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प्रतिभू के क्या अधिकार होते हैं? उदाहरणों की सहायता से इसे स्पष्ट कीजिए।
प्रतिभू के अधिकार – प्रतिभू को मूलऋणी, ऋणदाता व सहप्रतिभू के विरुद्ध निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं-
मूल ऋणी के विरुद्ध अधिकार
1. भुगतान या निष्पादन पर- यदि मूल ऋणी के त्रुटि करने पर प्रतिभू ऋण का भुगतान करता है अथवा गारण्टी या प्रत्याभूति से सम्बन्धित अपने कर्तव्यों का निष्पादन करता है, तो उसे वे सभी अधिकार मूल ऋणी के विरुद्ध प्राप्त हो जाते हैं, जो ऋणदाता को मूल ऋणी के विरुद्ध प्राप्त थे। (धारा 140)
2. क्षतिपूर्ति पाने का गर्भित अधिकार- प्रत्येक प्रत्याभूति अनुबन्ध में मूल ऋणी द्वारा यह गर्भित वचन होता है कि वह प्रतिभू की क्षतिपूर्ति करेगा और प्रतिभू उन सभी राशियों को प्राप्त करने का अधिकार रखता है जो उसने वैधानिक रूप से चुकाई है, लेकिन यदि प्रतिभू ने कोई राशि गलत ढंग से चुकाई, तो उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रतिभू को नहीं होगा। (धारा 145)
उदाहरण– ‘क’, ‘ख’ का ऋणी है और इस ऋण के लिए ‘ग’ प्रतिभू है। ‘क’, ‘ख’ से धन की माँग करता है और इसके इनकार करने पर उसके विरुद्ध वाद प्रस्तुत करता है। कुछ उचित आधार होने के कारण ‘ग’ वाद का प्रतिवाद करता है। किन्तु ‘ग’ व्यय सहित ऋण चुकाने के लिए बाध्य होता है। यहाँ पर ‘ग’, ‘ख’ से मूल ऋण तथा वाद का कानूनी व्यय दोनों पाने का अधिकारी है।
II. ऋणदाता के विरुद्ध अधिकार
प्रतिभू को ऋणदाता के विरुद्ध एक ही अधिकार प्राप्त है-
प्रतिभूति का लाभ पाने का अधिकार – प्रतिभू को ऐसी प्रत्येक प्रतिभूति का लाभ पाने का अधिकार है जो गारण्टी का अनुबन्ध करते समय ऋणदाता के पास मूल ऋणी के विरुद्ध हो-चाहे प्रतिभू को ऐसी प्रतिभूति के विषय में मालूम हो अथवा नहीं। यदि ऋणदाता ऐसी प्रतिभूति को खो देता है या बिना प्रतिभू की सहमति के उस प्रतिभूति को पृथक् कर देता है तो प्रतिभू उस प्रतिभूति के मूल्य की सीमा तक दायित्व से मुक्त हो जाता है।
उदाहरण– ‘स’ ने ‘ब’ को एक ऋण दिया है जो डिक्री द्वारा सुरक्षित है। ‘स’ ने ‘अ’ से इस ऋण के लिए प्रत्याभूति भी प्राप्त की है। बाद में ‘स’, ‘ब’ की वस्तुएँ डिक्री के अधीन निष्पादन में ले लेता है और फिर ‘अ’ की बिना जानकारी के उन वस्तुओं को लौटा देता है। यहाँ ‘अ’ अपने दायित्व से मुक्त हो जायेगा।
III. सह-प्रतिभू के विरुद्ध अधिकार
जबकि एक ऋण अथवा वचन के निष्पादन के लिए दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा प्रत्याभूतियाँ प्रदान की गयी हैं, तो वे सह-प्रतिभू कहलाते हैं। सह-प्रतिभू के विरुद्ध किसी विशिष्ट व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं-
(i) समान भाग के लिए दायित्व- धारा 146 के अनुसार, “जब दो या अधिक व्यक्ति समान ऋण या दायित्व के लिए या तो पृथक्-पृथक् या संयुक्त रूप से सह-प्रतिभू हैं, जो विपरीत अनुबन्ध के अभाव में, प्रत्येक प्रतिभू पारस्परिक रूप में सम्पूर्ण ऋण के लिए अथवा मूल देनदार द्वारा भुगतान न किये अंश में उत्तरदायी होगा।”
उदाहरण – X, Y तथा Z, 6000 रु० के ऋण के लिए जो A द्वारा B को दिया गया है। सह-प्रतिभू हैं। B भुगतान में त्रुटि करता है। X, Y तथा Z प्रत्येक 2,000 चुकाने के लिए बाध्य हैं यदि A सम्पूर्ण भुगतान X से प्राप्त कर लेता है तो X2,000 रु० Y से तथा 2,000 रु० Z से प्राप्त करने का अधिकारी है।
(ii) पृथक्-पृथक् राशियों के लिए सह-प्रतिभू का दायित्व- धारा 147 के अनुसार, “वे सह-प्रतिभू पृथक्-पृथक् राशियों के लिए उत्तरदायी हैं, जो अपनी प्रत्याभूतियों को सीमा तक समान अंश देने के लिए उत्तरदायी होंगे।”
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