि किशोर लकड़ी नहीं देता है तो ‘राकेश’ कुर्सियों को बनाने के दायित्व से मुक्ति पा लेता है।

11. समय व्यतीत होने पर- कुछ परिस्थितियां ऐसी होती है जिसमें कानून समय सीमा के बाहर हो जाता है; इस कारण अनुबन्ध सफल नहीं हो पाता है। उदाहरण- परिसीमा अधिनियम के अनुसार तीन वर्ष बीतने पर एक ऋण समय सीमा पार कर दिया जाता है और यदि तीन वर्ष के अन्तर ऋण को वसूल करने के लिए मुकदमा नहीं चलता तो अनुबन्ध व्यर्थ हो जाता है और न्यायालय द्वारा उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है।

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Anjali Yadav

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