शिक्षाशास्त्र / Education

प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण एवं उसके आवश्यक तत्व

प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण एवं उसके आवश्यक तत्वों का वर्णन कीजिए।

प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण होना वर्तमान समय में अति आवश्यक हो गया है। उल्लेखनीय है कि लोकतन्त्र के सफल संचालन हेतु आज शिक्षित एवं प्रबुद्ध नागरिकों की अति आवश्यकता है। इसी लिए लोकतन्त्रीय देशों में प्रत्येक व्यक्ति को प्रारम्भिक शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य बना दिया गया है। जब भारत 1947 में स्वतन्त्र हुआ तब उसकी जनसंख्या का लगभग 85% भाग अनपढ या अशिक्षित था 6-11 आयु वर्ग के केवल 31% बच्चे विद्यालयों में शिक्षा के लिए जाते थो इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने संविधान में यह प्रावधान किया कि राज्य को 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करने का प्रयास करना चाहिए। इसकी पूर्ति सन् 1960 तक हो जानी चाहिए। परन्तु इसमें पर्याप्त साधनों की कमी, जनसंख्या में भारी वृद्धि, लड़कियों की शिक्षा में रुकावटें, पिछड़े वर्गों के बच्चों की बहुसंख्या, लोगों की सामान्य गरीबी और माता-पिता की निरक्षरता और उदासीनता जैसी बड़ी कठिनाइयों एवं बाधाओं के कारण संविधान के निदेशक की पूर्ति आज तक नहीं हो पाई। चारों ओर से इस निर्देश की पूर्ति की माँग हो रही है। यह मांग सामाजिक न्याय तथा लोकतन्त्र दोनों ही दृष्टियों से आवश्यक है।

प्राथमिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण के आवश्यक तत्व-

(1) स्कूल में टिके रहने का सर्वव्यापीकरण- प्राथमिक स्कूलों में बालकों के टिके रहने को सर्वव्यापी बनाने से अभिप्राय स्कूल में प्रवेश लेने के उपरांत प्राथमिक शिक्षा की समाप्ति तक बालक का स्कूल में बने रहने से है। साधारणतः यह देखा जाता है कि अनेक छात्र प्राथमिक शिक्षा को पूर्ण किये बिना ही स्कूल छोड़ देते हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 60% छात्र (लड़कों में 55% व लड़कियों में 65% ) कक्षा पांच से पूर्व तथा 75% (लड़कों में 70% व लड़कियों में 80%) कक्षा आठ से पूर्व ही पढ़ाई छोड़ देते हैं।

(2) सुविधाओं का सर्वव्यापीकरण- प्राथमिक शिक्षा सुविधाओं को सर्वव्यापी बनाने से अभिप्राय सभी बालकों के लिए उनके घर के नजदीक प्राथमिक स्कूल के होने से हैं जिससे सभी बालक सुगमतापूर्वक स्कूल जा सकें। प्राथमिक शिक्षा सुविधावों को सर्वव्यापी बनाने के लिए प्रत्येक गाँव, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, में प्राथमिक स्कूल खोलने होंगे। इसके साथ-साथ प्राथमिक स्कूल ऐसे स्थान पर स्थापित किये जाने होंगे जहाँ पहुँचने में छात्रों को कोई परेशानी न हो। दूसरे शब्दों में प्राथमिक विद्यालय यथासम्भव बालकों के घर के निकट होने चाहिए। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक प्राथमिक स्कूल खोले जा चुके हैं तथा प्राथमिक शिक्षा सुविधाओं को सर्वव्यापी बनाने का कार्य काफी सीमा तक पूरा हो गया है।

(3) नामांकन का सर्वव्यापीकरण- प्राथमिक स्कूलों में नामांकन को सर्वव्यापी बनाने से अभिप्राय वांछनीय आयु वर्ग अर्थात् 6 से 14 वर्ष तक के सभी बालकों को प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश दिलाने से है। साधारणतः देखा जाता है कि अनेक बालक स्कूल में प्रवेश ही नहीं लेते हैं। अनुमानतः 11% बालक (लड़कों में 2% व लड़कियों में 20%) स्कूल में प्रवेश नहीं लेते हैं। अतः प्राथमिक शिक्षा सुविधा उपलब्ध कराने के उपरांत यह आवश्यक है कि सभी बालक प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने के लिए उनमें प्रवेश ले लें। विभिन्न राज्यों द्वारा इस विषय में बनाये अधिनियमों के बावजूद भी इस उद्देश्य की पूर्ण प्राप्ति सम्भव नहीं हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह समस्या अत्यधिक व्यापक है।

सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के उपाय

संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, कार्य योजना, 1992 में प्रारम्भिक शिक्षा के सर्वसुलभीकरण के लिए निम्न उपाय बताया गया है-

1. अनुदेशकों के प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जाएगी। प्रशिक्षण की जिम्मेदारी जिला स्तरीय संस्थनों; जैसे- डी०आई०ई०टी०, राज्य स्तरीय संस्थानों जैसे- राज्य शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद् तथा राष्ट्रीय संस्थानों जैसे- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद् एवं राष्ट्रीय शैक्षिक आयोजन तथा प्रशासन संस्थान द्वारा वहन की जाएगी।

2. उन बच्चों तथा युवाओं के लिए जो अनौपचारिक पद्धति से पास होते हैं उन्हें विभिन्न व्यावसायिक तथा तकनीकी पाठ्यक्रम प्रदान किये जायेंगे। श्रमिक विद्यापीठ तथा स्वैच्छिक एजेन्सियों को इस प्रक्रिया में शामिल किया जायेगा।

3. स्कूल न जाने वाले पर्वतीय, आदिवासी तथा दुर्गम क्षेत्रों, जहाँ कि औपचारिक शिक्षा का कोई प्रावधान नहीं है, कि जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वैच्छिक स्कूलों की एक नई योजना शुरू की जाएगी। इस योजना में ये स्वैच्छिक एजेंसियाँ प्राथमिक शिक्षा / उच्च प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूल चलायेंगी तथा एक मूल्य प्रभावी तरीके से स्कूलों की आयोजना तथा इन्हें संचालित करने में समुदाय की सहभागिता को जाग्रत करेंगी।

4. खुले स्कूलों के साथ अनौपचारिक पाठ्यक्रमों को जोड़ने का प्रयास किया जायेगा।

5. ये स्वैच्छिक स्कूल एक प्रदत्त ग्राम / बस्ती के सभी स्कूली बच्चों को शिक्षा प्रदान करेंगे। ये क्षेत्र कम-से-कम 150 की जनसंख्या वाले क्षेत्र होंगे जिससे एक स्वैच्छिक स्कूल में कम-से-कम 30 बच्चे हों।

6. अनौपचारिक शिक्षा पद्धति के छात्रों के लिए बाद में औपचारिक प्रणाली में प्रवेश के लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी।

7. पूरा समय स्कूल में उपस्थित न हो सकने वाले बच्चों के लिए अनौपचारिक शिक्षा को एक स्वीकृत विकल्प माध्यम समझा जायेगा। अनौपचारिक शिक्षा विशेशतः उन बच्चों की, मुख्यतः लड़कियों की शिक्षा की जरूरतों को पूरा करेगी जो कि औपचारिक शिक्षा में भाग नहीं ले सकीं।

8. अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम को सार्वजनिक पुस्तकालयों, जन-शिक्षण निलायमों आदि की योजना से जोड़ा जायेगा।

9. समुदाय की सहायता से अनौपचारिक शिक्षा के अनुदेशकों का पता लगाया जायेगा, जहाँ कहीं भी सम्भव होगा महिला अनुदेशकों की नियुक्ति के लिए प्रयास किये जायेंगे।

10. स्कूल चलाने के लिए पात्र एजेंसियों को केन्द्रीय सहायता दी जाएगी।

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Anjali Yadav

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