क्षतिपूर्ति अनुबन्ध के प्रकारों का वर्णन कीजिए। विशेष क्षतिपूर्ति के कब दावा किया जा सकता है?
क्षतिपूर्ति के प्रकार
क्षतियाँ निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है-
1. साधारण क्षतिपूर्ति- सामान्यत: यह क्षतिपूर्ति उतनी हानि के लिए होती है, जिसका ज्ञान अनुबन्ध के दोनों पक्षकारों को प्रारम्भ से ही होता है अथवा ऐसी क्षतिपूति, जिसके सम्बन्ध में पक्षकारों द्वारा सोचे जाने की उचित रूप से आशा की जाती है। इस सम्बन्ध में विलियम ब्रीस Vs. एड० टी० एंगिन्स लि० (1917) का विवाद प्रसिद्ध है। इस विवाद में ‘अ’ ने 15 जनवरी 1917 को 5 गाँठ ब्रौंज कपास ‘ब’ को भेजने का ठहराव किया था। ‘अ’ उस तिथि को कपास न भेज सका। ‘ब’ ने न्यायालय की शरण ली। न्यायालय ने निर्णय किया कि ‘ब’ अनुबन्ध में निश्चित किये गये मूल्य और बाजार मूल्य में अन्तर पाने का अधिकारी है।
2. विशेष क्षतिपूर्ति- जब किसी अनुबन्ध के अनुसार एक पक्षकार ने ऐसा सौदा किया है, जिसके अनुसार उसे विशेष लाभ प्राप्त होने की आशा है तथा यदि अनुबन्ध भंग हो जाता है, ऐसा विशेष लाभ समाप्त होने की सम्भावना है और इस तथ्य का ज्ञान दोनों पक्षकारों को है, तब अनुबन्ध भंग होने पर विशेष क्षतिपूर्ति के लिए दावा किया जा सकता है।
3. दण्डात्मक क्षतिपूर्ति- कभी-कभी एक पक्षकार द्वारा अनुबन्ध की पूर्ति न होने पर दूसरे पक्षकार की प्रतिष्ठा पर आँच आती है या उसकी मान हानि होती है या व्यापारिक क्षेत्र में उसकी ख्याति को चोट पहुँचाती है; तब दण्डात्मक क्षतिपूर्ति करायी जा सकती है। यथा- यदि ‘कोई बैंक खाते में पर्याप्त धनराशि अप्रतिष्ठित (Dishonour) कर देता है, तब ऐसी स्थिति में बैंक से दण्डात्मक क्षतिपूर्ति करायी जा सकती है।
4. निस्तीर्ण क्षतिपूर्ति एवं दण्ड- अनुबन्ध करते समय यदि कोई ऐसी धनराशि निश्चित कर दी जाती है, जो दूसरे पक्षकारों को अनुबन्ध भंग करने पर देनी होगी तब यदि यह धनराशि उस हानि के बराबर है, जितनी हानि उस अनुबन्ध के भंग करने से हुई है तब यह ‘निस्तीर्ण क्षतिपूर्ति’ कही जायगी। यदि इस धनराशि का अनुबन्ध टूटने से होने वाली हानि से कोई सम्बन्ध नहीं है तथा यह धनराशि दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध पालन करने के लिए भयभीत करने के लिए निर्धारित की गयी है, जिसके भय से वह अनुबन्ध न तोड़े, तब यह धनराशि ‘दण्ड’ कही जायगी ।
5. ‘ब्याज’ के बराबर क्षतिपूर्ति- एक निश्चित तिथि एक अनुबन्ध की पूर्ति न किये जाने पर यदि अनुबन्ध में लिखित रूप में ब्याज देना तय है, तब त्रुटि की दशा में ब्याज देय होगा। ऐसी स्थिति में न्यायालय उचित ब्याज दर को मान सकता है तथा अनुचित अथवा अधिक ब्याज दर को कम कर सकता है।
6. नाममात्र की क्षतिपूर्ति- यदि न्यायालय यह समझता है कि अनुबन्ध के भंग होने से पीड़ित पक्ष को कोई विशेष हानि नहीं हुई है, अथवा नाममात्र की हानि हुई है, तब यदि वह दूसरे पक्ष को दण्ड देने मात्र की दृष्टि से मामूली-सी क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश देता है, तब यह नाममात्र क्षतिपूर्ति कहलायेगी।
IMPORTANT LINK
- अनुबन्ध करने की क्षमता से आप क्या समझते हैं? भारत में अवयस्क द्वारा किये गये अनुबन्धों के सम्बन्ध में राजनियम
- प्रस्ताव और स्वीकृति का संवहन कब पूरा होता है?
- वैध अनुबन्ध के आवश्यक तत्वों का वर्णन कीजिए।
- संविदा / अनुबन्ध की परिभाषा दीजिए। वे कौन-कौन से तत्व हैं जो अनुबन्ध की वैधानिकता पर प्रभाव डालते हैं?
- गलती या भूल से आप क्या समझते हैं? गलती के प्रकार बताइए।
- मिथ्यावर्णन से आप क्या समझते हैं? मिथ्यावर्णन के प्रभाव
- कपट से आप क्या समझते हैं? इसके लक्षण एंव प्रभाव
- उत्पीड़न क्या है? अनुबन्ध की वैधता पर इसके प्रभाव बताइये ।
- सहमति का अर्थ एवं परिभाषा | सहमति स्वतन्त्र कब नहीं होती? | अनुबन्ध में स्वतन्त्र सहमति का महत्व एवं प्रभाव
- दिवालिया का अर्थ एवं परिभाषा | दिवालियापन की परिस्थितियाँ | दिवाला-कार्यवाही | भारत में दिवालिया सम्बन्धी अधिनियम | दिवाला अधिनियमों के गुण एवं दोष
- साझेदार के दिवालिया होने का क्या आशय है?
- साझेदारी फर्म को विघटन से क्या आशय है? What is meant by dissolution of partnership firm?
- साझेदार की मृत्यु का क्या अर्थ है? मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को कुल देय रकम की गणना, भुगतान, लेखांकन तथा लेखांकन समस्याएँ
- मृतक साझेदार के उत्तराधिकारियों को देय राशि के सम्बन्ध में क्या वैधानिक व्यवस्था है?
- साझारी के प्रवेश के समय नया लाभ विभाजन ज्ञात करने की तकनीक
- किराया क्रय पद्धति के लाभ तथा हानियां
- लेखांकन क्या है? लेखांकन की मुख्य विशेषताएँ एवं उद्देश्य क्या है ?
- पुस्तपालन ‘या’ बहीखाता का अर्थ एवं परिभाषाएँ | पुस्तपालन की विशेषताएँ | पुस्तपालन (बहीखाता) एवं लेखांकन में अन्तर
- लेखांकन की प्रकृति एवं लेखांकन के क्षेत्र | लेखांकन कला है या विज्ञान या दोनों?
- लेखांकन सूचनाएं किन व्यक्तियों के लिए उपयोगी होती हैं?
- लेखांकन की विभिन्न शाखाएँ | different branches of accounting in Hindi
- लेखांकन सिद्धान्तों की सीमाएँ | Limitations of Accounting Principles
- लेखांकन समीकरण क्या है?
- लेखांकन सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा | लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताएँ
- लेखांकन सिद्धान्त क्या है? लेखांकन के आधारभूत सिद्धान्त
- लेखांकन के प्रकार | types of accounting in Hindi
- Contribution of Regional Rural Banks and Co-operative Banks in the Growth of Backward Areas
- problems of Regional Rural Banks | Suggestions for Improve RRBs
- Importance or Advantages of Bank
Disclaimer