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परम्परागत राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ

परम्परागत राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ
परम्परागत राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ

पराम्परागत राजनीति विज्ञान की विशेषताओं को संक्षेप में लिखिए।

परम्परागत राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ

परम्परागत राजनीति विज्ञान दर्शन एवं कल्पना पर आधारित है। परम्परावादी विचारक अधिकांशतः दर्शन से प्रभावित रहे हैं। इन विचारकों ने मानवीय जीवन के मूल्यों पर ध्यान दिया हैं। इनके चिन्तन की प्रणाली निगमनात्मक है। परम्परागत राजनीति विज्ञान में प्लेटो का विशेष महत्व है। सिवली के अनुसार परम्परागत राजनीति विज्ञान का विशेष रूप हमें प्लेटो की रचनाओं में देखने को मिलता है। ‘रिपब्लिक’ में प्लेटो द्वारा प्रतिपादित ‘आदर्श राज्य’ की अवधारणा परम्परागत राजनीति विज्ञान का श्रेष्ठतम नमूना है।

परम्परागत राजनीति विज्ञान की विशेषताओं का अध्ययन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से कर सकते हैं-

1. कल्पनात्मक पद्धतिः- परम्परागत राजनीतिक विचारक पहले किसी राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना करते हैं, तत्पश्चात् उसे क्रियात्मक रूप देने का प्रयास करते हैं। जैसे प्लेटो ने आदर्श राज्य की कल्पना की ओर फिर उस आदर्श राज्य की स्थापना का प्रयास किया। इस प्रकार की चिन्तन षैली आदर्शवादी सिद्धान्त के निर्माण में सहायक होती है।

2. अपरिष्कृत अध्ययन पद्धतियाँ :- परम्परागत राजनीति विज्ञान अध्ययन पद्धति की दृष्टि से ऐतिहासिक, दर्शन प्रधान और वर्णनात्मक रहा है। परम्परागत राजनीति विज्ञान लम्बे समय तक इतिहास की चार दीवारी में ही फला-फूला और ऐतिहासिक संकल्पनाओं के इर्द-गिर्द ही अपनी अध्ययन सामग्री को संजोता रहा। राजनीतिक चिन्तकों ने राज्य, कानून प्रभुसत्ता, अधिकार, न्याय आदि संकल्पनाओं के विवेचन में ही राजनीति विज्ञान को परिसीमित कर दिया।

3. कानूनी औपचारिक संस्थागत अध्ययन पर बल:- परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन का बिम्ब राजनीतिक एवं सरकारी संस्थाओं का ही रहा तथा इनका अध्ययन भी कानूनी औपचारिक और संस्थागत था। जहाँ लिखित संविधान थे वहाँ संविधान में तथा जहाँ लिखित संविधान नहीं थे वहाँ कानून के द्वारा व्यवस्था का क्या रूप रखा गया है, केवल उक्त बात को विस्तृत रूप में दर्शाना, इस परिप्रेक्ष्य के अध्ययनों का उद्देश्य रहा है। डायसी, मुनरों, ऑग तथा जिंक ने अपने अध्ययन को औपचारिक संस्थागत अध्ययन तक ही सीमित रखा है।

4. राज्य को नैतिक संस्था मानता है:- परम्परागत राजनीति वैज्ञानिक राज्य को एक नैतिक संस्था मानते हैं। अरस्तु के अनुसार “राज्य का अस्तित्व सद्जीवन के लिए है, मात्र जीवन के लिए नहीं। “रूसो के अनुसार नागरिको की वह इच्छा जिसका उद्देश्य सामान्य हित है, और सामान्य इच्छा ही राज्य है”

5. संकुचित अध्ययन है :- यह अध्ययन पाश्चात्य राजनीतिक व्यवस्थाओं तक ही सीमित रहा है। इन्होंने साम्यवादी जगत् और तीसरी दुनिया के विकासशील देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं के अध्ययन की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। पाश्चात्य राज्यों की परिधि में रहते हुए इन लेखकों ने केवल लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्थाओं को ही अध्ययन का बिन्दु बनाया। एक्सटिन तथा ऐप्टर के शब्दों में “परम्परागत दृष्टिकोण पाश्चात्य राजनीतिक व्यवस्थाओं तक सीमित रहा और प्रमुख तथा एक संस्कृति संरूपण या समूह का ही इसमें अध्ययन किया गया।”

संक्षेप में, परम्परागत राजनीति विज्ञान कल्पना और दर्शन पर आधारित है। पुरातन राजनीतिशालियों के अनुसंधान तथा विश्लेषण की प्रमुख विधियाँ ऐतिहासिक एवं वर्णनात्मक रहीं। इनका साहित्य पुस्तकालयों में बैठ कर लिखा गया। उनके निष्कर्ष तर्क पर आधारित हैं। वे शासन प्रणालियों के औपचारिक, कानूनी तथा संस्थात्मक अध्ययन पर बल देते हैं।

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Anjali Yadav

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