प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण की विभिन्न समस्याओं एवं उनके निराकरण के उपायों की विवेचना कीजिये।
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण की समस्याये एवं उनके निराकरण के उपाय
( 1 ) छात्रों एवं अभिभावकों को शिक्षा, प्रलोभन तथा अभिप्रेरण- प्राथमिक शिक्षा हेतु विभिन्न युक्तियों से अभिभावकों तथा छात्रों को अभिप्रेरित किया जा सकता है। स्वल्पाहार की योजना ‘स्कूल आओ, एक रुपया पाओ’ योजना, छात्रवृत्ति तथा आर्थिक सहायता की योजनाओं से अभिभावक तथा छात्रों को प्राथमिक शिक्षा के लिए आकर्षित किया जा सकता है।
(2) आर्थिक समस्याओं का समाधान- प्राथमिक शिक्षा के मार्ग में आने वाली अनेक समस्याओं में आर्थिक समस्या सबसे अधिक जटिल है। सम्पूर्ण देश में अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा के सिद्धान्त (6-14 वर्ष के आयु वर्ग) को लागू करने के लिए प्रतिवर्ष 269.5 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। अतः सरकार जिस धन को पुरातन प्राथमिक विद्यालयों को बेसिक स्कूलों में . बदलने के लिए व्यय कर रही है उसी धन को नवीन प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को प्रचलित करने में व्यय करना चाहिए। साथ-ही-साथ शिक्षा की अवधि 4 वर्ष रखकर व्यय में कमी की जा सकती है। कुछ लोगों के अनुसार धनी व्यक्तियों से शुल्क लिया जाना चाहिए।
( 3) सामाजिक बाधाओं का समाधान- गाँवों में सामाजिक कुरीतियों के विनाश हेतु व्यापक समाज-शिक्षा का प्रबन्ध करना आवश्यक है। अशिक्षिा से सामाजिक कुरीतियाँ और अन्ध विश्वास विकसित होते हैं। शिक्षा के प्रसार के द्वारा ग्रामीणों का दृष्टिकोण तार्किक बनेगा और वे परम्परागत कुप्रथाओं को बिना किसी विरोध के त्याग देंगे। समय-समय पर समाज सेवी संस्थाओं द्वारा व्याख्यानों का आयोजन भी आवश्यक है। बाल-विवाह से हानि, अशिक्षा के परिणाम आदि शीर्षकों पर बनी फिल्मों का प्रदर्शन भी लाभप्रद सिद्ध होगा।
(4) अनिवार्य शिक्षा की स्थिर नीति- सरकार को सर्वप्रथम अनिवार्य शिक्षा के प्रति एक निश्चित तथा स्थिर नीति का पालन करना चाहिए। सरकार बेसिक शिक्षा के प्रसार में आने वाली कठिनाइयों से परिचित है और वह यह भी जानती है कि बेसिक शिक्षा को निःशुल्क एवं अनिवार्य रूप से लागू करना कठिन कार्य है। ऐसी दशा में संविधान संकल्पित 6-14 वर्ष की आयु तक के बालक-बालिकाओं के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा के लिए क्रियान्वयन हेतु दृढ़ संकल्प एवं स्थिर नीति की आवश्यकता है।
(5) नये विद्यालयों की स्थापना- नवीन प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना सर्वप्रथम उन गाँवों में की जाय, जहाँ की जनसंख्या पर्याप्त घनी है। कम जनसंख्या वाले छोटे-छोटे गाँवों के मध्य में एक स्कूल की स्थापना कर काम चलाया जा सकता है। धन के अभाव में अनिवार्य शिक्षा को जब हमें लागू ही करना है तो क्यों न शिक्षा प्रदान करने का कार्य मन्दिरों, मस्जिदों तथा धर्मशास्त्रों से ही प्रारम्भ किया जाये।
(6) शिक्षकों की समस्या का हल- अध्यापकों के अभाव को हल करने के लिए। प्रारम्भ में अप्रशिक्षित अध्यापकों को रखा जा सकता है। बाद में ऐसे अप्रशिक्षित अध्यापकों को राज्य की ओर से वर्ष भर की छुट्टी (Inservice Training) पर प्रशिक्षण विद्यालयों में भेजा जा सकता है। दूसरे, अध्यापकों के वेतन में सुधार की आवश्यकता है। अध्यापकों को अधिक वेतन देकर शिक्षण कार्य को आकर्षक बनाया जा सकता है।
( 7 ) जनता का सहयोग- शिक्षा के प्रसार का उत्तरदायित्व यद्यपि सरकार का है, लेकिन देश की जनता का भी कर्त्तव्य है कि सरकार को इस पवित्र कार्य में अपना पूर्ण सहयोग दे । शिक्षा के प्रसार के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निवारण करना सरकार और जनता दोनों का कार्य है।
( 8 ) भाषा की समस्या का समाधान- आदिवासी बहुल, पहाड़ी क्षेत्रों तथा अत्यधिक पिछड़े हुए क्षेत्रों में विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए। प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य रूप मातृभाषा में हो तथा शिक्षक भी उन्हीं वर्गों में रखे जाने चाहिए।
(9) शिक्षा का व्यापक प्रसार- प्राथमिक शिक्षा पर भार स्थानीय संस्थाओं के ऊपर न डालकर सरकार का कर्तव्य है कि वह स्वयं इसे उठाये। राष्ट्र के नागरिकों को शिक्षित बनाने का उत्तरदायित्व एक लोक-कल्याणकारी राज्य का महत्त्वपूर्ण कार्य है। यदि किसी कारण सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो एक शक्तिशाली केन्द्रीय समिति का निर्माण किया जाये, जो स्थानीय समस्याओं पर शिक्षा सम्बन्धी मामलों में नियंत्रण रख सके। आवश्यकता पड़ने पर सरकार की ओर से उसे उदारतापूर्वक सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
(10) भौगोलिक बाधाओं का निवारण- भारत जैसे विशाल देश में भौगोलिक समस्याओं का एकदम समाधान सम्भव नहीं है, यद्यपि सरकार ने जो कदम उठाये हैं, वे सराहनीय हैं। सामुदायिक विकासखण्डों की सहायता से गाँवों में सड़कों का निर्माण किया जा रहा है और गाँवों की सड़कों को नगरों से मिलाया जा रहा है। पर्वतीय प्रदेशों में भी सड़कों का निर्माण द्रुत गति से किया जा रहा है। जिससे विद्यालयों का निर्माण तथा उनमें पहुँचना आसान होगा।
(11) कक्षाओं में छात्रों की संख्या में वृद्धि – अनिवार्य शिक्षा के तीव्र विकास के लिए यह आवश्यक है कि कक्षा में छात्रों की संख्या में वृद्धि की जाय।
(12) पाठ्यक्रम में सुधार- यथासम्भव प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम को रोचक मनोवैज्ञानिक तथा व्यावहारिक बनाया जाय। यह आवश्यक है कि पाठ्यक्रम में स्थानीय आवश्यकताओं को उचित स्थान दिया जाय।
(13) महिला शिक्षिकाओं की प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्ति तथा पर्याप्त प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना कर बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
(14) विभिन्न स्तरों एवं कक्षाओं में अपव्यय तथा अवरोधन को दूर करने के निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए-
- बालिकाओं की शिक्षा की उचित व्यवस्था हो तथा सह-शिक्षा एवं पाली-प्रथा को चलाया जाय।
- कक्षा 5 तक स्वयं अगली कक्षा में उन्नति की व्यवस्था हो ।
- स्कूल बच्चों के घर से एक निश्चित दूरी से अधिक दूर न हो।
- पाठ्यक्रम सरल, रोचक, प्रायोगिक तथा व्यावहारिक हो ।
- स्कूलों में प्रवेश सम्बन्धी नियमों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
- कक्षाओं में बच्चों की आयु स्तर में समानता के नियम का पालन किया जाय।
- प्राथमिक स्तर पर शिक्षा अनिवार्य तथा निःशुल्क होनी चाहिए।
- उचित निरीक्षण हेतु आवश्यक है कि निरीक्षकों की संख्या में वृद्धि की जाय, प्रशासन को भी विद्यालय व्यवस्था में रुचि लेनी चाहिए।
- छात्रों के प्रति अध्यापक का दृष्टिकोण सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए ।
- सहयोगार्थ अध्यापक-अभिभावक संधों का निर्माण किया जाना चाहिए।
- जो छात्र अध्ययन में कोई कठिनाई अनुभव करते हों, उन पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जाय।
- शिक्षण विधि और परीक्षा प्रणाली में आमूल सुधार किये जायें।
- स्कूलों में स्वास्थ्य सेवा की उचित व्यवस्था हो ।
- स्कूल का वातावरण प्राकृतिक तथा औपचारिक अर्थात् घर के अनुरूप बनाया जाय जिससे छात्र स्वतंत्रता का अनुभव करें तथा उनका स्वाभाविक विकास सम्भव हो सके।
- स्कूलों में दोपहर के भोजन और खेल-कूद का उचित प्रबन्ध हो ।
- छात्र व अध्यापक संख्या एक निश्चित अनुपात में हो।
- निर्धन बच्चों को दूध, भोजन, कपड़ा तथा पुस्तकें मुफ्त दी जायें।
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