मस्तिष्क की उस क्रिया को जिसमें किसी वस्तु को देखकर उसकी विशेषताओं का सही ज्ञान प्राप्त किया जाता है, निरीक्षण कहते हैं।
भूगोल शिक्षण की विधि सभी स्तरों पर उपयुक्त मानी गई है, किन्तु प्रारम्भिक कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिये विशेष रूप से उपयुक्त यमिक कक्षाओं का बालक प्रारम्भिक अवस्था में अपने घर, ग्रामीण एवं नागरिक वातावरण के सम्पर्क में आता है इस प्रकार वह उस वातावरण के निरीक्षण के माध्यम से भौगोलिक तथ्यों, सामान्य प्रत्ययों (Concepts) तथा सरल सिद्धान्तों की जानकारी प्राप्त करता है। इस प्रकार जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे उसका बौद्धिक विकास और भौगोलिक ज्ञान बढ़ता जाता है। बालक बड़ा होकर खाली निरीक्षण मात्र से ही सन्तुष्ट नहीं होता, वरन् वह विवेचन, विश्लेषण तथा तर्क करने की ओर बढ़ता है तथा कार्य व कारण के सम्बन्धों को स्थापित करने का प्रयत्न करता है। इस विधि को अधिक उपयोगी बनाने के लिये यह आवश्यक है कि निरीक्षण क्रिया में आकर्षण और मनोरंजन हो ।
भूगोल की शिक्षा को सजीव तथा मनोरंजक बनाने के लिये यह आवश्यक है कि छात्र भौगोलिक वस्तुओं को अपनी आँखों से देखें। छात्र अपने स्थानीय भूगोल का निरीक्षण करके दूसरे स्थानों की परिस्थितियों एवं वातावरण की कल्पना कर सकेंगे।
निरीक्षण विधि का प्रयोग विशेष रूप से प्राकृतिक (Physical), मानवीय (Human) तथा आर्थिक (Economic) भूगोल का अध्ययन करने के लिये किया जाता है।
धरातल की रचना, नदी का कार्य, जंगलों का उगना, बादल, सूर्य के उदय व अस्त होने का समय, न्यूनतम तथा अधिकतम ताप की माप, वर्षा की माप, पहाड़, मैदान, झरना, नदी आदि का निरीक्षण, वर्षा की मात्रा, मौसम का बदलना आदि बातों का निरीक्षण प्राकृतिक भूगोल के अन्तर्गत कराया जा सकता है।
“Geography is essentially an observational science, Geography lies not in the class-room but out of the class-room. Therefore, the students of geography should often be taken out of the bounds of he school to observe geographical facts like temperature, pressure, direction and velocity of wind, clouds, rivers, lakes and mountains etc. The above mentioned things cannot be understood without observing them in actual form and shape.”
मानवीय भूगोल के तत्त्व भी निरीक्षण द्वारा आसानी से समझाये जा सकते हैं। बालक को खेतों में, कारखानों में, खानों में, मिलों तथा फैक्टरियों में ले जाकर उन्हें बताया जा सकता है कि मानव अपने जीवन-यापन के लिये विभिन्न उद्योग-धन्धे क्यों अपनाता है।
आर्थिक भूगोल सम्बन्धी जानकारी के लिए बच्चों को रबी तथा खरीफ की फसल के बोने व काटने का समय एवं इनमें उत्पन्न होने वाली फसलों का निरीक्षण, यातायात के साधन, गाँव एवं शहर के मुख्य मुख्य बाजार तथा मानव के उद्यम आदि का प्रेक्षण कराया जा सकता है।
निरीक्षण पद्धति की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि अध्यापक उस स्थान को पूर्व जाकर देख ले, जिसका निरीक्षण करना है। अध्यापक को जिन-जिन बातों की जानकारी देनी होती है, उनको वह निश्चित क्रम से दिखाता जाता है। समय-समय पर वह बच्चों के प्रश्नों का उत्तर देता चलता है तथा उनसे प्रश्न भी पूछता जाता है।
भूगोल संग्रहालय की वस्तुओं, मानचित्र, चित्र, चार्ट तथा ग्लोब आदि का निरीक्षण करके बालक बहुत-सी भौगोलिक बातों को समझ जाते हैं।
भ्रमण के समय प्राप्त वस्तुओं को विद्यालय के संग्रहालय के लिये एकत्र करना चाहिये।
कठिनाइयाँ
भ्रमण पर ले जाने में पहली कठिनाई अनुशासन की है। कक्षा से बाहर जाने पर छात्रों पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता है।
कभी-कभी छात्रों को अभिभावकों की आज्ञा भी भ्रमण के लिये नहीं मिल पाती।
निरीक्षण विधि द्वारा अधिक समय नष्ट होता है।
मार्ग व्यय भी अधिक होता है।
इन सब कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है और भूगोल की शिक्षा को निरीक्षण द्वारा रुचि पूर्ण व स्थाई बनाया जा सकता है। वास्तव में, भूगोल की शिक्षा प्रदान करने के लिये निरीक्षण विधि एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण विधि है।
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