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न्याय की परिभाषा, रूप, विशेषता एवं अधिकार विषय-वस्तु पर चर्चा कीजिए।
न्याय की परिभाषा- न्याय को अंग्रेजी में जस्टिस कहते हैं। जस्टिस शब्द लैटिन भाषा के शब्द जस से बना है जिसका अर्थ होता है बंधन या बंधना। इसका अभिप्राय यह है कि न्याय उस व्यवस्था का नाम है जिसके द्वारा एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से जुड़ा हुआ है । न्याय की भाषा का इस बात से संबंध है कि एक व्यक्ति के दूसरे के साथ नैतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा कानूनी संबंध क्या सारांश न्याय की अवधारणा बहुत ही प्राचीन है । न्याय की अवधारणा राजनीतिक सिद्धान्त में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और इसका सम्बन्ध व प्रभाव मनुष्य जीवन के प्रत्येक पक्ष से है। सदियों से मनुष्य न्याय प्राप्त करने के यत्नशील रहा है और यदि उसको समाज में उचित न्याय नहीं मिलता तो भगवान से सच्चे न्याय की प्रार्थना करता है। न्याय ही वह जीवन का आधार है जो मनुष्य को सत्य, कर्म, अहिंसा और ईमानदारी की राह पर ले जाता है। न्यायिक व्यक्ति ही दूसरों के साथ सच्चाई और ईमानदारी का पालन करता है । अत्याचार से ग्रस्त व्यक्ति को न्याय द्वारा ही छुटकारा मिलता है। न्याय की अवधारणा का अध्ययन करने का मुख्य उदेश्य न्याय की महत्वता व कमियों पर विचार करना व सुधार के उपाय बताना है। क्योंकि न्याय एक देश की सर्वोतम व्यवस्था है जो कि समाज की भावना से जुड़ी हुई है जैसा की- न्याय ही अराजकता, कलह, विवाद, अशांति भ्रष्टाचार और शोषण से मुक्ति देता है । न्याय की भावना मानव जीवन और सामाजिक व्यवस्था की आधारशिला है। न्याय ही प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के प्रति अधिकारों व स्वतन्त्रताओं का लाभ उठाने का माहौल बनाता है। यदि किसी स्थान की न्यायिक व्यवस्था उत्तम होती है तो वहां का कण-कण विकास करता है । न्याय की भावना सामाजिक सम्बन्धी और निजि स्वार्थो के बीच एक उचित संतुलन बनाती है। जिससे व्यक्ति की सामाजिक व्यवस्था एक नैतिक आधार लेकर मजबूत बनती जाती है । न्याय के बिना किसी का जीवन और सम्पत्ति भी सुरक्षित नहीं। न्याय के बिना एक सुदृड़ समाज और राज्य की कामना भी नहीं की जा सकती । न्याय और न्यायिक व्यवस्था के तो समाज में एक जंगल जैसा माहौल बन जाएगा । न्याय के अनेक रूपों में से सामाजिक न्याय काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है । सामाजिक न्याय व्यक्ति के जीवन की एक ऐसी कड़ी है जिसके बिना व्यक्ति का कोई अस्तित्व भी नहीं। सामाजिक न्याय की अवधारणा का सम्बन्ध अर्थिक न्याय के साथ भी जुड़ा है। सामाजिक न्याय की अवधारणा से पहले हम न्याय का अर्थ और परिभाषा को देखते हैं ।
प्लेटो के अनुसार न्याय वह गुण है जो अन्य गुणों बीच मिलन स्थापित करता है। सालमंड के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उसका भाग प्रदान करना ।
न्याय :- विभिन्न रूप राजनीति शास्त्र में न्याय को बहुत अधिक महत्व दिया गया है । हर युग में समाज के अन्दर न्याय की मांग रही है। इसीलिए आज न्याय के अनेक रूपों या प्रकारों में न्याय की चर्चा की जाती है।
1. प्राकृतिक न्याय, 2. नैतिक न्याय 3. सामाजिक न्याय, 4. राजनीतिक न्याय, 5. आर्थिक न्याय ।
न्यायिक व्यवस्था : न्याय विशेषताएं एवं तत्व :-
न्याय के निम्नलिखित तत्व हैं और विशेषताएं इस प्रकार है-
- एक नैतिक अवधारणा है।
- एक पविर्तनशील अवधारणा है ।
- निष्पक्षता ।
- बहुपक्षीय अवधारणा है ।
- कानून और नैतिक न्याय में संबंध
- कानूनी और नैतिक न्याय में संबंध परंपरागत रूप से न्याय की दो धाराणाएं रहीं हैं नैतिक और कानूनी, न्याय राज्य में कानून द्वारा स्थापित सिद्धान्त व प्रक्रिया से संबंधित है । नैतिक न्याय का संबंध ठीक और गलत से है। यदि कोई कानून नैतिक-न्याय के आदर्शों के अनुसार नहीं है तो उसे अन्याय कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए माता पिता का कर्त्तव्य है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें, परन्तु यदि कोई माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा नहीं देते तो वह बच्चों के साथ नैतिक न्याय नहीं कर रहे हैं। पर न्यायालय ऐसे माता-पिता को दंड नहीं दे सकता ।
न्याय और अधिकार :-
न्याय और अधिकार की बात का जुड़ाव केवल न्यायपालिका से ही नहीं है। न्याय एक चरित्र है। जैसे बहादुरी एक चरित्र है, मिलनसार होना एक चरित्र है, न्याय आता है उस पड़ोस से, जिसने आपके साथ अन्याय होते देखा है और उसके खिलाफ वह आपके साथ खड़ा होता है न्याय आता है उस अधिकारी और तत्र से जहां आप अपने हक के लिए जाते हैं, जैसे उस पुलिस थाने के अधिकारियों और कर्मचारियों से, जो आपके हक को समझें और आपके साथ ऐसा व्यवहार करें, जिससे आपका मनोबल और व्यवस्था में विश्वास बरकरार रहे । यदि उसका चरित्र न्यायिक नहीं तो वह आपके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं करेगा और आपका केस इस तरह से दर्ज नहीं किया जाएगा । जिससे आपको आगे चल कर न्याय मिले सके, इसके बाद आप अदालत में जाते हैं।
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