कामायनी के आधार पर प्रेम और सौन्दर्य के प्रति प्रसाद जी की दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
जयशंकर प्रसाद ह्रदय को कोमल भावनाओं के कवि है। यही कारण है कि उनकी कविता में भाव सत्य को घटना-सत्य से अधिक महत्व प्रदान किया गया है। मानवीय भावनाओं में चूँकि प्रेम और सौन्दर्य महत्वपूर्ण केन्द्र बिन्दु है। अतः उनकी कल्पना चतुर्दिक घूमकर प्रेम और सौन्दर्य पर ही टिक जाती है।
प्रेम और सौन्दर्य परस्पर सम्बद्ध भाव-तत्व है। मन को जो मोहक लगे वही सौन्दर्य है। और उसे सौन्दर्य के प्रति मन में मोह जगना ही प्रेम है। सौन्दर्य और प्रेम विश्व-व्यापी भाव है। काव्य में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण सदा से ही होता रहा है। परन्तु छायावाद के अभ्युदय से पूर्व आधुनिक काल में कविता का मुख्य विषय देश-प्रेम और उपदेशात्मक उक्तियाँ बन गयी थीं। काव्य की ऐसी इतिवृत्तात्मक शैली से कवियों का भावुक मन शीघ्र कब गया और वे संसार के अतिशय भौतिकवाद से पलायन कर कल्पना लोक में विचरण करने लगे। उनकी कल्पना में सब कुछ सुन्दर था। वे मुग्ध हुए और अपने उस काल्पनिक जगत से प्रेम करने लगे। इस प्रकार छायावादी काव्य में प्रेम और सौन्दर्य की प्रधानता हो गयी। प्रसाद छायावादी के अमर शिल्पी हैं। भावुक और कोमल हृदय के कवि प्रसाद की काव्य-रचना का मूल स्वर प्रेम और सौन्दर्य ही है। प्रेम पथिक और आँसू उनके उल्लेखनीय प्रेमाख्यात्मक काव्य ग्रंथ हैं, परन्तु अन्य-रचनाओं से भी उनकी प्रेम और सौन्दर्य सम्बन्धी भावनाओं का परिचय मिल जाता है।
प्रेम भावना- प्रसाद की प्रेम-भावना सर्वाधिक ‘आँसू’ में साकार हुई है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कथन है कि-‘अभिव्यंजना’ की प्रौढ़ता और विचित्रता के भीतर प्रेम की वेदना की सहायता और उसके मंगलमयी प्रभाव का चित्र इस कृति में देखते ही बनता है। आँसू में कवि के प्रेम का उदात्त रूप व्यक्त हुआ है। आरम्भ में वही शक्ति है, किन्तु अन्त में उसका धरातल समष्टिगत बन गया है। आँसू एक स्मृति काव्य है जिसमें कवि अतीत की मधुर स्मृतियों में मग्न है। विगत सुखद संयोग के क्षणों को स्मरण करता कवि उनके अभाव में रोदन करता है। उसके हृदय में स्मृतियों की बस्ती-सी बस गई है।
सौन्दर्य भावना – सौन्दर्य का सूक्ष्म वर्णन छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है। रीतिका का सौन्दर्य बोध शारीरिक और ऐन्द्रिक था परन्तु छायावाद में सौन्दर्य को उस पर दर्शित किया गया है।
सौन्दर्य आनंद का स्त्रोत है— सौन्दर्य मन को आनन्दित करता है। आनंद का मधुमय स्रोत सौन्दर्य के माध्यम से ही प्रवाहित होता है। सौन्दर्य और आनंद अपने घनिष्ठतम सम्बन्ध के कारण कहीं-कहीं एक-दूसरे के पर्याय ही बन जाते हैं-
भवगति ! वह पावन मधुधारा ।
देख अमृत ललचाये!
वही, रम्य सौन्दर्य शैल से,
जिसमें जीवन घुल जाये।
प्रसाद जी के काव्य में सौन्दर्य-चेतना के विविध आयामों का सुंदर चित्रण हुआ मानवीय, प्राकृतिक एवं काल्पनिक-सभी प्रकार के सौन्दर्य का सुंदर परिपाक उनके काव्य में प्राप्त होता है। मानवीय सौन्दर्य के अन्तर्गत उन्होंने पुरुष और नारी दोनों के ही सौन्दर्य का वर्णन किया है। कामायनी में मनु और श्रद्धा दोनों ही रूप-वर्णन में प्रसाद की उदात्त सौन्दर्य भावना का में परिचय मिलता है।
प्राकृतिक सौन्दर्य के वर्णन में तो प्रसाद अनुपम हैं। उनके प्रत्येक काव्य में प्रकृति के विविध रूप दिखलाई पड़ते हैं। प्रकृति का एक-एक रंग एक-एक रूप प्रसाद की कल्पना में सहस्त्र आकार लेता है और न जाने कितने रम्य चित्र वे खींचते चले जाते हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से उनका ‘लहर’ नामक काव्य विशेष महत्व का है। ‘लहर’ में प्रकृति के जिन सुंदर चित्रों की सृष्टि हुई हैं, वे हृदय को संवेदनात्मक धरातल पर प्रतिष्ठित करते हैं। बीत-विभावरी जागी, ‘कोमल कुसुमों की मधुर रात’, ‘वे दिन कितने सुन्दर थे’, ‘ले चल मुझे भुलावा देकर’ आदि कविताओं में रमणीय भावमयता के दर्शन होते हैं। कामायनी में अनेक स्थलों पर प्रकृति का स्वतंत्र वर्णन हुआ है। आशा सर्ग में प्रकृति-सौन्दर्य के अनेक चित्र उकेरे गये हैं। सर्ग के प्रारम्भ में अरुणोदय का सुन्दर चित्र है-
उषा सुनहले तीर बरसाती,
जय लख्मी सी उचित हुई।
कलात्मक सौन्दर्य में कवि की प्रतिभा का ही चमत्कार होता है प्रसाद की कविताओं ने कलात्मक सौन्दर्य भरपूर है। इसके लिए लाक्षणिक और प्रतीकात्मक शैली, मानवीकरण, उपचार वकता, बिम्ब-विधान और अलंकारों का सुठु प्रयोग आवश्यक होता है। प्रसाद के काव्य में से सभी कलात्मक प्रयोग सर्वत्र उपलब्ध होते
उपचार वक्रता धीरे-धीरे हिम-अच्छादन
हटाने लगा धरातल से,
जगी वनस्पतियाँ अलसाई
मुख धोती शीतल जल से।
लाक्षणिकता-
आश की उलझी अलकों से,
उठी यह मधुगन्ध अधीर।
मानवीकरण-
यह शून्यते! चुप होने में
तू क्यों इतनी चतुर हुई?
IMPORTANT LINK
- सूर के पुष्टिमार्ग का सम्यक् विश्लेषण कीजिए।
- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- सूर की काव्य कला की विशेषताएँ
- कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए।
- सूफी काव्य परम्परा में जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- ‘जायसी का वियोग वर्णन हिन्दी साहित्य की एक अनुपम निधि है’
- जायसी की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- जायसी के पद्मावत में ‘नख शिख’
- तुलसी के प्रबन्ध कौशल | Tulsi’s Management Skills in Hindi
- तुलसी की भक्ति भावना का सप्रमाण परिचय
- तुलसी का काव्य लोकसमन्वय की विराट चेष्टा का प्रतिफलन है।
- तुलसी की काव्य कला की विशेषताएँ
- टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त | Tagore’s theory of education in Hindi
- जन शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, स्त्री शिक्षा व धार्मिक शिक्षा पर टैगोर के विचार
- शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या तत्त्व उनके अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य
- गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन | Evaluation of Gandhiji’s Philosophy of Education in Hindi
- गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के गुण-दोष
- स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
- गाँधीजी के शैक्षिक विचार | Gandhiji’s Educational Thoughts in Hindi
- विवेकानन्द का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान | Contribution of Vivekananda in the field of education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- घनानन्द की आध्यात्मिक चेतना | Ghanananda Spiritual Consciousness in Hindi
- बिहारी ने शृंगार, वैराग्य एवं नीति का वर्णन एक साथ क्यों किया है?
- घनानन्द के संयोग वर्णन का सारगर्भित | The essence of Ghananand coincidence description in Hindi
- बिहारी सतसई की लोकप्रियता | Popularity of Bihari Satsai in Hindi
- बिहारी की नायिकाओं के रूपसौन्दर्य | The beauty of Bihari heroines in Hindi
- बिहारी के दोहे गम्भीर घाव क्यों और कहाँ करते हैं? क्या आप प्रभावित होते हैं?
- बिहारी की बहुज्ञता पर प्रकाश डालिए।
Disclaimer