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गलती या भूल से आप क्या समझते हैं? गलती के प्रकार बताइए।
गलती- अनुबन्ध की मान्यता के लिए, “दो या अधिक व्यक्तियों की सहमति उस समय कही जाती है जब वे एक ही बात पर, एक ही भाव से सहमत होते हैं।” किन्तु कभी-कभी ऐसा भी सम्भव हो जाता है कि अनुबन्ध के किसी आवश्यक तथ्य के विषय में अज्ञानता अथवा गलती के कारण पक्षकार गलती पर बैठते हैं। इस स्थिति में ही यह कहा जाता है कि सहमति गलती से प्रभावित है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 20 के अनुसार, “जब ठहराव के दोनों पक्षकार ठहराव के किसी आवश्यक तथ्य के विषय में गलती पर हैं तो ऐसी हालत में सहमति स्वतन्त्र नहीं कही जा सकती और ऐसी परिस्थिति में ठहराव व्यर्थ होता है।”
उदाहरण – विवाद – रानी कुँवर बनाम महबूत वक्स।
विषय- एक पक्षकार ने दूसरे से भूमि क्रय की और उस पर मकान बनवा लिया। ने बाद में मालूम हुआ कि विक्रेता उस भूमि का स्वामी नहीं था अपुित कोई अन्य व्यक्ति उसका स्वामी था। दोनों में से किसी को यह तथ्य मालूम नहीं था तथा व्यवहार सद्भावना से किया गया था।
निर्णय- यहाँ पर विषय-वस्तु के स्वत्व के सम्बन्ध में गलती मानी गयी। अतएव अनुबन्ध व्यर्थ माना गया।
गलती के प्रकार
गलती दो प्रकार की होती है- 1. कानून सम्बन्धी गलती, तथा 2. तथ्य सम्बन्धी गलती।
1. कानून सम्बन्धी गलती-
कानून सम्बन्धी गलती दो प्रकार की होती है-
(i) अपने देश की सामान्य कानून सम्बन्धी गलती- देश के प्रत्येक नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि उसे देश के सामान्य राजनियम का ज्ञान हो। देश में कानून की अनभिज्ञता के कारण किसी अनुबन्ध को व्यर्थ घोषित नहीं किया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति कानून सम्बन्धी गलती करता है तो उसे क्षमा नहीं किया जा सकता है।
(ii) विदेशी कानून सम्बन्धी गलती- किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह सभी देशों का कानून जानता हो। यदि पक्षकार अनुबन्ध करने समय किसी दूसरे देश के कानून के सम्बन्ध में गलती करता है तो ऐसी गलती विदेशी कानून की गलती कहलाती है अनुबन्ध अधिनियम की धारा 21 के अनुसार “यदि गलती भारत में प्रचलित किसी राजनियम के सम्बन्ध में है तो गलती करने वाला क्षमा नहीं किया जा सकता, परन्तु यदि गलती किसी दूसरे देश के कानून के सम्बन्ध में है, तो उसका प्रभाव तथ्य सम्बन्ध गलती के समान ही होगा।”
2. तथ्य सम्बन्धी गलती-
जब किसी ठहराव के दोनों पक्षकार ठहराव के किसी आवश्यक तथ्य के विषय में गलती पर है, तो ठहराव व्यर्थ होता है। तथ्य सम्बन्धी गलती दो प्रकार की होती है-(i) द्विपक्षीय, (ii) एकपक्षीय
तथ्य सम्बन्धी गलती के लक्षण- तथ्य सम्बन्धी गलती के आधार पर किसी ठहराव को व्यर्थ मानने के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है –
1. तथ्य सम्बन्धी गलती ठहराव के दोनों पक्षकारों द्वारा होनी चाहिए- किसी अनुबन्ध को तथ्य सम्बन्धी गलती के आधार पर व्यर्थ घोषित करने के लिए गलती दोनों पक्षकारों की ओर से होनी चाहिए। कोई भी अनुबन्ध केवल इसलिए व्यर्थ नहीं हो सकता कि एक ही पक्षकार तथ्य के सम्बन्ध में गलती पर है।
एक ही पक्षकार द्वारा गलती की दशा में कब अनुबन्ध व्यर्थनीय होता है – जब एक ही पक्षकार गलती पर है तब अनुबन्ध केवल उस दशा में व्यर्थनीय होता है। जब यह सिद्ध किया जाय कि गलती दूसरे पक्षकार के कपट अथवा मिथ्या वर्णन के कारण हुई है। हेमसिंह बनाम भागवत के विवाद में एक अन्धे को किसी बॉण्ड पर यह कहकर दस्तखत बनाने के लिए प्रेरित किया गया कि वह बॉण्ड उसके लिए लाभदायक है, किन्तु वास्तव में उसके लिए हानिकारक था।
किन्तु निर्णय सम्बन्धी गलती सम्भावना सम्बन्धी गलती अथवा गलत विश्वास के आधार पर किसी अनुबन्ध का त्याग नहीं किया जा सकता। यदि कोई बाजार मूल्य के बढ़ने की आशा करता है, किन्तु बाजार मूल्य गिरने लगता है, तो वह इस आधार पर किसी अनुबन्ध को नहीं त्याग सकता। एक विवाद में, एक व्यक्ति ने यह समझकर एक स्टोव खरीदा कि यह उसके कमरे को गर्म रखने के लिए काफी बड़ा होगा। बाद में स्टोव छोटा सिद्ध कर उसे लौटाना चाहा। न्यायालय ने उसे ऐसा नहीं करने दिया।
2. गलती ठहराव के किसी आवश्यक तथ्य के सम्बन्ध में होनी चाहिए- जब गलती ठहराव के किसी आवश्यक तथ्य के सम्बन्ध में नहीं होती तो अनुबन्ध व्यर्थ नहीं हो सकता। केवल भ्रम, अनुबन्ध के लिए महत्वपूर्ण होते हुए भी अनुबन्ध के ‘सार-तत्व’ को प्रभावित नहीं कर सकता।
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thanks mam this is very helfull