पाठ्यचर्या के निर्धारक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
पाठ्यचर्या के निर्धारक तत्व
शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है, जिसके तीन प्रमुख चरण होते हैं-शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम पाठ्यचर्या जो कि पाठ्यचर्चा का भाग होता है, मिश्रित व आश्रित चरण के रूप में कार्य करता है, इसके अतिरिक्त उद्देश्य की कसौटी होती है-विषय वस्तु के साथ सार्थक संबंध विषय वस्तु के आकार व प्रकार में परिवर्तन होते हैं जो सीखने वाले की आवश्यकता, रूचि, क्षमता तथा उद्देश्यों के सन्दर्भ में पढ़ायी या सिखायी जाने वाली विषय वस्तु का चयन, निर्माण तथा प्रस्तुतीकरण व प्रयोग पाठ्यचर्या तत्वों का आरम्भ आवश्यकता के रूप में किया जाता है। पाठ्यचर्या तत्वों तथा आरंभिक आवश्यकता के रूप में तत्वों के द्वारा किया जाता है।
किसी विषय के शिक्षण के लिए निर्धारित उद्देश्य क्या है ? इसका निर्धारण लक्ष्यों द्वारा किया जाता है और उसकी प्राप्ति के लिए विषय वस्तु का चयन, विश्लेषण एवं निर्माण किया जाता है। इस विषय वस्तु का उद्देश्यों के साथ सार्थक संबंध स्थापित कर अधिगम अनुभव प्रदान किये जाते हैं। शिक्षक-शिक्षार्थी की अन्तः क्रिया के द्वारा अधिगम अनुभव एवं विषय वस्तु का संगठन किया जाता है। उद्देश्यों की प्राप्ति का पता लगाने के लिए व्यवहार परिवर्तन की साक्षियों का संकलन के रूप में मूल्यांकन किया जाता है।
इन पाठ्यचर्चा तत्वों द्वारा ही संकल्पनाओं का मानचित्रण किया जाता है जो शिक्षण एवं अधिगम के लिए आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा बौद्धिक स्तर बढ़ाया जाता है और जटिल व अमूर्त ज्ञान को सरल व मूर्त बनाया जाता है।
एडविन टॉलर ने “सीखा कैसे जाए” पर विचार इंगित करते हुये इसे शिक्षा व्यवस्था के मूल उद्देश्य के रूप में माना है। विभिन्न समितियों व शिक्षाविदों ने भी इस विषय पर बल दिया। भारतीय शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में रटने की परम्परा अधिक प्रचलित है जिसमें छात्र का ज्ञान पूर्व ज्ञान से नहीं जुड़ता है। रटने की परम्परा तथ्यों को याद करने पर बल देती है। लेकिन अर्थपूर्ण अधिगम या सम्प्रत्यात्मक बोध को प्रोत्साहित नहीं करती। यह स्पष्ट है कि संकल्पना मानचित्रण द्वारा पाठ्यचर्या विकास तथा नियोजन अधिगम का सरलीकरण संभव है। संकल्पना मानचित्रण द्वारा छात्रों में सम्प्रत्यय निर्माण में सुधार संभव है। संकल्पना मानचित्र द्वारा छात्र मूर्त दृश्य सहायता के रूप में ज्ञान का संगठन कर सकते हैं।
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