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परिव्यय प्रणाली की स्थापना का अर्थ | परिव्यय प्रणाली की स्थापना के विचारणीय बिन्दु | लागत लेखांकन की विभिन्न पद्धतियाँ

परिव्यय प्रणाली की स्थापना का अर्थ | परिव्यय प्रणाली की स्थापना के विचारणीय बिन्दु | लागत लेखांकन की विभिन्न पद्धतियाँ
परिव्यय प्रणाली की स्थापना का अर्थ | परिव्यय प्रणाली की स्थापना के विचारणीय बिन्दु | लागत लेखांकन की विभिन्न पद्धतियाँ

परिव्यय प्रणाली की स्थापना से क्या आशय है? इस प्रणाली की स्थापना हेतु ध्यान देने योग्य बातें बताइए तथा लागत लेखांकन की विभिन्न पद्धतियाँ बताइये।

परिव्यय प्रणाली की स्थापना का अर्थ (Meaning of Installation of Cost System) – एक परिव्यय प्रणाली की स्थापना व्यय नहीं है बलिक एक विनियोग है क्योंकि जो व्यय इसकी स्थापना पर किया जाता है इससे कहीं अधिक उससे पुरस्कार प्राप्त होता है। प्रणाली व्यवसाय के लिए होती है, व्यवसाय प्रणाली के नहीं। अतः प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो कि व्यवसाय की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के योग्य व सार्थक सिद्ध हो सके।

परिव्यय प्रणाली की स्थापना के विचारणीय बिन्दु

परिव्यय प्रणाली की स्थापना में निम्न विचारणीय बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए-

1. उद्देश्य – प्रणाली की स्थापना का उद्देश्य क्या एक विशेष दायरे उदाहरणार्थ, सामग्री का प्रबन्ध या बिक्री मूल्यों का निर्धारण तक ही सीमित, अथवा कोई प्रबन्धकीय निर्णय लेने तक सीमित है, या यह व्यवसाय की लागत को प्रभावित करने वाले सभी अंगों को सुचारु रूप से चलाने के लिए है, आदि को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि प्रणाली की स्थापना की पहुँच इसके उद्देश्य पर ही निर्भर करेगी।

2. कार्य क्षेत्र – उद्देश्य के निश्चयन के पश्चात् स्थापना का कार्य क्षेत्र देखना चाहिए तथा तय करना चाहिए कि किन कार्यों को प्राथमिकता देनी है। यदि उत्पादन कम है तो इसे बढ़ाने के लिए प्रणाली को अधिक ध्यान देना होगा। यदि उत्पादन ठीक है परन्तु बिक्री कम है तो उस दिशा में बिक्री पर अधिक ध्यान दिया जायेगा।

3. व्यवसाय का संगठन – कोई भी परिव्यय प्रणाली सफल नहीं हो सकती है जब तक व्यवसाय के संगठन पर ध्यान न दिया जाय। इसका अध्ययन कार्य प्रणाली को उन्नत बनाने में सहायक होता है। यदि संगठन में मामूली परिवर्तन वांछनीय हो तो उनको किया जाना चाहिए।

4. व्यवसाय का आकार व स्वरूप- बड़े आकार के एक व्यवसाय में परिव्यय प्रणाली को विस्तृत रूप में लागू किया जा सकता है, जबकि एक छोटे व्यवसाय में इस प्रणाली को छोटे रूप में लागू करने की आवश्यकता होती है, ताकि इसके स्थापना के व्यय व चलाने के व्यय इससे प्राप्त उपयोगिता से कम ही रहें।

परिव्यय प्रणाली उन व्यवसायों के लिए उपयुक्त रहती है जो या तो निर्माण कार्य में या सेवा प्रदाय कार्यों में संलग्न रहते हैं, अन्य के लिए नहीं। कुछ ऐसे भी निर्माण या उत्पादन कार्य वाले व्यवसाय होते हैं जहाँ उत्पादन लागतें सभी प्रत्यक्ष लागतें ही होती हैं जैसे कि कोयले की खान का व्यवसाय और जहाँ वित्तीय लेखे उत्पादन लागतों का पूरा लेखा रख सकते हैं, वहाँ इस प्रणाली को लागू करना आवश्यक नहीं समझा जाता है।

5. उत्पाद- निर्मित वस्तु के स्वभाव के आधार पर परिव्ययांकन पद्धति (Method of Costing) का अपनाना निर्भर किया करता है। दूसरे, यदि उत्पाद इस प्रकार का है जिसमें सामग्री का उपयोग अधिक मूल्यवान है तो सामग्री का विस्तृत पूरा लेखा होना चाहिए ताकि सामग्री लागत नियन्त्रण में रहे। यही बात श्रम व उपरिव्ययों को लागू होती है।

लागत लेखांकन की विभिन्न पद्धतियाँ (Techniques of Costing)

लागत लेखांकन की प्रविधियाँ निम्नलिखित है-

1. ऐतिहासिक परिव्ययांकन – जब सभी व्यय हो चुकते हैं, तब अलग-अलग विभिन्न लागतों को ज्ञात करना ऐतिहासिक परिव्ययांकन कहलाता है।

2. मानक परिव्ययांकन- पहले उत्पादन की मानक लागत निर्धारित कर ली जाती हैं और फिर उसकी तुलना वास्तविक लागत से की जाती है। जो अन्तर होता है, उसका कारण ज्ञात करना मानक परिव्ययांकन है। मानक लागत (Standard cost) वह है जो कि सामान्य अवस्था में होनी चाहिए तथा वास्तविक लागत (Actual cost) वह है जो कि वास्तव में पड़ी है।

3. सीमान्त परिव्ययांकन- इस प्रविधि के व्ययों को दो विभागों में बाँटा जाता है— (i) स्थायी व्यय, तथा (ii) परिवर्तनशील व्यय स्थायी व्यय वे हैं जो कि उत्पादन के बढ़ने या घटने पर अप्रभावित रहते हैं, अर्थात् उनमें परिवर्तन नहीं होता। परिवर्तनशील व्यय वे हैं जो उत्पादन बढ़ने या घटने पर उसी के अनुरूप बढ़ते या घटते हैं। अतः व्ययों में उपर्युक्त प्रकार से भेद कर जो लागत निकाली जाती है, वह सीमान्त परिव्ययांकन है। साथ में उत्पादन की मात्रा बढ़ाने या घटाने से या उत्पादन की किस्म में परिवर्तन करने से लाभ कहाँ तक बढ़ेगा या घटेगा, यह जानकारी भी सीमान्त परिव्ययांकन से होती है।

4. प्रत्यक्ष परिव्ययांकन – समस्त प्रत्यक्ष लागतों को उत्पादन लागत में शामिल करना तथा समस्त अप्रत्यक्ष लागतों को उस अवधि के लाभ से अपलिखित करना, प्रत्यक्ष परिव्ययांकन कहलाता है। यह प्रविधि सीमान्त परिव्ययाकन जैसी ही है। यहाँ प्रत्यक्ष लागत का अर्थ परिवर्तनशील लागत से है तथा प्रत्यक्ष लागत का अर्थ स्थायी लागत से है। अन्तर केवल इतना है कि यहाँ उचित अवस्थाओं में स्थायी लागत को भी प्रत्यक्ष लागत माना जा सकता है। कुछ विदेशी लेखक ‘सीमान्त परिव्ययांकन’ के स्थान पर ‘अप्रत्यक्ष परिव्ययांकन’ का प्रयोग करते हैं।

5. अवशोषण परिव्ययांकन- लागत निकालते समय स्थायी व परिवर्तनशील लागतों में भेद नहीं किया जाता, दोनों को मिश्रित रूप से ही उत्पादन पर चार्ज करना अवशोषण परिव्ययांकन है।

6. एकरूप परिव्ययांकन- कई एक ही प्रकार के व्यवसायों के द्वारा एक ही लागत सिद्धान्तों तथा लेखा करने की क्रियाओं को समान रूप से अपनाना ‘एकरूपता परिव्ययांकन’ है। इस प्रविधि से वे व्यवसाय एक-दूसरे के अनुभव से लाभ उठाते हैं।

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Anjali Yadav

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