अर्थशास्त्र का भूगोल के साथ सहसम्बन्ध बताइये ।
अर्थशास्त्र तथा भूगोल- व्यापक दृष्टि से अर्थशास्त्र प्राकृतिक साधनों के उचित उपयोग का अध्ययन है। मनुष्य की कुछ आवश्यकताएँ होती हैं। इनकी पूर्ति के लिए वह प्राकृतिक साधनों की ओर देखता है, उन्हें उपलब्ध करता है ततपश्चात् उनका वितरण विनिमय और अन्त में उपभोग करता है इस प्रकार मनुष्य की आवश्यकताएँ मनुष्य तथा प्राकृतिक साधनों को एक सूत्र में बाँध देती है। प्राकृतिक साधनों द्वारा मनुष्य की जो आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं वे केवल भौतिक आवश्यकताएँ हैं, परन्तु मनुष्य की कुछ और आवश्यकताएँ भी हैं, जैसे सरकार, राज्य, शिक्षा, विज्ञान तथा कला आदि। आर्थिक साधन हमारी दोनों भौतिक तथा उच्च आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, अतः अर्थशास्त्र एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण सामाजिक विज्ञान है।
अर्थशास्त्र एवं भूगोल का सामान्य दृष्टि से घनिष्ठ सम्बन्ध वहाँ हो जाता है, जहाँ भौतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण के अंग आर्थिक साधन बन जाते हैं। उदाहरणार्थ न्याग्रा जल प्रपात उस समय तक केवल प्राकृतिक सौन्दर्य का ही दृश्य था जब तक उससे जलविद्युत का निर्माण नहीं किया गया था, जैसे ही इससे औद्योगिक शक्ति उत्पन्न हो जाने लगी, वह एक आर्थिक साधन बन गया। वातावरण के जो अंग आर्थिक महत्व नहीं रखते हैं, अर्थशास्त्र में उनका महत्व नहीं होता। यह आर्थिक साधन जो अर्थशास्त्र के अध्ययन के विषय हैं, भूगोलवेत्ताओं के लिए भी उतने ही महत्वपूर्ण विषय हैं और इनका अध्ययन विशेष रूप से आर्थिक तथा वाणिज्यिक भूगोल में किया जाता है। आर्थिक भूगोल का अध्ययन हमें बताता है कि हमारे कौन-कौन से आर्थिक साधन हैं, वे किस प्रकार प्राकृतिक वातावरण से प्रभावित होते हैं, किस प्रकार हम इन प्राकृतिक साधनों को प्राप्त कर सकते हैं, किस प्रकार इन्हें संरक्षण प्रदान कर सकते हैं तथा किस प्रकार उनका उचित उपभोग कर सकते हैं।
आर्थिक कार्य जो अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आते हैं, वे सभी अवस्थाओं में भौगोलिक वातावरण के अंगों को प्रभावित होते रहते हैं। स्पष्ट है कि भूगोल तथा अर्थशास्त्र का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
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