दिनकर की काव्यगत विशेषताएँ
दिनकर जी की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. प्रकृति प्रेम- दिनकर जी के काव्य स्वभाव में प्रकृति के प्रति एक अबोध आकर्षण है। वे समस्त प्राकृतिक व्यापारों में एक आत्मीयता का अनुभव करते हैं। इसलिए जहाँ भी उन्होंने प्रकृति वर्णन किया है वह मार्मिक और सजीव है। उसके यथार्थ वर्णन के कारण उसमें गीतात्मकता की अपेक्षा कथात्मकता अधिक है।
2. भाषा शैली- दिनकर जी की काव्य भाषा विशुद्ध खड़ीबोली हैं। तत्सम शब्दों का प्रयोग बड़ी सफलता के साथ हुआ है। शब्द योजना पुष्ट और भावानुकूल है। भावों की शिथिलता भाषा में ही मिलती। उनकी भाषा शैली पूर्णरूप से विचारों और भावों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ है। प्रत्येक शब्द विचार और भावों का वाहक बन गया है। दिनकर जी के काव्य में कहीं भी क्लिष्ट शब्द योजना नहीं मिलेगी। शब्दों का तोड़ मरोड़ और व्याकरण की अशुद्धियाँ नहीं मिलतीं। शाब्दिक चमत्कार तथा साहित्य प्रदर्शन के चक्कर में दिनकर जी कहीं नहीं पड़े। लाक्षणिता तथा व्यंजक शब्दों का प्रयोग भी उन्होंने बहुत कम किया है। इसलिए इनकी शैली अत्यन्त परिमार्जित और प्रौढ़ है। सरलता और सुबोधता ही भाषा की अपनी सौन्दर्य विशेषता है। दिनकर जी की छन्द-योजना में नवीनता है तथा अलंकारों के प्रयोग में भी स्वाभाविकता है। उनकी समस्त रचनाओं में भाव और भाषा का सामंजस्य मिलता है।
3. ओज गुण की प्रधानता- दिनकर जी की कविता में माधुर्य की अपेक्षा ओज की प्रधानता है। उनकी रचनाओं का ओज गुण प्राणदायिनी शक्ति भर देता है। ‘हुँकार’ और ‘सामधेनी’ में दिनकर जी की ओजपूर्ण कविताओं का संकलन है।
4. दिनकर के काव्य में राष्ट्रीयता और जागरण का स्वर- दिनकर जी के काव्य में देशव्यापी राष्ट्रीयता और जागरण का स्वर मुखरित हुआ है। उसमें भारत के विगत स्वर्ण युग की सुनहली, ममतामयी, करुण मूर्ति सजीव हो उठी है तथा वर्तमान में लौह श्रृंखला में जकड़ी हुई आर्य संस्कृति की पतितावास्था के प्रति असन्तोष व्यक्त हुआ है। दिनकर जी मुख्यत: जन चेतना के गायक हैं। भारत की स्वतंत्रता से पूर्ण अपने काव्य के द्वारा पूरी शक्ति से ब्रिटिश साम्राज्यशाही का विरोध किया और आप निरन्तर क्रान्ति का आह्वान करते रहे। स्वराज नहीं आया है और उसके लिए संघर्ष की आवश्यकता है। देश की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार जन भावना का सदैव ही दिनकर जी को ध्यान रहा है। वे राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता के सजग प्रहरी रहे हैं। जन भावनाओं को काव्य के माध्यम से अभिव्यक्त करना दिनकर जी के काव्य की प्रमुख विशेषता है।
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