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एक एजेन्ट के अपने नियोक्ता के प्रति अधिकार और कर्तव्य

एक एजेन्ट के अपने नियोक्ता के प्रति अधिकार और कर्तव्य
एक एजेन्ट के अपने नियोक्ता के प्रति अधिकार और कर्तव्य

एक एजेन्ट के अपने नियोक्ता के प्रति अधिकार और कर्तव्य समझाइए। 

एजेन्ट के नियोक्ता के प्रति कर्तव्य

(1) नियोक्ता के आदेशों का पालन करना- एजेन्ट को व्यापार का संचालन नियोक्ता (प्रधान) के आदेशानुसार करना चाहिए। किसी भी दशा में एजेन्ट की नियोक्ता की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा न करने से यदि नियोक्ता को कोई हानि होगी तो उसका दायित्व एजेन्ट का होगा, यदि लाभ होगा तो उसका अधिकारी नियोक्ता ही होगा।

(2) प्रथानुसार कार्य करना- यदि नियोक्ता ने एजेन्ट को कोई स्पष्ट अथवा गर्भित आदेश प्रदान नहीं किया है तो एजेन्ट को उस व्यापार में साधारण प्रथा के अनुसार कार्य करना चाहिए। ऐसा न करने पर नियोक्ता को कुछ क्षति उठानी पड़ती है इसका उत्तरदायित्व एजेन्ट पर ही होगा।

(3) नियोक्ता को सूचित करना- किसी भी कठिनाई की दशा में एजेन्ट का यह कर्तव्य है कि वह नियोक्ता की इनकी सूचना दे तथा आदेश प्राप्त करने में यथोचित साधनों का प्रयोग करे। यदि उसे नियोक्ता को सूचना देने का अवसर प्राप्त न हो तो ऐसी दशा में वह सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति के समान सावधानी बरतने की स्थिति में निर्दोष माना जायेगा।

(4) चतुरायी एवं परिश्रम से कार्य करना- एजेन्ट को एजेन्सी व्यवसाय इतनी चतुराई के साथ अवश्य संचालित करना चाहिए जितनी कि समान व्यापार में लगे हुए व्यक्ति साधारणतया रखते हैं। एजेन्ट उपेक्षा, चतुराई की कमी अथवा दुराचार के प्रत्यक्ष परिणामों के सम्बन्ध में प्रधान की क्षतिपूर्ति करने के लिए सदैव बाध्य होता है। वह अपेक्षाकृत चुतराई की कमी अथवा दुराचरण से उत्पन्न होने वाली परोक्ष रूप में क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं होता।

(5) हिसाब रखना तथा उसे प्रस्तुत करना – नियोक्ता द्वारा हिसाब-किताब मांगे जाने पर एजेन्ट उचित हिसाब-किताब देने के लिए बाध्य है अत: एजेन्ट को प्रत्येक व्यवहार का ठीक-ठीक हिसाब रखना चाहिए। जब नियोक्ता हिसाब देखना चाहे तो उसे हिसाब दिखाने के लिए तैयार रखना चाहिए। हिसाब देने में देर करने पर वह ब्याज तथा दूसरे व्यय देने के लिए उत्तरदायी होता है।

(6) नियोक्ता के लिए प्राप्त धन नियोक्ता को वापस करना- एजेन्ट चाहिए कि एजेन्सी के लिए किये व्यय तथा अपना पारिश्रमिक काटकर शेष राशि जो उसने नियोक्ता के लिए प्राप्त की है, नियोक्ता को सुपुर्द कर दे।

(7) अपने नाम में व्यवहार न करना- एजेन्ट को अपने नियोक्ता की सहमति के बिना एवं ज्ञात समस्त महत्वपूर्ण परिस्थितियों की जानकारी नियोक्ता को दिये बिना, एजेन्सी के व्यवहारों में अपने स्वयं के हिसाब से अथवा नाम से व्यापार नहीं करना चाहिए। यदि वह ऐसा करना चाहता है तो उसे अपने नियोक्ता को सभी बातें बता देनी चाहिए तथा उसकी स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए।

(8) अधिकार का भारार्पण न करना- कुछ अपवादों को छोड़कर एजेन्ट की एजेन्सी का कार्य स्वयं करना चाहिए। कुछ अपवादों के अतिरिक्त उसे किसी भी दशा में अपने लिए प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकारी नहीं है।

नियोक्ता (प्रधान) के विरुद्ध एजेन्ट के अधिकार

नियोक्ता (प्रधान) के विरुद्ध एजेन्ट को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं-

(1) एजेन्सी कार्य पर किये गये व्यय प्राप्त करने का अधिकार- यदि एजेन्ट ने एजेन्सी कार्य हेतु अग्रिम रुपया दिया है अथवा व्यापार का संचालन करने में धन व्यय किया है तो एजेन्सी के व्यापार से प्राप्त धन में से वह उपयुक्त राशि रोक सकता है। धारा 217 के अनुसार, एक एजेन्ट प्रधान की ओर से एजेन्सी व्यवसाय में प्राप्त राशियों में से अपने लिए देय समस्त धन, जो कि उसमें व्यय किये है, रोक सकता है तथा एजेन्ट के रूप में कार्य करने हेतु देय पारिश्रमिक के लिए भी धन रोक सकता है।

(2) पारिश्रमिक पाने का अधिकार- एजेन्ट एजेन्सी कार्य करने के लिए पूर्व निर्धारित पारिश्रमिक पाने का अधिकारी है बशर्ते कि उसने बिना प्रतिफल के काम करने की प्रतिज्ञा न की हो। धारा 219 के अनुसार, किसी विशिष्ट अनुबन्ध के अभाव में किसी कार्य के निष्पादन के लिए अभिकर्ता को भुगतान तब तक देय नहीं होता जब तक कि ऐसा कार्य पूर्ण न हो जाएं परन्तु एजेन्ट बेचे गये माल से प्राप्त राशि को रोक सकता है चाहे उसे प्रेषित सम्पूर्ण माल की बिक्री न की हो, चाहे बिक्री वास्तव में न हुई हो। किन्तु जहाँ एजेन्ट दुर्व्यवहार का भी दोषी है, वह व्यवसाय के उस भाग से सम्बन्धित पारिश्रमिक पाने का अधिकारी नहीं होगा जिसके लिए उसने दुराचरण किया है।

(3) क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार- इस सम्बन्ध में भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 में निम्नलिखित व्यवस्थायें हैं-

(अ) एजेन्ट को अपने प्राप्त अधिकारों का प्रयोग करते समय वैधानिक कार्य करने के फलस्वरूप यदि किसी प्रकार की क्षति होती हैं तो उसकी पूर्ति करने के लिए उसका नियोक्ता बाध्य है।

(ब) जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कोई कार्य करने के लिए नियुक्त करता है ऐसे कार्य के फलस्वरूप उस व्यक्ति (एजेन्ट) को होने वाली क्षति की पूर्ति करने के लिए नियोक्ता उत्तरदायी है।

(स) एजेन्ट को प्रधान से उसकी अपेक्षा अथवा चतुराई के अभाव के कारण पहुँची हुई क्षति की पूर्ति कराने का अधिकार है परन्तु यदि क्षति एजेन्ट की स्वयं की उपेक्षा अथवा चतुराई के प्रभाव के कारण हुई है तो नियोक्ता ऐसी क्षति की पूर्ति करने के लिए बाध्य नहीं है।

(4) पूर्वाधिकार- एजेन्ट किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में नियोक्ता के माल, कागजात, दूसरी चल अथवा अचल सम्पत्तियों को उस समय तक रोक रखने का अधिकार है। जब तक उसे उनके सम्बन्ध में किये गये व्ययों, सेवाओं और कमीशन का भुगतान न कर दिया जाय।

(5) माल को मार्ग में रोकने का अधिकार- माल को मार्ग में रोकने का अधिकार एजेन्ट को निम्न वर्णित दो दशाओं में प्राप्त है-

  1. यदि उसने नियोक्ता के लिए अपने रुपये से माल खरीदा है।
  2. यदि उसने अपनी जमानत पर ही माल खरीदा है।

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Anjali Yadav

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