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जेण्डर स्टीरियोटाइप से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Gender Stereo-type ? 

जेण्डर स्टीरियोटाइप से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Gender Stereo-type ? 
जेण्डर स्टीरियोटाइप से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Gender Stereo-type ? 

जेण्डर स्टीरियोटाइप से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Gender Stereo-type ? 

किसी भी समूह की विशेषताओं के प्रति आम धारणा या विश्वास स्टीरियो टाइप कहलाते हैं। ये धारणाएँ एक समूह को दूसरे समूह से पृथक् करती है। जेण्डर स्टीरियो टाइप का अर्थ है- “पुरुष और स्त्री, लड़के और लड़की के लिए आम विश्वास या आम धारणा । ” लगभग सभी बालक जेण्डर स्टीरियो टाइप को जानते हैं। जरूरी नहीं हैं कि यह जानकारी परिवार की प्रवृत्तियों और मूल्यों से ही होती है, मीडिया, साथियों (विशेषकर स्कूल के साथी) से अन्तर्क्रिया तथा अन्य बहुत जाता से कारक हैं जिनसे बालक जेण्डर स्टीरियो टाइप को जान से समझा जाता है ।

लड़कियों को आम धारणा के अनुरूप उनके कपड़ों, गहनों, बाल सजाने के तरीके आदि लड़कों को इसके विपरीत उनकी सक्रियता और व्यवहार सम्बन्धित बातों से समझा जाता है, जैसे मारपीट करना, कठिन खेल खेलना, सक्रियता वाले कार्य करना । विभिन्न प्रकरणों में लड़के और लड़कियों के जेण्डर स्टीरियो टाइप की अक्सर तुलना की जाती है।

जेण्डर भूमिका और स्टीरियो टाइप को प्रभावित करने वाले कारक (Influences on Gender role and Stereo-type) :

1. मीडिया— मीडिया स्टीरियो टाइप को बहुत अधिक बढ़ावा देता है विज्ञापनों में यह स्पष्ट दिखाई देता है । अक्सर देखा जाता है कि कम्प्यूटर के विज्ञापनों में पुरुष और लड़के पूरी दक्षता के साथ कम्प्यूटर का प्रयोग कर रहे हैं, बड़े व्यावसायिक पदों पर बैठकर कम्प्यूटर के साथ कार्य कर रहे हैं, वहीं महिलाओं और लड़कियों को निष्क्रिय अवलोकनकर्त्ता के रूप – में दिखाते हैं। अक्सर उनको कम्प्यूटर के बगल में खड़ा कर देते हैं और इस पर भी ध्यान देते हैं, वे खूबसूरत और आकर्षक लगें ।

2. फिल्में — जेण्डर भूमिका और स्टीरियो टाइपिंग के बारे में प्रचार-प्रसार करने में फिल्में बहुत आगे रहती हैं। फिल्मों में दिखाए जाने वाले महिला चरित्र से लड़कियाँ अपने आपको जोड़ने लगती हैं, उन्हीं की तरह व्यवहार करने का प्रयास करती हैं। उसी तरह लड़के भी हिम्मत, साहस और सक्रियता का प्रदर्शन करना चाहते हैं ।

3. अध्यापक- विद्यार्थियों में जेण्डर की समझ के विकास पर अध्यापकों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। अक्सर अध्यापक वस्त्रों, स्वच्छता, सहायता करने वाले व्यवहार के आधार पर लड़कियों की प्रशंसा करते हैं। अध्यापक लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग सम्बोधन का प्रयोग करते हैं, लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा अधिक नरम ढंग से सम्बोधित करते हैं। कभी-कभी अध्यापक गैर-इरादतन अनुचित स्टीरियो टाइप भेद-भाव छात्रों और छात्राओं के मध्य कर देते हैं। कुछ अध्यापक लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को पढ़ाना आसान समझते हैं।

4. मित्र- बच्चे अपने मित्रों के साथ अन्तर्क्रिया करके जेण्डर पहचान बनाते हैं। मित्रता और साथियों का दबाव जेण्डर स्टीरियो टाइप को प्रभावित करता है, खासतौर से लड़कों के मध्य, जो लड़के लड़कियों की तरह गुण प्रदर्शित करते हैं, उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। जब बालक अपने मित्रों के साथ खेलता है तो उसके खिलौने से जेण्डर पहचान दिखाई पड़ती है।

5. परिवार — जेण्डर के बारे में जानने में परिवार का महत्त्वपूर्ण होता है। माता-पिता अक्सर कुछ व्यवहार की सराहना करते हैं और कुछ व्यवहारों को हतोत्साहित करते हैं । इन सबका प्रभाव जेण्डर पहचान पर पड़ता है। परिवार की संस्कृति और जातीय विशेषताओं के अनुरूप बालक की जेण्डर के प्रति समझ विकसित होती है। विविध जातियों का सांस्कृतिक पक्षपात भी बालकों में स्टीरियो टाइप के विकास को बढ़ावा देते हैं। मुख्य धारा की संस्कृति में ऐसा कम ही होता है। उदाहरणार्थ, कुछ संस्कृतियों में बेटों को बेटियों से अधिक मिलता है, बेटों की आवश्यकताएँ पहले पूरी की जाती हैं, बेटों को बेटियों की अपेक्षा अधिक सुविधाएँ दी जाती हैं ।

6. साहित्य (Literature ) — किताबों का बालकों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। किताबों में जो मुख्य चरित्र/पात्र होते हैं वे बालकों के लिए आदर्श बन जाते हैं और पुरुषोचित या स्त्रियोचित की परिभाषा बालकों को सिखाते हैं। बालक पुस्तकों से ही सामाजिक मानक सीखते हैं।

जेंडर स्टीरियो टाइपिंग के परिणाम (Consequences of Gender Stereo-typing)

1. व्यावसायिक आकांक्षा- किसी व्यक्ति का व्यवसाय उसके आत्म-पहचान का संकेत होता है । विद्यार्थी अपने भविष्य के लिए जिस व्यवसाय का चयन करते हैं, उससे पता चलता है कि वे आज अपने को कैसा समझते हैं, अपने बारे में उनकी सोच क्या है ?

2. शैक्षिक परिणाम — अक्सर माना जाता है कि लड़कियाँ विज्ञान, गणित और तकनीकी जैसे विषयों में कम रुचि लेती हैं, उनका आत्म-विश्वास भी इन क्षेत्रों में कम होता है। मीडिया, परिवार और अध्यापकों के द्वारा इस तरह पक्षपातपूर्ण बातें प्रस्तुत की जाती हैं। हो सकता है कि ये लोग लड़कियों से कम अपेक्षाएँ रखते हों, सोचते हों कि इन क्षेत्रों में लड़कियों अपेक्षा लड़के ही कुशल होते हैं।

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About the author

Anjali Yadav

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