शिक्षण विधियाँ / METHODS OF TEACHING TOPICS

पाठ योजना का ब्लूम या मूल्यांकन उपागम से क्या अभिप्राय है ?

पाठ योजना का ब्लूम या मूल्यांकन उपागम से क्या अभिप्राय है ?
पाठ योजना का ब्लूम या मूल्यांकन उपागम से क्या अभिप्राय है ?

पाठ योजना का ब्लूम या मूल्यांकन उपागम से क्या अभिप्राय है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।

ब्लूम उपागम के प्रवर्तक (Pioneer) बी० एस० ब्लूम (B. S. Bloom) थे। शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन उपागम एक नये प्रत्यय (Concept) के रूप में उभर कर सामने आया। इस उपागम के अनुसार शिक्षा की सभी प्रक्रियायें उद्देश्य केन्द्रित (Objective Centred) होती हैं। शिक्षा में परीक्षण तथा शिक्षण की क्रियाएँ उद्देश्य केन्द्रित कर दी जाती हैं।

मूल्यांकन उपागम के पद (Steps of Evaluation Approach)

बी० एस० ब्लूम (B. S. Bloom) ने शिक्षा को त्रिपदी (Tripolar) प्रक्रिया मानते हुए इस उपागम के तीन पद बताये हैं। ये तीनों पद निम्नलिखित हैं-

  1. शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण करना (Formulation of Educational Objectives)।
  2. उद्देश्यों के लिये उपयुक्त अधिगम-अनुभव प्रदान करना (To provide learning experiences appropriate to objectives) |
  3. व्यवहार परिवर्तन या अधिगम का मूल्यांकन (Evaluation of Change of Behaviour or Learning)।
1. शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण करना (Formulation of Educational Objectives)

शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण करना मूल्यांकन उपागम का सबसे पहला पद है। इस उपागम में शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया माना गया है। इसलिये इस उपागम के निर्माण के अन्तर्गत कुछ बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक हो जाता है। ये बातें निम्नलिखित हैं-

(a) शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित करते समय समाज की सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखना अति आवश्यक है।

(b) एक ही पाठ्य-वस्तु को भिन्न-भिन्न स्तरों पर पढ़ाया जाता है। इसलिये भिन्न-भिन्न स्तरों पर उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न होने चाहियें। इसलिये उद्देश्यों का निर्धारण स्तर-केन्द्रित होना चाहिये।

(c) प्रत्येक विषय की प्रकृति (Nature) भिन्न होने के कारण प्रत्येक विषय के उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न होने चाहियें।

2. उद्देश्यों के लिए उपयुक्त अधिगम-अनुभव प्रदान करना (To Provide Learning Experiences Appropriate to Objectives)

अधिगम-अनुभव का अर्थ है कि वे साधन जिनकी सहायता से उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। दिन-प्रतिदिन होने वाले सभी तरह के अनुभवों को ही अधिगम- अनुभव नहीं कहते, बल्कि स्कूल तथा उसके बाहर प्राप्त किए गए अनुभवों को ही अधिगम-अनुभवों के नाम से जाना जाता है। ये वे अधिगम-अनुभव हैं, जिनके द्वारा शिक्षण-उद्देश्यों को प्राप्त करने में उपयुक्त सहायता मिलती है। कक्षा में अध्यापक शिक्षण के अन्तर्गत ऐसी क्रियायें करता है, जिससे विद्यार्थियों को अपेक्षित अधिगम-अनुभव होने लगते हैं। ये अनुभव ऐसे तरीके से दिए जाते हैं, ताकि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके। मूल्यांकन उपागम के इस पद में शिक्षण विधि, शिक्षण-प्रविधि, अनुदेशन, सहायक सामग्री आदि आते हैं। जैसे-बोध उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये अध्यापक प्रश्नोत्तर विधि, प्रदर्शन-विधि, मॉडल दिखाना, वाद-विवाद विधि का प्रयोग करके अधिगम- अनुभव प्रदान कर सकता है। ज्ञान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अध्यापक को चार्ट दिखाना, गृहकार्य, व्याख्यान आदि विधियों का प्रयोग करके अधिगम-अनुभव विद्यार्थियों को प्रदान कर सकते हैं। सृजनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अध्यापक समस्या-समाधान विधि आदि का प्रयोग करके अधिगम-अनुभव प्रदान कर सकता है तथा प्रयोग उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये अध्यापक अनुवर्ग शिक्षण, प्रयोगात्मक विधि, समस्या समाधान विधि, अन्तःक्रिया आदि विधियों का प्रयोग करके विद्यार्थियों को अधिगम-अनुभव प्रदान कर सकते हैं।

3. व्यवहार परिवर्तन या अधिगम का मूल्यांकन (Evaluation of Change of Behaviour or Learning)

इन उपागम के दूसरे पद में बताये गए अधिगम-अनुभवों को प्रदान करके विद्यार्थियों में वांछित व्यवहार परिवर्तन लाये जा सकते हैं। इन व्यवहार परिवर्तनों का मूल्यांकन इस उपागम के प्रथम पद में निर्धारित किए गए उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है। दूसरे पद के दौरान प्रदान किए गये अधिगम-अनुभवों को प्रभावशीलता प्रथम पद में निर्धारित किये गये उद्देश्यों को कहाँ तक प्राप्त किया है, पर निर्भर करती है। विद्यार्थियों में व्यवहार परिवर्तन तीन तरह के हो सकते है-

  1. ज्ञानात्मक (Cognitive) |
  2. भावात्मक (Affective) |
  3. क्रियात्मक (Psychomotor) |

मूल्यांकन उपागम में इन तीनों तरह के व्यवहार परिवर्तनों को मापने और मूल्यांकन की व्यवस्था होती है। जैसे—–ज्ञानात्मक पक्ष को मापने और मूल्यांकन के लिए निरीक्षण (Observation), निबन्धात्मक परीक्षायें (Essay Type Test), मौखिक (Oral), वस्तुनिष्ठ (Objective Type) और साक्षात्कार (Interview) का प्रयोग किया जाता है। भावात्मक पक्ष को मापने और मूल्यांकन के लिये रेटिंग स्केल (Rating Scale), निबन्धात्मक परीक्षायें, निरीक्षण, अभिरुचि परीक्षणों (Aptitude Tests) का प्रयोग किया जा सकता है। क्रियात्मक पक्ष को मापने और मूल्यांकन के लिये प्रयोगात्मक (Experimental), निरीक्षण, साक्षात्कार (Interview), प्रदर्शन (Demonstration) विधि का प्रयोग किया जाता है।

मूल्यांकन उपागम में पाठ-योजना के घटक (Components of Lesson Plan in Evaluation Approach)

ब्लूम के मूल्यांकन उपागम द्वारा पाठ-योजना के लिए निम्नलिखित घटकों का प्रयोग किया जाता है-

1. शिक्षण-बिन्दु (Teaching point)- मूल्यांकन उपागम में पाठ-योजना के इस घटक में विषय-वस्तु को लेकर शिक्षण-बिन्दुओं को निर्धारित किया जाता है।

2. उद्देश्यों का निर्धारण (Determination of Objectives)- इस घटक के दौरान विषय-वस्तु के शिक्षण के लिए सामान्य उद्देश्य निर्धारित करने के पश्चात् विशिष्ट उद्देश्यों को लिखा जाता है। इन विशिष्ट उद्देश्यों को व्यावहारिक शब्दावली ( Behavioural Terms) के रूप में लिखा जाता है।

3. शिक्षण की क्रियायें (Activities to be Performed by the Teacher)- उद्देश्यों के निर्धारण और विशिष्टीकरण के पश्चात् इस पद में अध्यापक द्वारा कक्षा में सम्पन्न की जाने वाली क्रियाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाता है, जिससे अध्यापक कक्षा में समय नष्ट न कर सकें।

4. विद्यार्थी की क्रियायें (Activities to be Performed by the Students)- अध्यापक की क्रियाओं के उत्तर में अनुक्रियाओं (Responses) के रूप में विद्यार्थियों की क्रियाओं का निर्धारण इस पद में किया जाता है।

5. विधि प्रविधि तथा शिक्षण सामग्री (Method, Techniques and Teaching Aids)- अधिगम अनुभव ( Learning Experiences) प्राप्त करने के लिए पाठ-योजना में इस पद के अन्तर्गत शिक्षण विधियों, प्रविधियों तथा शिक्षण सामग्रियों का निर्धारण किया जाता है

6. मूल्यांकन (Evaluation)- इस पद में मूल्यांकन उन विधियों, प्रविधियों का उल्लेख किया जाता है, जिनका उपयोग शिक्षण के पश्चात् किया जाता है। इन विधियों एवं प्रविधियों की सहायता से यह देखा जाता है कि शिक्षण तथा अधिगम उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त हुए हैं।

मूल्यांकन उपागम के गुण (Merits of Evaluation Approach)

  1. यह उपागम शिक्षण अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित है।
  2. इसमें विधियों, प्रविधियों तथा व्यूह रचनाओं का स्पष्ट दर्शन सम्भव है।
  3. इस उपागम में शिक्षण-बिन्दुओं को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाता है।
  4. अध्यापक और विद्यार्थी की क्रियाएँ स्पष्ट की जाती हैं।
  5. इसमें मूल्यांकन पर बल दिया जाता है।
  6. इस उपागम में शिक्षा के तीन घटकों पर बल दिया गया है।
  7. इस उपागम में शैक्षिक उद्देश्यों को व्यावहारिक शब्दावली में लिखा जाता है।

मूल्यांकन उपागम के दोष (Demerits of Evaluation Approach)

  1. इस उपागम में अधिगम अनुभवों, उद्देश्यों तथा मूल्यांकन प्रविधियों में समन्वय लाभ कठिन है।
  2. इस उपागम में मानसिक योग्यताओं की ओर ध्यान नहीं दिया जाता।
  3. इसमें शिक्षक का नियन्त्रण अधिक होता है।
  4. विद्यार्थी और अध्यापक की क्रियाएँ निर्धारित करके उनकी स्वतन्त्रता में कमी कर दी जाती है।
  5. इस उपागम में पाठ-योजना का कार्य अधिक यांत्रिक (Mechanical) हो जाता है, क्योंकि इसमें विद्यार्थी और अध्यापक की क्रियायें पहले से ही निर्धारित कर दी जाती हैं।

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Anjali Yadav

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