उद्देश्यों के अनुरूप शिक्षण किस प्रकार दिया जाता है ? समझाइये।
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उद्देश्य के अनुरूप शिक्षण
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए शिक्षक कक्षा में सस्वर वाचन तथा मौन वाचन के अवसर प्रदान करता है और वाचन के समय छात्रों की अशुद्धियों को सुधारता है। वह लिखने का अभ्यास कराता है और श्यामपट पर स्वयं सुडौल अक्षर लिखकर छात्रों के समक्ष उपर्युक्त आदर्श प्रस्तुत करता है। भाषा तथा शैली में सुधार लाने के लिए वह विभिन्न प्रकार के रचना-कार्यों को अपनाता है। कक्षा में प्रश्न और उत्तर की प्रणाली को अपनाकर छात्रों की बोध-शक्ति की परीक्षा करता चलता है और छात्रों को अभिव्यक्त के अवसर प्रदान करता चलता है। काव्य-शिक्षण में स्वयं रस लेता है और छात्रों को सस्वर कविता पाठ द्वारा आनन्दानुभूति के लिए प्रेरित करता है। समय-समय पर वह गृह-कार्य भी देता है, जिससे छात्र पढ़ी हुई सामग्री का प्रयोग करना सीख जाएँ। रचना-कार्य, गृह कार्य तथा अन्य लिखित कार्य को वह संशोधित भी करता है, जिससे छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों को वह सुधार सके ।
पाठ्यक्रम के ज्ञान की आवश्यकता
विभिन्न स्तरों पर निर्दिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कक्षा में जो कुछ क्रियाएँ की जाती हैं, उनके निमित्त कुछ आधार चाहिए। यह आधार पाठ्यक्रम के रूप में मिलता है। पाठ्यक्रम शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति का एक प्रभावी साधन है। इसके अन्तर्गत विद्यालय के समस्त कार्यकलाप आ जाते हैं। मातृभाषा-शिक्षण के सम्बन्ध में जब तक अध्यापक प्रत्येक स्तर के पाठ्यक्रम की परिधि से परिचित नहीं होगा, तब तक वह मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करने में छात्र की सहायता नहीं कर पाएगा।
किसी भी कक्षा का पाठ्यक्रम निर्धारित करने के पूर्व बालक की पूर्व अर्जित जानकारी एवं अनुभवों को जानना आवश्यक है। पाठ्यक्रम पूर्व जानकारी पर आधारित होना चाहिए।
शिक्षा पाठ्यक्रम पर ही अवलम्बित होती है। बालक की आयु, योग्यता और रुचि के अनुसार यह देखना होगा कि बालक कितना जान सकने योग्य है। बच्चों की अवस्था, योग्यता और रुचि के अनुसार संगटित किया हुआ पाठ्यक्रम सदा बालकों को उन्नति की ओर अग्रसर करेगा। पाठ्यक्रम बालक की उन्नति की एक सीढ़ी है। अतः पाठ्यक्रम में क्रमबद्धता भी होनी चाहिए।
पाठ्यक्रम का क्षेत्र एवं पाठ्य-वस्तु
कक्षा 1
कहानी- छात्रों को छोटी-छोटी कहानी सुनाना और उन्हें भी सुनाने के लिए प्रेरित करना ।
मौखिक भाव-प्रकाशन- छात्रों के घर के विषय में मौखिक वार्तालाप। उनके खिलौनों के विषय में बातचीत।
पढ़ना- वर्णमाला के सभी अक्षरों का ज्ञान स्वर-व्यंजन का ज्ञान। अक्षर को मिलाकर पढ़ना। साधारण वाक्यों को पढ़ना। सरल शब्दों का अर्थ समझना। शब्दों तथा वाक्यों को शुद्ध-शुद्ध पढ़ना।
कविता-पाठ – बालगीतों को याद करना तथा जोर-जोर से लय के साथ पढ़ने का अभ्यास कविता-पाठ में संकोच का त्याग।
लिखना – देवनगागरी लिपि के सभी वर्गों को शुद्ध लिखना। संयुक्ताक्षर लिखना। छोटे वाक्यों को देख-देखकर लिखना।
कक्षा 2
मौखिक भाव-प्रकाशन– घर और विद्यालय के सम्बन्ध में बातचीत। पशुओं एवं पक्षियों के विषय में साधारण वार्तालाप ।
कहानी- छोटी कहानी का सुनना और कहना।
पढ़ना- वाक्यों को बिना रुके पढ़ना। शब्दों तथा वाक्यों का अर्थ जानना, पढ़े हुए अनुच्छेद की मुख्य बात को बता सकना उच्चारण को शुद्ध करना।
सस्वर कविता-पाठ- पाठ्य-पुस्तक की कुछ कविनाओं को याद करना तथा उनका लय युक्त पाठ करना।
लिखना- शुद्ध-शुद्ध लिखने के लिए प्रयत्न सुलेख, अनुलेख, प्रतिलेखन तथा श्रुतिलेख का प्रारम्भ
कक्षा 3
मौखिक भाव-प्रकाशन- अपने अंग, कपड़े, अपनी कक्षा, कृषि बागवानी तथा नित्य घटने वाली जीवन की घटनाओं से सम्बन्धित विचारों को सरल भाषा में कह सकना ।
कहानियाँ- कहानियाँ कहना तथा दूसरे से सुनी कहानी को दुहरा लेना।
पद्म – स्वीकृत पुस्तकों से उचित पद्यों को लयपूर्वक पढ़ना। कुछ कविताएँ कण्ठस्थ भी कर लेना।
पढ़ना- पाठ्य पुस्तक को सही-सही स्पष्ट उच्चारण करते हुए पढ़ना। शब्दों के अर्थ बताना। पढ़े गये अंश पर पूछे प्रश्नों का उत्तर देना।
लिखना- श्रुतलेख लिखना। सरल वाक्यों को क्रम से लिखना। सरल विषय सम्बन्धी कुछ वाक्य लिखाये जा सकते हैं।
अभिनय करना – उचित वार्तालाप एवं छोटे-छोटे विषयों पर अभिनय करना।
व्याकरण- उद्देश्य, विधेय छाँटना, वाक्य की बनावट पर साधारण ध्यान दिया जा सकता है। संज्ञा का ज्ञान हो जाय।
कक्षा 4
मौखिक भाव-प्रकाशन – कक्षा 3 की भाँति। मुहावरों का कुछ प्रयोग हो।
पढ़ना- भावों को स्पष्ट करने एवं समझने का ध्यान भी रखते हुए पाठ्य पुस्तक पढ़ना। कठिन भागों पर मौन पाठ का अभ्यास होना तथा पाठ्य पुस्तक के आधार पर पूछे गए प्रश्नों का उचित भाषा में उत्तर देना।
लिखना- सुलेख एवं श्रुतलेख पत्रों, वर्णनों तथा कहानियों को लिखना। खेती के बारे में विशेष ध्यान-सहित वर्णन ज्ञान का होना।
कविता-पाठ – कक्षा 3 की भाँति ।
अभिनय- साधारण वाद-विवाद में भाग लेना।
व्याकरण- कक्षा 3 की भाँति संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, अव्यय का सामान्य ज्ञान होना।
टिप्पणी- मौन वाचन की सहायता से छात्रों की विचार-शक्ति को बढ़ाने का अभ्यास करना चाहिए।
कक्षा 5
मौखिक भाव-प्रकाशन कक्षा 3 तथा 4 के कार्यों का कुछ विस्तार के साथ, सरल, मुहावरेदार भाषा में अपने विचारों को स्पष्ट करने की योग्यता पैदा करना विचार कथन में वास्तविकता एवं प्रवाह पर विशेष ध्यान रखना।
पढ़ना- स्पष्ट उच्चारण, शुद्धतापूर्वक शब्द-समूह, वाक्य एवं वाक्यांशों पर ध्यान रखते हुए पाठ्य पुस्तक से पढ़ना। भाव के अनुसार अभिनय तथा आरोह अवरोह पर ध्यान रखना। मौन पाठ को सफल बनाने का पूर्ण अभ्यास करना, जिससे पठित वस्तु सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर मिल सकें।
लिखना—
- सुलेख तथा श्रुतलेख लिखना।
- साधारण व्यवसाय तथा कृषि सम्बन्धी पत्र लिखना।
- गद्य, पद्य तथा वर्णनात्मक विषयों पर मौलिक विचार प्रकट करना।
पद्य पाठ- सस्वर तथा अभिनय के साथ कविता पाठ करना। वर्तमान काल के चरणों को कंठाग्र करने का अधिक ध्यान रखना।
अभिनय- सम्भाषण। उपर्युक्त खेलों का उचित अभिनय।
वार्तालाप- वाद-विवाद में भाग लेने योग्य छात्रों को बनाना।
व्याकरण-
- संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण का कार्य, सर्वनाम के वचन तथा लिंग।
- सरल वाक्यों का कर्त्ता तथा कर्म ज्ञात करना एवं पूर्वाभ्यास ।
कक्षा 6
मौखिक रचना – कहानी कहना। बाल-जीवन-सम्बन्धी बातचीत। वास्तविकता, स्वतन्त्र भाव-प्रकाशन तथा प्रवाह पर विशेष ध्यान रखना।
पढ़ना – (1) पाठ्य-पुस्तक को स्पष्ट तथा शुद्ध उच्चारण और उचित विरामों के साथ पढ़ना। (2) भावाभिनय एवं हाव-भाव का समुचित ध्यान रखना (3) समय के साथ मौन पाठ करना।
लिखना तथा रचना – (1) श्रुतलेख, (2) सुलेख, (3) साधारण एवं व्यापारिक पत्र, (4) गद्य एवं पद्य (तुकबन्दी) में मौलिक रचना करना। बच्चों को अपने ढंग से घटनाओं के वर्णन करने के लिए उत्साहित करना। कहानियों को फिर से कहना।
कविता पाठ और आदर्श पाठ- (1) लय तथा ध्वनिपूर्वक कविताओं का सस्वर पाठ, (2) छोटी-छोटी कविताओं को अधिक मात्रा में कण्ठस्थ करना, (3) छोटे-छोटे गद्य अवतरण।
अभिनय-सम्भाषण तथा उचित नैतिक खेलों का नाटक करना।
व्याकरण–संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के भेद तथा उनकी पद-व्याख्या से परिचय। कारकों का बोध, वाक्य-विन्यास प्रारम्भ करना।
टिप्पणी-जहाँ तक सम्भव हो, व्याकरण भाषा की पुस्तक के साथ पढ़ाया जाय।
कक्षा 7
मौलिक तथा स्वतन्त्र भाव-प्रकाशन – कहानी कहना। स्पष्ट तथा शुद्ध भाव-प्रकाशन और प्रवाह पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।
पढ़ना-1. पाठ्य पुस्तक- शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चारण तथा शब्द-समूह का ध्यान रखते हुए पढ़ना। कठिन स्थलों को समझना तथा भावार्थ कहना। गद्य-पाठों का आनन्द लेना। समझने और संक्षेप करने की परीक्षा करना। (2) सहायक पुस्तक— सहायक पुस्तकों का अधिक-से-अधिक प्रयोग करने की रुचि को बढ़ावा देना।
रचना- लम्बे वर्णनात्मक तथा साधारण कल्पना सम्बन्धी निबन्ध लिखना। कहानियों के छोटे-छोटे कथानक बनाना। साधारण लयपूर्ण तुकन्दी करना। अधिक योग्यता के पत्र लिखना।
गद्य-पाठ- लम्बे-लम्बे अवतरणों तथा छोटे-छोटे व्याख्यानों का पढ़ना। सौ के लगभग सरल तथा मधुर चरण कण्ठस्थ कर लेना और उनका उचित स्वर एवं अभिनय के साथ सस्वर वाचन कर सकना ।
व्याकरण- उद्देश्य विधेय को बढ़ाकर वाक्य-विश्लेषण में बदल देना। भाषा के सभी अंगों का सम्यक् ज्ञान।
टिप्पणी– जहाँ तक सम्भव हो, व्याकरण भाषा पुस्तक के साथ-साथ पढ़ाया जाए।
कक्षा 8
मौखिक तथा स्वतन्त्र भाव-प्रकाशन- विचारों को व्यक्त करने वाली भाषा व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध उच्चारण में स्पष्ट तथा सरसता की ओर झुकी हुई हो।
पढ़ना—
- पाठ्य-पुस्तक उच्चारण शुद्ध, स्पष्ट तथा पुस्तक पर बिना दृष्टि जमाये रखे प्रवाहयुक्त पठन हो। पाठ के साथ छात्र समझता और आनन्द लेता चले।
- सहायक पुस्तक-सहायक पुस्तकों को पढ़ने, उनके केन्द्रीय विचारों को स्पष्ट समझने की क्षमता आ जाए।
- मौन वाचन से पूर्ण लाभ उठाने का अभ्यास हो जाए।
रचना- वर्णनात्मक तथा कल्पनात्मक विषयों पर विचार प्रकट करने की क्षमता हो जाए। भाषा सुदृढ़ एवं सरस हो । साधारण पद्य-रचना तथा प्रमुख छन्दों का ज्ञान हो जाए।
पद्य-पाठ – कविता को साभिनय तथा समुचित आरोह अवरोह से पठन का अभ्यास होना चाहिए। सवा-सौ चरण कण्ठस्थ होने चाहिएँ।
व्याकरण- कारकों तथा भाषा के सभी अंगों का सम्यक ज्ञान हो। इनके प्रयोग का अभ्यास हो। वाक्य-विश्लेषण एवं संश्लेषण का पूर्व ज्ञान हो। कुछ अलंकारों का ज्ञान हो।
टिप्पणी- जहाँ तक सम्भव हो, व्याकरण को भाषा की पुस्तक के साथ पढ़ाया जाए।
कक्षा 9, 10, 11 व 12
मौखिक तथा स्वतन्त्र भाव-प्रकाशन- इस स्तर पर छात्रों में यह योग्यता आ जानी चाहिए कि वे शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चारण कर सकें, व्याकरणिक दृष्टि से शुद्ध भाषा का प्रयोग कर सकें तथा प्रभावोत्पादक तथा रुचिकर भाषा व शैली में अपने विचारों को व्यक्त कर सकें।
पढ़ना- स्पष्ट, प्रभावी एवं विराम तथा लय का ध्यान रखते हुए सस्वर वाचन करना। वाचन के साथ-साथ अर्थ ग्रहण करना। पठित सामग्री पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना । केन्द्रीय भाव को ग्रहण करना। मौन वाचन का अधिक विकास करना। गति तथा अर्थ ग्रहण का विकास करना। नाटक को पात्रानुसार प्रभावी ढंग से पढ़ना। पाठ्य पुस्तक के अतिरिक्त हिन्दी के कुछ अन्य गौरव ग्रन्थों को पढ़ना।
रचना – वर्णनात्मक विचारात्मक, कल्पनात्मक निबन्धों की रचना करना सभी प्रकार के पत्र लिखना। विज्ञापन लिखना। समाचार भेजने के लिए प्रारूप तैयार करना सभी प्रकार के आवेदन पत्र लिखना। साधारण पत्र-रचना करना। नाटक के लिए संवाद लिखना। किसी अवसर के लिए भाषण तैयार करना।
व्याकरण – रूप, रचना, काव्य रचना, अनुच्छेद रचना, पद-विश्लेषण, वाक्य विश्लेषण, छन्द, रस और अलंकार का ज्ञान प्राप्त करना ।
समीक्षा- साहित्य की समीक्षा करने के सामान्य सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त करना शब्दालंकार, अर्थालंकार, गुण, शब्द-शक्ति, रस-योजना एवं मात्राओं का ज्ञान भाषा की प्रकृति का विश्लेषण करना। उपभाषाओं की प्रकृति का ज्ञान प्राप्त करना। विभिन्न शैलियों से परिचित होना। हिन्दी साहित्य के इतिहास की सामान्य रूपरेखा से परिचय नाटक, कहानी, निबन्ध, गद्यकाव्य, काव्य तथा साहित्य की अन्य आधुनिक विधाओं तथा इण्टरव्यू, रिपोर्ताज, संस्मरण के विकास से परिचय। कथानकों तथा घटनाओं की तुलना करना पात्रों का चरित्र चित्रण करना। कथनोपकथन का मूल्यांकन करना।
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