बिहारी की बहुज्ञता पर प्रकाश डालिए।
सतसई का अध्ययन करने पर प्रतीत होता है कि बिहारी का अनुभव तथा ज्ञान अत्यन्त व्यापक था। उनकी इस ज्ञानराशि को मुख्य रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
(1) शास्त्रीय (2) सामान्य शास्त्रीय ज्ञान के अन्तर्गत काव्यशास्त्र, कामशास्त्र, दर्शनशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, वैद्यशास्त्र, गणितशास्त्र, राजनीतिशास्त्र आदि रखे जा सकते हैं। सामान्य वर्ग की सुविधा के लिए दो भाग किये जा सकते हैं। एक में प्राचीन परिस्थितियों का ज्ञान तथा दूसरे में लोक जीवन सम्बन्धी ज्ञान सम्मिलित है।
ज्योतिष के सिद्धान्त की दृष्टि से यदि शनि धनु या मीन में गुरू और मकर या कुम्भ राशि तथा उच्च राशि तुला में हो तो उस पुण्य मुहुर्ते में पैदा हुआ व्यक्ति राजा बनता है। इस पर संकेत निम्न दोहे से मिलता है-
“सनि कज्जल चख झक लगन उपज्यो सुदिन सनेहु ।
क्यों नृपति है भौगवै, लहि सुदेसु सब देहु ।।”
सामाजिक ज्ञान के क्षेत्र में बिहारी की राजनीति का प्रभाव जनवर्ग में कहाँ किस स्थिति में कैसा पड़ता है इसका चित्रण कवि द्वारा किया गया है। एक ओर दुहरा शासन दूसरी ओर रूप सन्धि तथा सूर्य और चन्द्रमा का एक राशि में एकत्र करके चित्रण करना कवि की कुशलता और ज्ञान दोनों का परिचय देता है-
‘दुसह दुराज प्रजान को, क्यों न बड़े सुख दंद।
अधिक अँधेरी जगकरत, मिलि मावस रवि चन्द ।।”
उनके नीति सम्बन्धी दोहों में उनके सांसारिक अनुभव के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त होता है-
“नहि पराग नहि मधुर मधु, नहि विकास इहि काल ।
अली कली ही सो बंध्यो, आगे कौन हवाल॥”
बिहारी, ब्रजभाषा, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, तथा अरबी-फारसी आदि भाषाओं के मर्मज्ञ थे। काव्यशास्त्र का उन्हें पूर्ण परिज्ञान था उनकी सतसई में अनेक ऐसे दोहे हैं जिनके सृजन में कवि ने गाथा सप्तसती, आर्या सप्तसती, अमरूकशतक, गीतगोविन्द तथा कालिदास, माघ, भवभति, हर्ष आदि की रचनाओं से तत्व एवं रूप ग्रहण किया है। शास्त्रीय दृष्टि से बिहारी सतसई में इस ध्वनि अलंकार, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों का स्पष्ट दर्शन मिलता है। बिहारी आचार्य कवि नहीं थे, किन्तु उनकी सतसई आचार्यत्व का जीता जागता उदाहरण है। लक्षण ग्रन्थ होते हुए भी रीतिकालीन प्रचलित काव्य लक्षणों का यथास्थल सफल प्रयोग हुआ है। नायक-नायिकाओं के विविध रूप, उनकी मानसिक और शारीरिक चेष्टाओं की प्रभावशाली अभिव्यक्ति इस बात का प्रमाण है कि बिहारी का शास्त्रीय ज्ञान अत्यन्त व्यापक था। बिहारी के दोहों में इन सबका वर्णन ही उनकी बहुज्ञता का प्रमाण है।
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