कौटिल्य के अनुसार विदेश सम्बन्धों के संचालन हेतु नितियों की सूची बनाइये ।
कौटिल्य के अनुसार विदेश सम्बन्धों के संचालन हेतु नीतियों की सूची छः सूत्रीय विदेश नीतिः कौटिल्य ने विदेश सम्बन्धों के संचालन हेतु छः प्रकार की नीतियों का विवरण दिया है-
- संधि- शान्ति बनाए रखने हेतु समतुल्य या अधिक शक्तिशाली राजा के साथ संधि की जा सकती है। आत्मरक्षा की दृष्टि से शत्रु से भी संधि की जा सकती है। किन्तु इसका लक्ष्य शत्रु को कालान्तर निर्बल बनाना है।
- विग्रह या शत्रु के विरुद्ध युद्ध का निर्माण।
- यान या युद्ध घोषित किए बिना आक्रमण की तैयारी,
- आसन या तटस्थता की नीति,
- संश्रय अर्थात् आत्मरक्षा की दृष्टि से राजा द्वारा अन्य राजा की शरण में जाना,
- द्वैधीभाव अर्थात् एक राजा से शान्ति की संधि करके अन्य के साथ युद्ध करने की नीति।
कौटिल्य के अनुसार राजा द्वारा इन नीतियों का प्रयोग राज्य के कल्याण की दृष्टि से ही किया जाना चाहिए।
कूटनीति आचरण के चार सिद्धांत : कौटिल्य ने राज्य की विदेश नीति के संदर्भ में कूटनीति के चार सिद्धांतों साम (समझाना, बुझाना), दाम (धन देकर सन्तुष्ट करना), दण्ड (बल प्रयोग, युद्ध) तथा भेद (फूट डालना) का वर्णन किया। कौटिल्य के अनुसार प्रथम दो सिद्धांतों का प्रयोग निर्बल राजाओं द्वारा तथा अंतिम दो सिद्धांतों का प्रयोग सबल राजाओं द्वारा किया जाना चाहिए, किन्तु उसका यह भी मत है कि साम दाम से, दाम भेद से और भेद दण्ड से श्रेयस्कर है। दण्ड (युद्ध) का प्रयोग अन्तिम उपाय के रूप में किया जाएं, क्योंकि इससे स्वयं की भी क्षति होती है।
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