प्रतिभू कौन होता है? किन परिस्थितियों में प्रतिभू अपने दायित्व से मुक्त हो से जाता है ?
प्रतिभू (Surety) कौन होता है? – भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 की धारा 126 के अनुसार “प्रतिभूति का अनुबन्ध एक ऐसा अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को किसी तीसरे व्यक्ति की त्रुटि की दशा में उसके (तीसरे व्यक्ति) वचन का निष्पादन करने अथवा उसके दायित्वों का भुगतान करने का वचन दिया जाता है।”
वह व्यक्ति जो प्रतिभूति देता है प्रतिभू तथा वह व्यक्ति जिसकी त्रुटि के लिए प्रतिभूति दी जाती है, मूल ऋणी कहलाता है। इस प्रकार की दशा में निम्नलिखित तीन अनुबन्ध होते हैं-
(1) मूल ऋणी और ऋणदाता के बीच मूल अनुबन्ध ।
(2) प्रतिभू और ऋणदाता के बीच प्रतिभूति का अनुबन्ध
(3) प्रतिभू और मूल ऋणी के बीच गर्भित अनुबन्ध ।
प्रतिभूति का अनुबन्ध लिखित अथवा मौखिक दोनों रूप में हो सकता है। प्रतिभूति देने वाला पक्षकार का दायित्व केवल उसी दशा में उत्पन्न होता है जबकि मूल ऋणी कोई त्रुटि करे अन्यथा प्रतिभू पर कोई भार उत्पन्न नहीं होता।
परिस्थितियां जिसमें प्रतिभू अपने दायित्वों से मुक्त हो जाता है
एक प्रतिभू की दायित्व से मुक्ति का आशय प्रतिभूति अनुबन्ध की समाप्ति होता है। एक प्रतिभू निम्नलिखित परिस्थितियों में अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है-
1. ऋणदाता द्वारा मूल ऋणी को मुक्त करने पर- जब ऋणदाता और मूल ऋणी कोई ऐसा अनुबन्ध करते हैं जिसके द्वारा मूल ऋणी का उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है अथवा जब ऋणदाता कोई ऐसा काम या भूल करता है, ‘जसका वैधानिक परिणाम यह होता है कि मूल ऋणी अपने वैधानिक उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाता है, तो ऐसी दशा में प्रतिभू के उत्तरदायित्व का अन्त भी हो जाता है।
2. ऋणदाता तथा मूलऋणी के मध्य किसी ठहराव द्वारा समय बढ़ाने अथवा उस पर मुकदमा न चलाने का वचन देने पर- जब ऋणदाता और मूल ऋणी आपस में ऐसा ठहराव या समझौता कर लेते हैं, जिसके द्वारा ऋणदाता मूल अनुबन्ध में कोई संशोधन कर लेता है या भुगतान की अवधि को बढ़ा देने का वचन देता है, अथवा मूल ऋण पर मुकदमा न चलाने का वचन देता है, तो जब तक प्रतिभू इसके लिए स्वीकृति नहीं देता, तब तक वह अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।
3. ऋणदाता के किसी काम या भूल से प्रतिभू के अधिकार में कमी हो जाने पर – यदि ऋणदाता कोई ऐसा काम करता है, जो प्रतिभू के अधिकारों के विरुद्ध है अथवा किसी ऐसे काम को करने में भूल करता है, जिसका करना प्रतिभू के प्रति उसके कर्तव्यों के अनुसार अनावश्यक है और जिसमें मूल ऋणी के विरुद्ध प्रतिभू के अधिकारों में कमी आ जाती है तो ऐसी दशा में प्रतिभू अपने दायित्वों से मुक्त हो जाता है।
उदाहरण– X, Z को Y के यहाँ नौकर रखवाता है और Z की ईमानदारी के लिए Y की प्रतिभूति देता है। Y यह वचन देता है कि वह एक महीने में कम से कम एक बार यह जाँच करेगा कि Z ने हिसाब पूरा कर दिया है। Y ऐसा करने में भूल करता है और Z. हिसाब-किताब की चोरी करता है तो ऐसी स्थिति में X, Y के प्रति अपनी प्रतिभूति के लिए उत्तरदायी नहीं है।
4. ऋणदाता द्वारा ऋणी के द्वारा दी गयी प्रतिभूतियों को छिपाने या प्रतिभू की बिना सहमति के उनको ऋणी को लौटा देने पर- जब ऋणदाता बिना प्रतिभू की सहमति के मूल ऋणी दूसरा ऋण लेते समय या अनुबन्ध करते समय दी गयी प्रतिभूतियों को लौटा देता है या खो देता है तो प्रतिभू उनके मूल्य के बराबर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाता है।
5. मिथ्या वर्णन- कोई भी प्रतिभूति जो ऋणदाता द्वारा अथवा उसकी जानकारी और सम्पत्ति के व्यवहार के किसी महत्वपूर्ण भाग के सम्बन्ध में मिथ्या वर्णन द्वारा प्राप्त की गयी है, अवैधानिक होती है और ऐसी दशा में प्रतिभू अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाता है।
6. आवश्यक तथ्य को छिपाने पर- कोई भी प्रतिभूति जो ऋणदाता द्वारा अनुबन्ध के किसी आवश्यक तथ्य को छिपाने या इसके सम्बन्ध में मौन रहकर प्राप्त की गयी है, अवैधानिक होती है और ऐसी दशा में प्रतिभू अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाता है।
7. सह-प्रतिभू की दशा में- यदि एक व्यक्ति अनुबन्ध के सम्बन्ध में प्रतिभूति इस शर्त पर देता है कि ऋणदाता इस अनुबन्ध पर उस समय तक कोई काम नहीं करेगा जब तक कि दूसरा व्यक्ति उसमें सह-प्रतिभूति की हैसियत से सम्मिलित नहीं हो जाता तो उसके द्वारा की गयी ऐसी प्रतिभूति तब तक वैधानिक नहीं होगी जब तक कि दूसरा व्यक्ति उसमें सह प्रतिभूति की हैसियत से सम्मिलित नहीं होता।
8. समाप्ति की सूचना देने पर- सतत् प्रतिभू अनुबन्ध की दशा में प्रतिभू किसी भी समय ऋणदाता को प्रतिभूति की समाप्ति की सूचना देकर भविष्य के दायित्वों से अपने आप को मुक्त करा सकता है।
9. प्रतिभू की मृत्यु हो जाने पर- प्रतिभू की मृत्यु हो जाने पर प्रतिभू के उत्तराधिकारियों से प्रतिभू की मृत्यु के उपरान्त किये गये सभी व्यवहारों से उत्पन्न सभी दायित्वों से मुक्त हो जायेंगे, बशर्तें कि इसके विपरीत अनुबन्ध में कोई अन्य व्यवस्था न हो।
10. मूल अनुबन्ध की शर्तों में परिवर्तन होने पर- यदि प्रतिभू के सहमति के बिना कोई लेनदार तथा देनदार अपने अनुबन्ध में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन कर लेते हैं तो प्रतिभू अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण- X, Y के बैंक में मैनेजर के रूप में काम करने के अनुबन्ध के लिए Z, X का प्रतिभू हो जाता है। बाद में Z की सहमति के बिना X व Y आपस में एक अनुबन्ध करते हैं जिसके अनुसार X का वेतन बढ़ा दिया जाता है और वह अधिविकर्षों से होने वाली हानि के लिए एक चौथाई उत्तरदायी होगा। X एक ग्राहक अधिविकर्ष की सुविधा देता है और बैंक की कुछ रकम हानि में पड़ जाती है। इस अनुबन्ध में X को भविष्य में होने वाली हानियों के सम्बन्ध में Z उसकी सहमति के बिना किये गये परिवर्तन के कारण अपने उत्तरदायित्वों से मुक्त हो जाता है और वह इस हानि को पूरा करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
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