प्रशिक्षण (अधिगम) के स्थानान्तरण के प्रकारो की विवेचना कीजिए।
प्रशिक्षण स्थानान्तरण के प्रकार प्रयोग के आधार पर मनोविज्ञानियों ने कई प्रकार का स्थानान्तरण बताया है। जिनका विवरण निम्नलिखित है-
(1) धनात्मक स्थानान्तरण- स्थानान्तरण की दशा में सीखना अथवा प्रशिक्षण जब सहायक होता है तो उसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। अतएवं ऐसी दशा में स्थानान्तरण धनात्मक होता है। धनात्मक स्थानान्तरण का अभिप्राय यह कि पूर्व परिस्थितियों में प्राप्त ज्ञान और अनुभव नई परिस्थिति में उत्पन्न समस्या के समाधान में सहायक हों। उदाहरण के लिए अर्थशास्त्र के नियम का ज्ञान होने से मूल्य को निर्धारण में हम दुकानदार से सौदा तय करते हैं, अथवा हास के नियम के अनुसार हम जब किसी वस्तु की उपयोगिता कम समझते हैं तो उसे किसी भी मूल्य पर नहीं खरीदते चाहे वह सस्ती ही क्यों न मिले। यहां पर कक्षा में प्राप्त किये गये ज्ञान अनुभव को हम दैनिक जीवन की क्रियाओं में स्थानान्तरित करते हैं। जहां यह सहायक होता है वहीं धनात्मक स्थानान्तरण होगा।
( 2 ) ऋणात्मक स्थानान्तरण- यह स्थानान्तरण पहले का उल्टा होता है। जहां पर पूर्व सीखने की क्रिया बाद की क्रिया में सहायक न होकर बाधक होती हैं। वहां ऋणात्मक स्थानान्तरण होता है। बोरिंग और अन्य लेखकों ने कहा है कि “जब कोई सीखने का कार्य दूसरे कार्य के सीखने को पहले से अधिक कठिन बना देता है, तो हम उसे ऋणात्मक स्थानान्तरण कहते हैं।” उदाहरण के लिए कोई एक टाइप करने वाला एक पुरानी मशीन से टाइप करना सीख लेता है। बाद में उसे एक नई मशीन से टाइप करने को कहा गया है। जिसमें अक्षरों का विन्यास दूसरे ढंग का था। इस नई मशीन से टाइप करने में उसे कठिनाई का सामना करना पड़ा। इससे यहां ऋणात्मक स्थानान्तरण होगा। इसी प्रकार कभी-कभी एक साईकिल पर अभ्यास होने से दूसरी साइकिल के प्रयोगों में प्रायः कठिनाई होती है। इस दशा में भी ऋणात्मक स्थानान्तरण होगा।
(3) एकपक्षीय स्थानान्तरण – प्रायः कुछ घटनाओं के कारण मनुष्य शरीर के एक अंग का ही प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए बायें हाथ का प्रयोग है। शुरू में शिशु दोनों हाथों का प्रयोग समान रूप से करता है, बाद में केवल दाँए हाथ से उठाता है, लिखता है, खाता है आदि। इस प्रकार बाए हाथ का प्रयोग कम होता है। इसी प्रकार से कुछ लोग बाँए हाथ से कामकाज करते हैं। परन्तु प्रयोग होने वाले किसी एक हाथ में चोट, फोड़ा आदि हो जाने से दूसरा हाथ काम में आता है। इसे ही एकपक्षीय स्थानान्तरण कहेंगे।
( 4 ) द्विपक्षीय स्थानान्तरण यह स्थानान्तरण एकपक्षीय स्थानान्तरण के उल्टे होता है। इसमें संकट पड़ने पर मनुष्य एक अंग के बजाए दूसरे से काम लेता है। द्विपक्षीय स्थानान्तरण अपने आप ही हुआ करता है, यह एक प्रकार से अचेतन ही होता है। प्रायः कुछ छात्र ऐसे होते हैं जो दोनों हाथों से एक समान लिखते हैं या काम करते हैं कभी तो वे शौकिया करते हैं और कभी अचेतन रूप में दायें के बजाए बाए से और बांयें के बजाए दाँए से काम करते पाये जाते हैं। इसका मनोवैज्ञानिक कारण है दायें हाथ का अभ्यास-कौशल हाथ में प्रकृति की प्रेरणा से ही चला जाता है। परन्तु यदि ध्यानपूर्वक निरीक्षण किया जाए तो इसमें अज्ञात रूप से अहं की अभिव्यक्ति पायी जाती है। विषयों से संबंधित ज्ञान का एकपक्षीय या द्विपक्षीय स्थानान्तरण हुआ करता है।
(5) लम्बात्मक स्थानान्तरण – जब व्यक्ति एक अवधि में सीखे हुए ज्ञान अनुभव का प्रयोग आगे की अवधि में करता है तो वहां पर लम्बात्मक स्थानान्तरण होता है। उदाहरण के लिए कक्षा 5 तक इतिहास के ज्ञान को आगे कक्षा 6-7-8 में यदि उपयोग में लाया जाता है तो वहां लम्बात्मक स्थानान्तरण ही होता है। यह धनात्मक और ऋणात्मक दोनों रूपों में हुआ करता है। इसी प्रकार से बचपन में सीखी हुई आदतें और बातें भी आगामी वर्षों – में सहायक और बाधक सिद्ध होती हैं जो लम्बात्मक हस्तान्तरण के ही उदाहरण हैं।
( 6 ) क्षैतिज स्थानान्तरण – यह स्थानान्तरण लम्बात्मक स्थानान्तरण का उल्टा होता है। लम्बात्मक स्थानान्तरण एक विषय में ऊपर की ओर हुआ करता है जबकि क्षैतिज स्थानान्तरण समानान्तर हुआ करता है। एक विषय का ज्ञान और अनुभव दूसरे विषय को समझने में सहायक होता है, तब क्षैतिज स्थानान्तरण होता है। उदाहरण के लिए भूगोल के विषय का ज्ञान अर्थशास्त्र समझने सहायक होता है जैसे, पैदावार से आयात-निर्यात समझना। इतिहास से संस्कृति भाषा, कला, आदि को समझने में सहायता लेना जो किसी विशेष काल से सम्बन्धित होते हैं। एक भाषा के नियमों से दूसरी भाषा को समझना भी इसी प्रकार का स्थानान्तरण कहा जायेगा।
सामान्य रूप से धनात्मक स्थानान्तरण ही हुआ करता है परन्तु ऋणात्मक स्थानान्तरण भी साथ-साथ सम्बद्ध होता है। इसका कारण यह है कि अधिकतर पूर्वे ज्ञान एवं अनुभव में सीखने में सहायक होते हैं। कुछ ही ऐसी स्थिति होती है जबकि पूर्व ज्ञान एवं अनुभव बाद के सीखने में बाधक होते है। इसकी पहचान यह है कि जब उद्दीपक परिस्थिति अनुक्रिया का प्रसार करती है और भूतकाल की स्थिति से समान रूप में संबंधित होती है तो निश्चय ही धनात्मक स्थानान्तरण होगा। जब अनुक्रिया का प्रसार न होगा तो निश्चय ही वह भूतकाल की स्थिति से सम्बन्धित होगी। ऐसी दशा में ऋणात्मक स्थानान्तरण होगा। प्रसारा एक आधार होता है जिससे धनात्मक एवं ऋणात्मक स्थानान्तरण की पहचान की जा सकती है।
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