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धरातल पर परिवर्तन लाने वाली शक्तियों को आप कक्षा में कैसे समझायेंगे?

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धरातल पर परिवर्तन लाने वाली शक्तियों को आप कक्षा में कैसे समझायेंगे?

धरातल पर परिवर्तन लाने वाली दो प्रकार की शक्तियां हैं-

  1. आंतरिक शक्तियां और
  2. दूसरी बाह्य शक्तियां।

1. आंतरिक शक्तियां-

धरातल पर परिवर्तन लाने वाली ये आंतरिक शक्तियां कई तरह की हलचल पैदा कर देती है। ये हैं भूकम्प और ज्वालामुखी

(अ) भूकम्प- पृथ्वी के आंतरिक भाग में गर्मी की अधिकता के कारण चट्टाने – निकलने लगती है और पृथ्वी की ऊपरी परत कहीं पतली पड़ जाती है तो कहीं आंतरिक भाग में स्थित जल के वाष्प बनने की मात्रा बढ़ जाती है। आंतरिक चट्टानों में जब दबाव या खिंचाव बढ़ जाता है तब भूगर्भ के किसी भाग में चट्टाने खिसकने या टूटने जैसी हलचल होती है। इसी हलचल के कारण पृथ्वी का ऊपरी धरातल भी कांप उठता है, जिसे हम भूकम्प कहते हैं। इसके कारण धरातल पर कई परिवर्तन होते देखे जाते हैं। कहीं चट्टाने खिसक जाती है। कहीं ऊपर उठ आती हैं कहीं दरारे पड़ जाती है। नदियों के मार्ग बदल जाते हैं सड़कों व रेलमार्गों की हानि होती है तथा जान-माल की बहुत हानि होती है।

(ब) ज्वालामुखी – भूगर्भ की गर्म और पिघली चट्टानें दहकते लावें के रूप में किसी छिद्र या दयर से जब पृथ्वी की ऊपरी सतह से निकलती है तो यही ज्वालामुखी कहलाती है।

ज्वालामुखी उदय के यही कारण है। इनमें ऊपरी दबाव कारण या आंतरिक हलचल से चट्टानों का खिसकना तथा आंतरिक भाग में जलवाष्प की अधिकता हो जाना मुख्य कारण है। जब घनी जलवाष्प पृथ्वी के ऊपरी परत पर दबाव डालती है तब कमजोर परत टूट जाती है। चट्टानों पर दबाव से पड़ी दरार में होकर गर्म लावा, वाष्प, गैसें, राख चट्टानों के टुकड़े एक भयंकर विस्फोट के साथ बाहर निकल पड़ते हैं। ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे से नवीन भू-रचना होती है। उपजाऊ मिट्टी की परत जमा हो जाती है। भूगर्भ की गर्मवाष्प निकल जाती है। इस तरह ज्वालामुखी धरातल पर परिवर्तन लाने वाली एक शक्ति के रूप में कार्य करती है।

2. बाह्य शक्तियां

पृथ्वी के बाहरी धरातल पर परिवर्तन करने वाली आंतरिक शक्तियां इतने बड़े पैमाने में परिवर्तन नहीं कर पाती, जितना बाहरी शक्तियां करती हैं जिनमें बहता हुआ पानी, हवाएं हिमनदियां अद्योभौमिक (भूमिगत) जल और समुद्री लहरें, प्रमुख हैं।

(क) बहता हुआ पानी – प्रवाहित जल धरातल की ऊपरी सतह पर सबसे पहले अधिक परिवर्तन लाने वाला होता है। यह ऊंचे पहाड़ो पठारो से मिट्टी बहाकर निचले भू भागों और समुद्र के तलों में उसे जमा करके सम्पूर्ण धरातल को समतल बनाने का कार्य करता रहता है। वर्षा जल से बनने वाली छोटी नदियों से लेकर बड़ी-बड़ी नदियों तक सभी इस महत्वपूर्ण कार्य में लगे हुए हैं।

(ख) हवाएं- बहते हुए पानी के समान ही हवाएं भी भू-तल पर परिवर्तन लाती हैं। शुष्क और अर्धशुष्क प्रदेशों में सूर्यपात से विखंडित और पूर्ण-चूर्ण हुई चट्टानों के रेत कणो को हवा अपने साथ उड़ाकर ले जाती है। रेत कणों के टकराने से दूसरी चट्टानें टूटती-फूटती घिसती रहती हैं।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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