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कपट से आप क्या समझते हैं? इसके लक्षण एंव प्रभाव

कपट से आप क्या समझते हैं? इसके लक्षण एंव प्रभाव
कपट से आप क्या समझते हैं? इसके लक्षण एंव प्रभाव
कपट से आप क्या समझते हैं? इसके लक्षण क्या हैं तथा अनुबन्ध की वैद्यता पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?

कपट का अर्थ एवं परिभाषा – भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 17 के अनुसार जब अनुबन्ध का एक पक्षकार या उसका अभिकर्ता या उससे मिलकर अन्य कोई व्यक्ति दूसरे पक्षकार अथवा उसका अभिकर्ता को धोखा देने के उद्देश्य से या अनुबन्ध में प्रवेश कराने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से निम्नलिखित में से कोई कार्य करता है तो उसे कपट कहते हैं-

  1. किसी असत्य तथ्य का सुझाव देना जिसके सत्य होने का उसे स्वयं विश्वास नहीं है।
  2. किसी तथ्य को जान-बूझकर छिपाना जिसका उसे वास्तविक ज्ञान एवं विश्वास है।
  3. पूरा न करने की भावना से वचन देना।
  4. अन्य कोई कार्य करना जिसे धोखा कहा जा सकता है।
  5. कोई भी कार्य अथवा भूल जिसे राजनियम विशेष रूप से कपटपूर्ण घोषित करता है।

उदाहरण- A एक जूता B को बेचता है तथा कहता है कि वह कॉफी लेदर का है, जबकि वह स्वयं जानता है कि जूता साधारण चमड़े का है।

कपट के लक्षण

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की उपर्युक्त धारा के आधार पर कपट में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं-

1. कपट पक्षकार, अभिकर्ता अथवा उसकी साँठ-गाँठ द्वारा होता है – अनबुन्ध के लिए पूर्णतया अपरिचित व्यक्ति कपट से प्रेरित होकर यदि किसी अनुबन्ध में पक्षकार बनता है, तो अनुबन्ध की वैधता अप्रभावित रहेगी। पीड़ित पक्षकार को केवल अनुबन्ध समाप्त करने का अधिकार उसी समय प्राप्त होगा, जबकि कपट अनुबन्ध के किसी पक्षकार द्वारा अथवा उसकी साँठ-गाँठ से या उसके अभिकर्ता द्वारा किया गया है।

2. कपट में निम्नांकित कार्य सम्मिलित होते हैं-

(i) असत्य तथ्य का सुझाव- यदि कोई असत्य तथ्य बताता है अथवा कोई ऐसा बात बताता है जिसके सत्य होने का उसे खुद कोई विश्वास नहीं है तो वह कपट के लिए दोषी होगा। जैसे A एक जूता B को बेचता है तथा कहता है कि वह कॉफी लेदर का है, जबकि वह स्वयं जानता है कि जूता साधारण चमड़े का है।

(ii) जान-बूझकर तथ्य को छुपाना- यदि कोई व्यक्ति अनुबन्ध में ऐसे तथ्य को जान-बूझकर छुपा लेता है जिसे बताना उसका कर्तव्य था तो वह कपट या दोषी नहीं माना जायेगा। “वस्तु-विक्रय अनुबन्ध में यह नियम वर्णित है कि वस्तु के क्रय करते समय वस्तु के गुण, मात्रा, मूल्य आदि के सम्बन्ध में क्रेता को स्वयं सावधान रहना चाहिए। यदि कोई क्रेता खराब वस्तु भी खरीद लेता है, तो उसके लिए विक्रेता का कोई दोष नहीं होता, क्योंकि विक्रेता का यह कर्तव्य नहीं है कि वह क्रेता को अपनी वस्तु के सभी साधारण दोष प्रकट करे।

(iii) निष्पादन न करने की भावना से वचन देना- भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अतिरिक्त अन्य किसी राजनियम द्वारा स्पष्ट रूप से कपट घोषित किये गये कार्यों अथवा भूलों को भी यह अधिनियम कपट ही मानता है।

(iv) राजनियम द्वारा विशेष रूप से कपट घोषित हुए कार्य या भूल- भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अतिरिक्त अन्य किसी राजनियम द्वारा स्पष्ट रूप से कपट घोषित किये गये कार्यों अथवा भूलों को भी यह अधिनियम कपट ही मानता है।

(v) अन्य कार्य जो कपटपूर्ण हो- यह उपचार उन सभी कार्यों को कपट मानती है जो अन्य उपधाराओं में उल्लिखित नहीं है तथा जिसके द्वारा कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को धोखा ‘देकर अनुबन्ध में पक्षकार बनाने के लिए प्रेरित करता है।

3. कपट द्वारा अन्य को अनुबन्ध में पक्षकार बनाने की भावना- कपट करते समय पैरा (2) में वर्णित कार्य करने वाले पक्षकार की भावना दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध के लिए प्रेरित करने की होनी चाहिए।

4. पक्षकार को वास्तविक धोखा होना चाहिए- यदि दूसरे पक्षकार को, कपटपूर्ण कार्य करने वाले पक्षकार के कार्य या छुपाव से कोई धोखा नहीं हुआ है तो वह कार्य कपट नहीं माना जायेगा।

5. दूसरे पक्षकार को वास्तविक हानि पहुँचनी चाहिए- यदि वह पक्षकार जिसे धोखा दिया गया है, उसे धोखे के कारण कोई हानि नहीं पहुँचती, तो यह कपट नहीं माना जायेगा।

कपट के प्रभाव-

धारा 19 के अनुसार जब किसी अनुबन्ध की सहमति कपट द्वारा प्राप्त की गयी है वह तो उस व्यक्ति को जिसे धोखा दिया जाये निम्न अधिकार प्राप्त होते हैं-

(1) अनुबन्ध को निरस्त करने का अधिकार- अनुबन्ध अपनी इच्छानुसार निरस्त कर सकता है, परन्तु यदि उसकी सहमति कपटमय मौन द्वारा ली गयी हो तो उसके पास ऐसे साधन थे कि वह साधारण प्रयत्नों से ही सत्य का पता लगा सकता था। तो वह अनुबन्ध को रद्द नहीं कर सकता है।

(2) अनुबन्ध की अभिपुष्टि करने का अधिकार- वह अनुबन्ध की अभिपुष्टि कर सकता है और दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध की शर्तों को पूरा करने के लिए बाध्य कर सकता है अर्थात् वह अनुबन्ध को प्रवर्तित करा सकता है।

(3) प्रत्यास्थापना का अधिकार – अनुबन्ध को निरस्त करने की दशा में वह प्रत्यास्थापना (Restitution) की मांग कर सकता है। अर्थात् यदि कोई धन अथवा सम्पत्ति उसने दूसरे पक्षकार को दी है तो उसे धन अथवा सम्पत्ति को वापस प्राप्त करने का अधिकार है तथा वह उसके लिए भी माँग प्रस्तुत कर सकता है और क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकता है।

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Anjali Yadav

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