‘पारिभाषिक शब्दावली’ से क्या अभिप्राय है? पारिभाषिक शब्दावली की विशेषताएं बताइये। पारिभाषिक शब्दावली के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसके निर्माण के विविध सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
मुख्यतः पारिभाषिक शब्द अंग्रेजी के टेक्निकल (Technical) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। मूल अंग्रेजी Technical शब्द ग्रीक भाषा के Technikoi अर्थात् ‘of Art’ (कला का या कला विषयक) से अपनाया गया है। ‘Techne’ से तात्पर्य है – कला तथा शिल्प ग्रीक भाषा में ‘Tekton’ शब्द का अर्थ निर्माण करने वाला (निर्माता) अथवा ‘बढ़ई’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। लैटिन भाषा में ‘Texere’ शब्द का अर्थ है ‘बुनना’ या ‘बनाना’। इस सन्दर्भ में अर्थ हुआ तकनीकी शब्द वह शब्द है जो किसी निर्मित अथवा खोजी गई वस्तु अथवा विचार को व्यक्त करता हो ।
अतः कहा जा सकता है कि पारिभाषिक शब्द वह है जो किसी विशिष्ट ज्ञान के क्षेत्र एक निश्चित निर्धारित अर्थ में इस्तेमाल होता है। रैंडम हाउस डिक्शनरी में पारिभाषिक शब्द को यों परिभाषित किया गया है : अ वर्ड ऑफ फ्रेज़ यूज्ड इन डेफिनिट और प्रिसाइज सेंस इन सम पर्टिकुलर सब्जेक्ट ऐज़ अ साइंस ऑर आर्ट अ टेक्निकल इम्प्रेशन (मोर फुली टर्म ऑफ़ आर्ट)। यानी “विशिष्ट विषय जैसे विज्ञान अथवा कला विषय की तकनीकी अभिव्यक्ति के लिए निश्चित अथवा विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त एक शब्द अधिकांशतः कला का शब्द।”
भारतीय भाषा वैज्ञानिकों और कोश वैज्ञानिकों ने भी पारिभाषिक शब्द को समझने की कोशिश की है। मशहूर कोश विज्ञानी डॉ. रघुवीर ने पारिभाषिक शब्द को परिभाषित करते हुए लिखा है— “पारिभाषिक शब्द किसको कहते हैं, जिसकी परिभाषा की गयी हो । पारिभाषिक शब्द का अर्थ है जिसकी सीमाएं बांध दी गयी हों। जिन शब्दों की सीमा बाँध दी जाती है, वे पारिभाषिक शब्द हो जाते हैं और जिनकी सीमा नहीं बाँधी जाती, वे साधारण शब्द होते हैं।” यानी डॉ. रघुवीर के अनुसार पारिभाषिक शब्दों की तीन विशेषताएँ हैं-
- पारिभाषिक शब्द वह है जिसकी परिभाषा की गयी है।
- पारिभाषिक शब्द वह है जो विशिष्ट अर्थ में बांध दिया गया है।
- पारिभाषिक शब्द वह है जो सामान्य से अलग अपनी पहचान रखता है।
लेकिन मशहूर भाषा वैज्ञानिक डॉ. भोलानाथ तिवारी ने पारिभाषिक शब्द को और भी स्पष्ट करते हुए लिखा है-
“पारिभाषिक शब्द ऐसे शब्दों को कहते हैं जो रसायन, भौतिकी, दर्शन, राजनीति आदि विभिन्न विज्ञानों या शास्त्रों के शब्द होते हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट अर्थ में सुनिश्चित रूप से परिभाषित होते हैं। अर्थ और प्रयोग की दृष्टि से निश्चित रूप से परिभाषित होने के कारण ही ये शब्द पारिभाषिक शब्द कहे जाते हैं।”
प्रयोग के आधार पर पारिभाषिक शब्द तीन प्रकार के होते हैं-
1. सामान्य- इसके अन्तर्गत साधारण व्यवहार में किये गये शब्दों के प्रयोग को लिया जा सकता है, जैसे पलंग, दाँत, बुखार, हृदय, सत्य आदि ।
2. अर्द्ध पारिभाषिक – इसके अन्तर्गत वे शब्द आते हैं जो पारिभाषिक अर्थ में प्रयुक्त होते हैं और सामान्य अर्थ में भी। जैसे, संधि संधि सुलह भी है और वर्णों की संधि भी।
3. पूर्ण पारिभाषिक – इसके अन्तर्गत वे शब्द आते हैं जो पूर्ण रूप से पारिभाषिक होते हैं, जैसे-ध्वनि, ग्राम, दशमलव, हिमोग्लोबीन।
लेकिन डॉ० भोलानाथ तिवारी ने इतिहास के आधार पर पारिभाषिक शब्दों को तत्सम, तद्भव, विदेशी और देशी के रूप में बाँटने का सुझाव दिया है। स्रोत के आधार पर वे स्वयं पारिभाषिक शब्दावली को तीन भागों में विभाजित करने की चर्चा करते हैं-
- भाषा में पहले से प्रयुक्त शब्द
- दूसरी भाषा से गृहीत शब्द
- नवनिर्मित शब्द
जहाँ तक पारिभाषिक शब्दों की विशेषताओं का सवाल है, तो चाहे विदेशी विद्वान् हों या भारतीय सब ने अपनी-अपनी दृष्टि से विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। जैसे यदि यूनेस्को की ओर से प्रोफेसर आगस्टिनो सेवोरिन ने ‘साइंटिफिक एंड टेक्निकल ट्रांसलेशन एंड अदर ऐस्पेक्ट्स ऑफ लैंग्वेज प्राब्लम’ में इस सम्बन्ध में विचार व्यक्त किया है, तो डॉ. भोलानाथ तिवारी ने ‘पारिभाषिक शब्दावली’ और डॉ. सत्यव्रत ने ‘भारतीय राष्ट्रभाषा, सीमाएँ तथा समस्याएँ’ में विचार व्यक्त किया है। यहाँ पारिभाषिक शब्दों की चुनिंदा विशेषताएँ दी जा रही हैं-
1. उच्चारण की दृष्टि से पारिभाषिक शब्दों को सरल होना चाहिए, ताकि इनके प्रयोग में प्रयोगकर्ताओं को कोई परेशानी न हो।
2. यदि पारिभाषिक शब्द किसी दूसरी भाषा से लिया जाये तो ‘अनुकूलन पद्धति के तहत उसे अपनी भाषा की प्रकृति के अनुरूप ढाल लेने में कोई बुराई नहीं, जैसे अंग्रेजी के ‘एकेडमी’ शब्द को हिन्दी में ‘अकादम’ लिखने और बोलने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए।
3. पारिभाषिक शब्द का अर्थ सुनिश्चित होना चाहिए यानी उसका एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाना चाहिए।
4. मूल पारिभाषिक शब्दों में जनन शक्ति अनिवार्य है ताकि आवश्यकतानुसार उनमें उपसर्ग, प्रत्येय या शब्द जोड़कर अन्य सम्बद्ध शब्द बनाये जा सकें।
5. समान श्रेणी के शब्दों में एकरूपता रहनी चाहिए जैसे ताप के साथ तापमापी का प्रयोग ताप के साथ थर्मामीटर से बेहतर लगता है, बशर्ते प्रचलन में लाया जाये।
6. पारिभाषिक शब्दों में संक्षिप्तता के साथ-साथ सांकेतिकता का गुण भी होना चाहिए ताकि थोड़े संकेत से भी उस शब्द का पूरा अर्थ निकल सके जैसे नवभारत टाइम्स के लिए ‘नभाटा’।
निर्धारण पद्धति
जहाँ तक पारिभाषिक शब्दावली के निर्धारण का प्रश्न है, तो इसके निर्धारण में चार प्रकार की पद्धतियाँ काम में लायी जाती हैं-
(1) ग्रहण, (2) अनुकूलन, (3) संचयन, (4) निर्माण।
1. ग्रहण (Acceptability)- इस पद्धति के अन्तर्गत यूरोपीय भाषाओं में प्रचलित पारिभाषिक शब्दों को अपनी भाषा में ज्यों-का-त्यों ग्रहण करने का सुझाव दिया जाता है और बतौर फायदे के पहला तर्क यह दिया जाता है कि इससे नयी शब्दावली गंढ़ने में जो अतिरिक्त श्रम, समय तथा व्यय होगा, वह बचेगा साथ ही दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि अंग्रेजी की शब्दावली क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली है, इसलिए इसे अपनाने से वैज्ञानिक, औद्योगिक तथा प्राविधिक क्षेत्रों में पूरी दुनिया से हमारा सहज संवाद और सम्बन्ध बन जाएगा, लेकिन भाषा वैज्ञानिकों का एक तबका ऐसा है जो नवीन पारिभाषिक शब्द संरचना की प्रक्रिया में ‘ग्रहण’ करने के नाम पर यूरोपीय शब्दावली को अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली कूहकर भारतीय भाषाओं में घुसेड़ने का विरोध करता है, लेकिन ऐसे शब्दों को स्वीकार करने में उसे कोई उम्र नहीं जो हमारी भाषा में वर्षों से प्रयोग के कारण घुल-मिल गये हैं। या ऐसे शब्द जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान, व्यापार अथवा शासन आदि विभिन्न वजहों से हमारी भाषा में चले आये हैं, जैसे पेट्रोल, कार और रेडियो आदि लेकिन अब ये शब्द हमारी भाषा के ही लगने लगे हैं।
2. अनुकूलन (Adaptability ) – अनुकूलन वह प्रक्रिया है जिसके तहत विदेशी शब्दावली को अपनी भाषा की ध्वनि एवं व्याकरणिक विशेषताओं के अनुकूल ढाल लिया जाता है, जैसे अंग्रेज़ी का शब्द है ‘एंजिन’, लेकिन हिन्दी में इसके लिए ‘इंजन’ शब्द धड़ल्ले से प्रयोग होता है। अंग्रेजी का ‘एकेडमी’ हिन्दी में ‘अकादमी’ खूब चल गया है, अंग्रेजी का ‘अपीलेट’ हिन्दी में अपीलीय सरकारी दफ्तरों के लिए चौंकाने वाला नहीं रहा। ऐसे कितने ही शब्द हैं जिनकी लम्बी फेहरिस्त बनायी जा सकती है।
3. संचयन (Collection) संचयन से तात्पर्य इकट्ठा करने से है यानी इसके तहत भारतीय भाषाओं, उप-भाषाओं तथा बोलियों के उपयुक्त अछूते शब्दों का पारिभाषिक रूप में संचय और प्रयोग किया जाना चाहिए।
4. निर्माण (Creation ) पारिभाषिक शब्दों का निर्माण हिन्दी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि आखिर कब तक हम विदेशी शब्दावली पर निर्भर रह सकते हैं या ग्रहण, अनुकूलन व संचयन से काम चला सकते हैं। पारिभाषिक शब्दावली की अपनी सम्पदा तो होनी ही चाहिए, लेकिन इसका निर्माण सरल कार्य नहीं है। बकौल श्री विनोद गोदरे यह सिर्फ चीनी, ग्रीक, लैटिन तथा संस्कृत में ही सम्भव है क्योंकि धातु, उपसर्ग एवं प्रत्यय ही ऐसे महत्वपूर्ण तत्त्व हैं जिनसे शब्द निर्माण की प्रक्रिया सरल हो जाती है। लेकिन डॉ. डी. एस. कोठारी ने पारिभाषिक शब्दावली की जो बुनियादी विशेषताएं बतायी हैं वे हैं उपयोगिता, सरलता एवं लचकीलापन, जबकि डॉ. रघुवीर ने निम्न सिद्धान्त बताये हैं-
1. प्रत्येक मुख्य अर्थ के लिए एक पृथक् शब्द हो, जैसे-पावर के लिए शक्ति, फोर्स के लिए बल और एनर्जी के लिए ऊर्जा।
2. प्रत्येक शब्द अन्वर्थ अर्थात् अर्थानुगामी हो, जैसे स्थानांतरण की माप या स्पीड के लिए गति और स्थानांतरण की प्रवृत्ति के लिए चाल।
3. असमस्त पदों का परिमाप चार अक्षरों से अधिक नहीं होना चाहिए, जैसे फॉसफोरस के लिए भास्वर।
4. यूरोपीय शब्दों के विभिन्न या अनेक प्रतीकों व संक्षेपों के भारतीय शब्द भी विभिन्न या अनेक प्रतीक व संक्षेप वाले होने चाहिए, जैसे-गणित, रसायन आदि के संक्षेप व प्रतीक चिह्न।
5. यूरोपीय असमस्त पदों का अनुवाद असमस्त पदों से किया जाय अर्थात् शब्द व्याख्यात्मक नहीं होना चाहिए, जैसे-सिग्नल के लिए संकेतक न कि अग्नि रथ गमनागम/न सूचक लोहपट्टिका।
6. यथाशक्य उपसर्गों से और प्रत्ययों का अनुवाद प्रत्ययों से करना चाहिए, जैसे- Phosph से ate, ated, atic, atcle, ation, ide, in, inic, onic आदि प्रत्यय एक-एक, दो-दो बार लगते हैं। Phosph का अनुवाद भास्व, ate का ईय, Phosphate= भास्वीय।
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