व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व | Need and Importance of education of challenging Gender in Hindi

चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व | Need and Importance of education of challenging Gender in Hindi
चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व | Need and Importance of education of challenging Gender in Hindi

चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व 

चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व के विषय में न तो कोई दो राय है और न ही कोई संशय, परन्तु इनकी शिक्षा व्यवस्था करने से पूर्व कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं का समावेश या इन बिन्दुओं को शिक्षा में आत्मसात् कर शिक्षा को इन लिंगों के प्रति और भी उपादेय बनाया जा सकता है-

1. व्यावसायिक शिक्षा

2. जीवन – दक्षता तथा कौशल विकास

3. जीवनोपयोगी तथा व्यावहारिक शिक्षा ।

4. पृथक्-पृथक् रुचियों तथा आवश्यकतानुरूप शिक्षा

5. शिक्षा प्रदान करने हेतु पूर्णकालिक तथा अंशकालिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था ।

6. अनौपचारिक शिक्षा का प्रबन्ध जिससे कामकाजी तथा घरेलू कार्यों में संलग्न महिलायें भी शिक्षा प्राप्त कर सकें।

7. इनकी शिक्षा को प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु छात्रवृत्ति, निःशुल्क शिक्षा, छात्रावास इत्यादि की व्यवस्था करना।

8. चुनौतीपूर्ण लिंगों को शिक्षा की ओर प्रेरित करने के लिए व्यक्तिगत निर्देशन तथा परामर्श प्रदान करना ।

9. विद्यालय तक आने-जाने के लिए आवागमन की सुविधा और सुरक्षा की सुनिश्चतता ।

10. महिला अध्यापिकाओं की नियुक्ति ।

11. समुचित पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियाँ ।

12. विद्यालयों में अभेदपूर्ण लिंगीय व्यवहार ।

इस प्रकार इन बिन्दुओं का समावेश करने से चुनौतीपूर्ण लिंग हेतु शिक्षा और भी अधिक उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण हो जायेगी। इनकी शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व का रेखांकन निम्नवत् है-

1. सर्वांगीण विकास— चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा की आवश्यकता इसलिए है कि व्यक्ति का सर्वांगीण विकास बिना शिक्षा के सम्भव नहीं हो सकता है। अतः शिक्षा के द्वारा ही स्त्रियों का सर्वांगीण विकास किया जा सकता है। स्त्रियों के सर्वांगीण विकास को दृष्टिगत रखते हुए उनकी शिक्षा की आवश्यकता अत्यधिक है। सर्वांगीण विकास के अन्तर्गत शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांवेगिक, आर्थिक इत्यादि विकास आते हैं और इनकी सुनिश्चितता शिक्षा के द्वारा ही की जा सकती है ।

2. आत्म-निर्भरता – शिक्षा के बिना स्त्रियों को आत्म-निर्भर नहीं बनाया जा सकता है शिक्षा के द्वारा औपचारिक रूप से रुचियों को दृष्टिगत रखते हुए व्यावसायिक शिक्षा तथा कौशल विकास का कार्य सम्पन्न किया जाता है। आत्म-निर्भरता की आवश्यकता स्त्रियों के आर्थिक स्वावलम्बन के लिए तो है ही, साथ ही साथ इसकी आवश्यकता परिवार तथा समाज की आत्म-निर्भरता के लिए भी अत्यधिक है ।

3. सामाजिक विकास- समाज की अभिन्न अंग स्त्रियाँ होती हैं। स्त्री-विहीन समाज की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती है। समाज तभी सभ्य बनेगा जब वहाँ पर स्त्रियों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था होगी। सामाजिक परिवर्तन में स्त्रियों की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है, जिससे सामाजिक गतिशीलता आती है और कुप्रथाओं का अन्त होता है ।

4. सांस्कृतिक विकास- सांस्कृतिक विकास हेतु चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व अत्यधिक है। सांस्कृतिक शिक्षा औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही रूप से प्रदान की जाती है, परन्तु औपचारिक शिक्षा के सोद्देश्य होने के कारण यह अधिक प्रभावी होती है। सांस्कृतिक विकास का अभिन्न अंग स्त्रियाँ होती हैं। अतः सांस्कृतिक विकास, संरक्षण तथा हस्तान्तरण हेतु इनकी शिक्षा की आवश्यकता अत्यधिक है।

5. कुरीतियों पर विजय पाने हेतु- समाज में अनेक कुरीतियाँ व्याप्त हैं और इन कुरीतियों के केन्द्र में प्रायः स्त्रियाँ ही होती हैं। स्त्रियों के द्वारा अज्ञानता के कारण अन्ध-विश्वासों और कुरीतियों का प्रसार किया गया है तथा स्त्रियों का शोषण होता है। जब ये चुनौतीपूर्ण लिंग शिक्षित होंगे तो सामाजिक कुरीतियों पर विजय प्राप्त होगी

6. गरीबी, कुपोषण तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों हेतु— परिवार में एक आदमी कमाता है और उसके कन्धों पर सम्पूर्ण परिवार का उत्तरदायित्व होता है जिस कारण परिवार गरीबी की ओर चला जाता है। यदि चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा के प्रति जागरूकता तथा गम्भीरता हो तो वे पारिवारिक उत्तरदायित्वों में हाथ बँटायेंगी। अशिक्षा के कारण स्त्रियाँ अपने परिवार के समुचित खान-पान का ध्यान नहीं रख पाती हैं जिस कारण से कुपोषण तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों से परिवार घिरा रहता है। इसका नकारात्मक प्रभाव परिवार के लोगों के स्वास्थ्य और स्थिति पर पड़ता है इस प्रकार स्त्रियों की शिक्षा महत्त्वपूर्ण है।

7. राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की सुनिश्चितता हेतु- स्त्रियों का हृदय कोमल होता है। वे प्रेम, दया तथा परोपकार और सहानुभूति की प्रतिमूर्ति होती हैं। स्त्रियों के इन गुणों का विकास शिक्षा के द्वारा भली प्रकार से सम्पन्न किया जाता है। प्रेम, दया, त्याग, परोपकार, सहानुभूति तथा धैर्य सम्पन्न स्त्रियाँ प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से देश की एकता और अखण्डता की सुनिश्चितता में योगदान देती हैं। प्रत्यक्ष रूप से वे स्वयं देश की अच्छी नागरिक सिद्ध होती हैं और अप्रत्यक्ष रूप से वे अपने बच्चों में इन गुणों का विकास करती हैं, जिससे देश की एकता और अखण्डता अक्षुण्ण बनी रहती है ।

8. कुशल मानवीय संसाधन हेतु — स्त्री तथा पुरुष दोनों ही किसी देश के अमूल्य मानवीय संसाधन हैं। शिक्षा के बिना इन मानवीय संसाधनों का समुचित प्रयोग नहीं हो पाता है अतः चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा अत्यावश्यक है। स्त्रियों को मानवीय संसाधन के रूप में विकसित करने हेतु उनकी शिक्षा की आवश्यकता पुरुषों के ही समान है यदि स्त्रियाँ शिक्षित नहीं होतीं तो प्रेमपूर्वक व्यवहार करने वाली शिक्षिकायें तथा परिचारिकायें नहीं होतीं तथा अन्य क्षेत्रों में भी स्त्रियों ने शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपनी सर्वोच्च सेवाएँ प्रदान की है

9. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा अवबोध हेतु — अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा अवबोध की स्थापना में स्त्रियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। शिक्षा के द्वारा दृष्टिकोण में संकीर्णता के स्थान पर व्यापकता आती है जिससे ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का विकास होता है यदि स्त्रियाँ विश्व शान्ति और समझ के पथ पर अग्रसर होंगी तो निश्चित ही सम्पूर्ण विश्व और भावी पीढ़ियाँ उस मार्ग का अनुसरण करने को बाध्य होंगी।

इस प्रकार चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा की आवश्यकता तथा संवैधानिक प्रावधानों की पूर्ति, संविधान प्रदत्त अधिकारों के सदुपयोग, आदर्श नागरिकों, अनिवार्य तथा निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा आवश्यक है। वर्तमान में यह सरकारों के महत्त्वपूर्ण और प्राथमिक कार्यों में से एक है। वर्षों से स्त्रियों को एक प्रकार की मानसिक दासता में रखा गया है जिस कारण से वे अपनी शक्तियों को भी नहीं जान सकती हैं। अतः उन्हें इस मानसिकता से बाहर निकालने, पुरुषों की श्रेष्ठता तथा एकाधिकार के भ्रम को तोड़ने हेतु स्त्री शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व अत्यधिक है ।

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Anjali Yadav

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