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अमृत राय की जीवनी – ‘प्रेमचन्द कलम का सिपाही’

अमृत राय की जीवनी - 'प्रेमचन्द कलम का सिपाही'
अमृत राय की जीवनी – ‘प्रेमचन्द कलम का सिपाही’
अमृत राय की जीवनी – ‘प्रेमचन्द कलम का सिपाही’ की विवेचना कीजिए।

अमृत राय की जीवनी- प्रेमचन्द कलम का सिपाही- अमृतराय की अपनी अमिट पहचान आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रगतिशील विचारधारा के पुरजोर हिमायती रचनाकार के रूप में है। प्रेमचन्द पर प्रकाशित महत्वपूर्ण जीवनियाँ- ‘प्रेमचन्द घर में’ शिवरानी देवी, ‘कलम का मजदूर’- मदन गोपाल एवं ‘प्रेमचन्द कलम का सिपाही’- अमृतराय में से अमृतराय द्वारा प्रस्तुत जीवनी ‘प्रेमचन्द कलम के सिपाही से आठवाँ अध्याय, प्रस्तुत संकलन में उद्धृत है। इसमें धनपतराय से प्रेमचन्द बनने तथा प्रेमचन्द के विचारों को प्रभावित करने वाली तत्कालीन राजनीतिक एवं साहित्यिक घटनायें उल्लिखित हैं, जिन्होंने प्रेमचन्द के विचारों को परिपक्वता देकर, एक नया तेवर प्रदान किया।

प्रस्तुत अंश में प्रेमचन्द द्वारा कानपुर के जिला स्कूल में अध्यापक के रूप में बिताए मई 1905 से जून 1909 तक के सवा चार वर्ष तथा सब डिप्टी-इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल के रूप में, हमीरपुर स्थानान्तरित होकर कुछ माह के प्रवास की चर्चा है। लेखक ने ‘जमाना’ पत्रिका में प्रकाशित लेखों के अंश तथा प्रेमचन्द के मित्र- मुंशी दयाराम निगम के संस्मरणों के द्वारा प्रेमचन्द के जीवन को नया मोड़ देने वाले तथ्यों एवं कथ्यों के आधार पर उनके राजनीतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक विचारों के साथ, प्रेमचन्द जी की चारित्रिक विशेषताओं को उद्घाटित करने का सफल उपक्रम किया है।

अमृतराय का मानना है कि राष्ट्रीयता की आवाज में सुर मिलाने के लिए, बालगंगाधर तिलक से प्रेमचन्द प्रभावित हुए थे। हालाँकि उन पर आर्य समाज का गहरा प्रभाव था। तिलक को अपना राजनीतिक गुरू मान लेने के पश्चात् भी प्रेमचन्द गोखले और रानाडे के ‘सोशल रिफोर्म’ से प्रभावित हुये और राजनीति का पहला पाठ गोखले से सीखा। आजादी के सन्दर्भ में ‘जमाना’ नवम्बर- दिसम्बर 1905 में उन्होंने लिखा- ‘आजादी हमेशा लड़कर ली जाती है, भीख माँगने से आजादी नहीं मिला करती। … कुर्बानी दरकार है उसके लिए। यह तो लड़ाई है बाकायदा। इसमें कहाँ का रहम और कहाँ की मुरौवत। सब बच्चों को बहलाने की बातें हैं। जिस दिन मुल्क कुर्बानी के रास्ते पर चल पड़ेगा आजादी रखी हुई है।

प्रेमचन्द का राजनीतिक झुकाव गरम दल की ओर था। 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फाँसी होने पर, क्रांतिकारी दल में प्रत्यक्ष रूप से शामिल न होने पर भी प्रेमचन्द का झुकाव विवेकानन्द, मैजिनी और गैरी बाल्डी की ओर हो गया। विवेकानन्द के हिन्दुत्व, देश सेवी, जनसेवी, स्वाधीनता प्रेमी एवं समाज सुधारक के व्यक्तित्व से प्रेमचन्द प्रभावित हुये। मैजिनी के जीवन द्वारा इटली के निवासियों के प्रेरित करने के तथ्य को प्रेमचन्द ने नवाब राय के नाम अप्रैल 1908 में ‘इश्के दुनिया और हुब्बे वतन’ के नाम से कहानी लिखकर प्रस्तुत किया तथा जुलाई 1907 में गैरीबाल्डी का एक छोटा सा जीवन चरित्र उन्होंने ‘जमाना’ में लिखा। राष्ट्रीयता से सरोबार प्रेमचन्द ने 1907 में ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ कहानी लिखी। वास्तव में प्रेमचन्द के स्वर में क्रांतिकारी चेतना का अंकुर इन सभी से प्रभावित हुआ। स्वदेश सेवा के लिए उनका मानना था कि “ऊँचा हौंसला, फौलाद की दृढ़ता, दिन-रात मरने पिसने का अभ्यास और हर समय जान हथेली पर लिये रहने की जरूरत है। जब तक ये गुण अपने स्वभाव में न समा जाएं, स्वदेश सेवा का व्रत जबानी ढकोसला है।” (इसी कथांश से)

साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचन्द जी सरशार से प्रभावित थे। प्रेमचन्द जी की दृष्टि में जमाने की सच्ची तस्वीरें और सांस्कृतिक जीवन का प्रतिपादन उपन्यास की कसौटी है। सामाजिक रोगों के निराकरण के लिए लेखक को दिल्लगी (सम्भवतः व्यंग्य) अधिक प्रभावी होता है। उनका मानना है कि रोजमर्रा की जिन्दगी के कथ्य अधिक प्रभावी होते हैं। पात्र जीते-जागते, सहज प्रक्रिया सम्पादित करने वाले होने चाहिए। यह सभी विचार प्रेमचन्द जी ने चकबस्त द्वारा तत्कालीन उर्दू कथाकार शरर और सरशार के साहित्य की गुण-दोष के आधार पर आलोचना करने पर सरशार के पक्ष में लिखे। गोरखपुर के हकीम बरहम ने शरर का पक्ष लेकर सरशार पर आरोप लगाये थे, उन्हीं आरोपों के जवाब में प्रेमचन्द जी ने यह कसौटियाँ एवं विशेषतायें गिनायी थी।

“प्रेमचन्द जी जीवन में अच्छे मनुष्य के अन्दर सदाचार, समय का सदुपयोग, तटस्थता, धन का उचित बंटवारा, वीरता, प्रजा के सुख-दुख का ध्यान एवं स्त्री के सतीत्व की रक्षा करने वाले गुणों को महत्व देते हैं। यह निष्कर्ष उन्होंने ‘विदुर नीति’ की समालोचना करते हुये स्पष्ट किये। फुटकर लेखों के अतिरिक्त रूठी रानी (अप्रैल 1907) तथा ‘किशना’ उपन्यास ‘जमाना’ में धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुए।

हमीरपुर प्रवास के दौरान सरकारी स्कूलों एवं अध्यापकों की जो दुर्दशा प्रेमचन्द जी ने देखी और लिखी, वह आज भी यथावत दिखाई पड़ती है।

जीवनी के प्रस्तुत अंश में प्रेमचन्द के व्यक्तित्व समझने में भी सहायता मिलती है। प्रेमचन्द अत्यन्त सहज, सरल, मिलनसार, ईमानदार, पर्यटन के शौकीन, लोक संस्कृति के प्रति आग्रहशील एवं उदार व्यक्तित्व के धनी थे।

इसी कथांश से ज्ञात होता है कि हमीरपुर में कार्य करते समय ‘सोजे वतन’ पर सरकार की निगाह पड़ी और उसकी प्रतियाँ जब्त कर जला दी गयीं। बड़ी कठिनाई से नौकरी बची। चूँकि ‘सोजे वतन’ की रचना उन्होंने नवाब राय के नाम से की थी, अतः अपने लेखन को गतिशील रखने के लिए उन्होंने मुंशी दयानारायण निगम की सलाह पर उन्होंने प्रेमचन्द के नाम से छपने वाली उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ सामने आयी।

इस कथांश में धनपत राय/नवाब राय से प्रेमचन्द बनने उनके विचारों में आदर्शवादी यथार्थ के स्वरूप के पीछे उत्तरदायी तथ्य उभर कर आये हैं।

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Anjali Yadav

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