हिन्दी साहित्य

“छायावादी कवियों में निराला को सहज ही क्रान्तिकारी कवि कहा जा सकता है।”

"छायावादी कवियों में निराला को सहज ही क्रान्तिकारी कवि कहा जा सकता है।"
“छायावादी कवियों में निराला को सहज ही क्रान्तिकारी कवि कहा जा सकता है।”

“छायावादी कवियों में निराला को सहज ही क्रान्तिकारी कवि कहा जा सकता है।” इस कथन की सतर्क विवेचना कीजिए। 

महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी छायावादी कवियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। उनके काव्य में कवि का फक्कड़पन और निर्भीकता, सूफियों का सादापन, सूरदास और तुलसीदास जी की प्रतिभा और जयशंकर प्रसाद की सौन्दर्य-चेतना साकार हो उठी है। निराला जी जन्मजात विद्रोही थे जिन्होंने अन्धविश्वासों, छलकपट, स्वार्थ, दरिद्रता, भुखमरी आदि पर हास्य व्यंग्य के सहारे तीखे प्रहार किये हैं और काव्य के क्षेत्र में भी अपने नवीन प्रयोगों से युगान्तकारी परिवर्तन किये।

मानवतावाद- मानवतावाद की जो गहराई निराला के साहित्य में मिलती है वह अन्यत्र दुर्लभ है। निराला का अन्याय के प्रति आक्रोश एवं दीन-दुखियों पर सहानुभूति सदैव क्रियात्मक रही है। विद्रोही भावनाओं से परिपूर्ण होने के कारण निराला साहित्य में नवीन परम्पराओं के जन्मदाता बन गये, सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने इन रुढ़ियों, परम्पराओं और अन्धविश्वासों का जमकर विरोध किया।

पीड़ावाद- जीवनसंघर्ष से प्राप्त हलाहल को बिल्कुल अकेले पीने वाले निराला जी ने अपने काव्य में उस पीड़ा को संयत रुप से ही आने दिया है जिसे वह जीवनभर वज्र की भाँति सहते रहे।

साहित्यिक व्यक्तित्व- निराला युगान्तकारी कवि थे। छायावादी तथा प्रगतिवादी के समर्थक कवि निराला झुकना नहीं जानते थे, वे टूट जाना पसन्द करते थे। समाज ने उन्हें विक्षिप्त तक कहा किन्तु उन्होंने सबको काव्यामृत बाँट खुद कालकूट विषपान करके कविता के नीलकण्ठ बने रहे। सन्तों का सा जीवन, कबीर की सी मस्ती और फक्कड़पन, डाँट-फटकार, निडरता, ललकार किन्तु अन्दर से परम उदार व्यक्तित्व के ‘निराला’ वास्तव में निराला ही थे। लोकचेतना के सभी तत्व उनमें विद्यमान थे। छायावादी, प्रगतिवादी, मानवतावादी और आध्यात्मवादी विचार उनके साहित्य में भरे पड़े हैं। निराला जी स्वयं तो समाज का व्यंग्य सहन करते रहे किन्तु उन्होंने अपने व्यंग्य-वाणों से समाज में किसी को नहीं छोड़ा। अपने युग की काव्य-परम्परा के प्रति प्रबल विद्रोह का भाव लेकर चलने वाले कवि निराला हिन्दी जगत के एक विशिष्ट कवि के रूप में विख्यात रहे।

कृतित्व- निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। कविता के अतिरिक्त निबन्ध, आलोचना और संस्मरण भी लिखे हैं। निराला जी की कृतियाँ निम्न हैं-

काव्य साहित्य- परिमल, अनामिका, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, अर्चना, आराधना, गीतकुंज, कवित्री, राम की शक्ति पूजा, सरोज स्मृति।

परिमल काव्य संग्रह में अन्याय और शोषण के प्रति तीव्र विद्रोह तथा निम्न वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति पाई गयी है, ‘गीतिका’ श्रृंगारिक रचना है फिर भी बहुत से गीतों में दिखाई। आत्म निवेदन का भाव भी व्यक्त हुआ है, इसके अतिरिक्त इसमें प्रकृति-वर्णन, देश मधुरता प्रेम की भावना का चित्रण किया है। ‘अनामिका’ में संग्रहीत रचनाएँ कलात्मक स्वभाव की परिचायक हैं।

निराला की प्रमुख काव्य रचनाएँ जो निराला को अमर करती हैं-

(क) कुकुरमुत्ता- शोषण के विरुद्ध आवाज को उठता हैं,

(ख) – तुलसीदास- सांस्कृतिक चेतना का दर्शन कराती है,

(ग) – राम की शक्ति पूजा-निराला के ओज पौरुष की, कृति हैं।

उपन्यास-अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, चमेली, चोटी की पकड़

कहानी- लिली, कुल्ली भाट, बिल्ले सुर बकरिहा, चतुरी चमार, सुकुल की बीबी

निबन्ध साहित्य- रवीन्द्र कविता कानन, प्रबन्ध पद्य, पंत और पल्लव, चाबुक, चयन।

अनुवाद- महाभारत, श्री रामकृष्ण वचनामृत (विनय खण्ड) भारत में विवेकानन्द ।

स्फुटजीवनी- भक्त ध्रुव, राणाप्रताप, भक्त प्रहलाद, भीष्म, हिन्दी बँगला शिक्षा, कामसूत्र ।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment