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दोपहर का भोजन कहानी की विशेषताएँ

दोपहर का भोजन कहानी की विशेषताएँ
दोपहर का भोजन कहानी की विशेषताएँ
कहानी कला की दृष्टि से दोपहर का भोजन कहानी की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

दोपहर का भोजन अमरकांत द्वारा रचित मध्यमवर्गीय कहानी कार की मार्मिक पीड़ा को अभिव्यक्ति देता है। जिसमें कहानी कार ने यथार्थवादी कोण अपनाया है। यद्यपि कहानी प्राचीन है कि किन्तु उसकी प्रासंगिकता आज भी समाज में बनी हुई है। कई परिवार आज भी ऐसे है जिनके घर में भोजन के हिस्से निगले जाते है। हर व्यक्ति अपनी भूख को परे रख उतने ही हिस्से में आत्मसंतुष्टि करता है। वही जवान शिक्षित बेटे की बेरोजगारी घर के वातावरण को और भी तनावग्रस्त कर देती है। युवा स्वयं को घर वालों की नजर में गुनाहगार मान उनसे नजरें चुराता है वहीं घर का प्रोढ़ वर्ग (पिता) उनकी काबलियत को नकारा समझ उनकी कटु आलोचना करते हैं ऐसे में गृहिणी के लिए चुनौती हो जाती है कि वह कैसे इस वातावरण से सामंजस्य बनाए। इसी स्थिति को कहानीकार ने दोपहर कहानी के माध्यम से व्यक्त किया है।

कहानी की विशेषताओं को कहानी कला के तत्वों के आधार पर व्यक्त कर सकते-

1. कथानक– कहानी का कथानक संक्षिप्त है। मुंशी चंद्रिका प्रसाद जो मकान किराया-नियंत्रण विभाग में क्लर्क के पद पर है। डेढ़ माह पूर्व छंटनी के दौरान उनकी बहाली हो गई। जाहिर है इसके प्रभाव आर्थिक रूप से परिवार को भी प्रभावित कर गया। परिवार में तीन बेटे रामचंद्र, मोहन, प्रमोद, और पत्नी सिद्धेश्वरी अर्थात् कुल पाँच लोग है। आमदनी शून्य और पाँच लोगों की जिम्मेदारी कैसे संभव हो। चंद्रिका प्रसाद की परेशानी अपनी जगह सही है। स्थिति यह है कि घर में किसी को भी पेट भर भोजन नहीं मिल पाता है। भारतीय नारी-पानी पीकर तृप्ति का अहसास कर लेती, किन्तु भूखे पेट में पानी लग जाता और वह राम राम कहकर जमीन पर में लेट जाती उसकी वृशकाय देह वही जमीन पर ढेर हो जाती आधे घंटे बाद होश में आना तो उसकी दृष्टि औसारे पर टूटी खटोली पर नगं – घड़ग, हाथ-पैर ककड़ी पेट धमकड़ी कह कहावत को सार्थक करता छोटे बेटा प्रमोद पर पड़ती है जो अपनी ही पीड़ा से रो रहा है वह उठकर उसके मुंह पर अपना फटा ब्लाउज ढाक देती है।

दोपहर के बाद उसका बड़ा बेटा राम चंद्र घर में आकर बैठते ही बेजान सा लेट जाता है। इक्कीस वर्ष का इंटर पास यह नव युवक स्थानीय दैनिक समाचार के दफ्तर से प्रूफ रीडिंग का काम सीख रहा है। सिद्धेश्वरी अपने भूखे बेटे के सामने दो रोटी कटोरी में पनियाई दाल और चने की तरकारी थाली में परोसकर लाती है। भोजन करते समय रामचंद्र पूछता है बाबूजी खा चुके? मोहन कहा है? प्रमोद रोया तो नहीं? इस तरह वह घर के सभी समाचार माँ से जानता है। सिद्धेश्वरी प्रत्येक प्रश्न का झूठ-मूठ जवाब देती हैं। क्योंकि सच बोलकर वह थके हुए बेटे के चेहरे पर आई परेशानी के भाव पैदा करना नहीं चाहती। वह यह बात जानती है कि भोजन सीमित मात्रा में है फिर भी घर के प्रत्येक सदस्य को वह आई भोजन लेने का आग्रह करती है।

सभी के भोजन करने पर पति की झूठी थाली में स्वयं भोजन करने बैठ जाती है। पर कोई में कटोरी भर दाल भी नहीं है रोटी भी एक आखिर की जली हुई बची है, चने की तरकारी में महज कुछ ही दाने बचे है। इन सबको थाली में लेकर जब वह भोजन करने बैठती है तो उसकी दृष्टि खटोली पर पड़े प्रमोद पर जाती है और वह आधी रोटी तोड़कर उसके लिए रख देती है और लोटा भर पानी के साथ भोजन करने बैठ जाती है। सिद्धेश्वरी मुंह में रोटी का निवाला रखती है और आँखों में बेचारी के आँसू निकल रहे है। घर में मनहूसियत की निशानी मक्खियो ने अपना साम्राज्य फैला रखा है। उधर मुंशीजी निश्चिंत है सो रहे है।

2. चरित्र चित्रण – कहानीकार पात्र संयोजना के माध्यम से चरित्र चित्रण सृष्टि करता है। प्रस्तुत कहानी में पाँच पात्रों की संरचना कहानीकार ने की है जिसमें सिद्धेश्वरी रज कदानी जी प्रमुख पात्र है जो सदैव घर और परिवार के प्रति समर्पित है। यद्यपि उसे परिवार के लोगों से झूठ ही क्यों न बोलना पड़े। तथ्यों को परिवार वालों से छिपवाना ही क्यों न पड़े। वह प्रत्येक सदस्य के समक्ष उसकी तारीफ ही नहीं करती बल्कि एक-दूसरे के प्रति सदभाव भी व्यक्त करती है।

जैसे रामचन्द्र के पूछने पर कि मोहन कहाँ गया है? वह उत्तर देती है अभी दोस्त के यहाँ पढ़ने गया है। उसकी तबियत चौबीस घंटे पढ़ने में ही रहती है। जबकि सच्चाई यह है कि वह कहाँ गया है उसे नहीं पता। वह अपने कर्त्तव्य के प्रति लापरवाह है वह जानती है फिर भी कहती है मोहन तुम्हारा बहुत मान करता है। कहता है भैया का शहर के पढ़े-लिखे लोगों में बहुत सम्मान है।

वही कहानी का दूसरा पात्र मुंशी दंद्रिका प्रसाद एक निश्चिंत व्यक्ति हैं वे कभी भी पत्नी की बातों को गंभीरता से नहीं लेते न ही उसकी बातों का प्रासंगिक उत्तर ही देते है। जहाँ सिद्धेश्वरी एकान्त में सबकों लिखकर बचे हुए भोजन से अपना गुजारा करती है घर के हालातों में को देख चिंतागुस्त रहती है चंद्रिका प्रसाद निश्चित हो सो रहा है।

3. कथोपकथन– कथोपकथन कहानी के विकास में सहायक होते है। कहानीकार अपने भावों एवं विचारों को पात्रों के संवादों के माध्यम से व्यक्त करते हुए कहानी को विकास की ओर ले जाते है।

प्रस्तुत कहानी ज्येष्ठ पुत्र रामचंद्र भोजन का प्रथम निवाला निगलते ही पूछता है ‘मोहन कहाँ है, बड़ी कड़ी धूप है। माँ सिद्धेश्वरी झूठ-मूठ ही कह देती है किसी लड़के के यहाँ पढ़ने गया है आता ही होगा। दिमाग उसका बड़ा तेज है।’ सिद्धेश्वरी रामचंद्र से उसकी नौकरी के बारे में पूछती है वहाँ कुछ हुआ…. सरवाई से उत्तर मिलता है समय आने पर सब कुछ ठीक हो जाएगा। कहीं पर यह संबंध हास्य की सृष्टि करता है। जैसे सिद्धेश्वरी बोली मालूम होता है अब बारिस नहीं होगी। मुंशी जी जो स्वभाव से गंभीर है सदैव अप्रासंगिक उत्तर देते है— ‘मक्खियाँ बहुत हो गई है। ‘

जब सिद्धेश्वरी उत्सुक्ता प्रकट कहती है फूफाजी बीमार है कोई समाचार नहीं आया। मुंशी जी ने चने के दानों को देखते हुए कहा गंगा शरण बाबू की लड़की की तय हो गई है। लड़का एम. ए. पास है। इस प्रकार कहानी में ये कथानक पाठकों को कहानी से बाँधे रखते हैं कभी मर्मिकता के कारण तो कहीं हास्य पुट को लेकर।

4. देशकाल और वातावरण – वातावरण किसी भी कहानी को स्वाभाविकता के मूल्यांक का अवसर प्रदान करते है। प्रस्तुत कहानी वातावरण की दृष्टि से अपनी सफलता सिद्ध करती है। जैसा कि कहानी का शीर्षक है दोपहर का भोजन। संपूर्ण कहानी दोपहर को किए भोजन के दौरान ही घटित होती है। सिद्धेश्वरी दोपहर को भोजन बन चुकने के बाद चूल्हा ठंडा कर वही घुटनों के बीच सिर रखकर बैठी है। घर के हालात इतने बदतर है कि एक वक्त भी भरपेट भोजन किसी को नहीं मिल पा रहा है। सिद्धेश्वरी के हालात और भी बदतर है। भोजन के अभाव में वह कृशकाम हो गई हैं, पसलियाँ नजर आ रही है। भूख लगने पर वह लोटा भर पानी गटक लेती है किन्तु भूखे पेट में पानी भी नुकसान पहुंचा जाता है वह असहनीत पीड़ा के साथ वहीं जमीन पर लेट जाती हैं।

वही थोड़ी-थोड़ी देर में वह दरवाजे तक जाकर गली में निहारती है। बारह बज चुके है धूप बहुत तेज हो गई हैं गली में गहरा सन्नाटा है इक्का-दुक्का लोग सिर पर गमछा और छाता लिए नजर आ रहे है। बेटा रामचन्द्र थके कदमों से धीरे-धीरे सरकता सा नजर आता है। रामचन्द्र घर में आते ही चौकी पर निढाल हो बैठ जाता है। उसका चेहरा धूप से लाल चुका है। जूते आर्थिक तंगी को बयान कर रहे हैं। फटे जूतों में धूल की गर्त जमी हुई है। इस तरह कहानी में दोपहर और भोजन दोनों का ही सजीव चित्रण लेखक करने में सफल रहे हैं।

5. भाषा शैली- पात्रों के अनुभूत भाषा शैली का प्रयोग कहानी के कथन को न केवल रोचक बनाता है बल्कि उसके प्रभाव को भी स्थापित करता है।

प्रस्तुत कहानी की भाषा शैली अत्यन्त सरल एवं सजीव है। पात्रों के अनुकूल भाषा का प्रयोग करने में कहानीकार का प्रयास सफल सिद्ध हुआ है। कहीं-कहीं ध्वन्यात्मक सौन्दर्य और सानु प्रासंगिकता भाषा में मिलती है। जैसे गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई। वउद्ये लड़के के लिए बड़ धू भर कटोरा पनियाई दाल गट-बट बड़ा भू पनियाई दाल आदि ग्रामीण शब्दों का प्रयोग कर लेखक ने वातावरण को सजीवता प्रदान की है। इसी तरह हिम्मत, इम्लहान, प्रूफ रीडिंग आदि हुई एवं अंग्रेजी शब्दों का यथा स्थान उचित प्रयोग किया है।

एक स्थान पर कहानीकार का स्वकथन प्रस्तुत है-

वह एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्रों के दफ्तर में अपनी तबियत से प्रूफ रीडरी का काम सीखता था। कथनों में सहज सरल प्रवाह है, वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। कहीं अंक कारिक शैली तो कहीं व्यंग्य का प्रयोग कहानी को सजीवता प्रदान करता है।

यथा – यथा उसके हाथ पैर बासी लड़कियों की तरह सूखे तथा वे जान पड़े थे और उसका पैर हंडिया की तरह फूला हुआ था।

6. उद्देश्य- प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य भारतीय समाज के पक्ष से अवगत कराना है। जहाँ विकास के दावे थोथे सिद्ध हुए है। शासन का ध्यान उस ओर आकर्षित करने के साथ-साथ समाज के युवकों में बेरोजगारी का दंश जो परिवारों की मुस्कान छीन रहा है। इंटरपास रामचन्द्र आज के ऐसे युवाओं का प्रतिनिधित्व करता है जो उच्च परिवार है जिन्हें एक समय भी पेट भर भोजन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है बच्चे कुपोषक का शिकार है जिसका जीता जागता उदाहरण है प्रमोद। घर में मक्खियों का सामृज्य न केवल दरिद्रता बल्कि स्वाथ्य संबंध असावधानी को दर्शाता है।

वहीं गृहस्वामी बेकितु है और भारतीय नारी जो अभाव के भी सांमजस्य बैठाना जानती है। सिद्धेश्वरी इसका प्रतिनिधित्व करती है।

7. शीर्षक– कहानी का शीर्षक दोपहर का भोजन अत्यन्त उपयुक्त शीर्षक है। क्योंकि संपूर्ण कहानी दोपहर के भोजन को ध्यान रखकर रची गई है। इतना ही नहीं यदि कहानी शीर्षक को दो भागों में भी विभाजित करते हैं यथा दोपहर भोजन तो कहानी इस कसौटी पर भी खरी उतरती है। जिसमें गर्मी की चिलचिलाती दोपहर का भी लेखक ने चित्र प्रस्तुत किया है और भोजन को लेकर घर की पीड़ा को भी कहानी में साकार किया है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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