ब्लूम के अनुसार भावात्मक पक्ष के शैक्षिक उद्धेश्यों का वर्गीकरण कीजिए?
भावात्मक पक्ष – 1964 ई. में ब्लूम क्रेथवाल तथा उनके सहयोगियों ने मिलकर शैक्षिक प्राप्य उद्धेश्यों के वर्गीकरण के अन्तर्गत भावात्मक पक्ष का विकास किया। इस पक्ष के शैक्षिक प्राप्य उद्धेश्यों को पाँच उपवर्गों में विभाजित किया गया है।
1) ग्रहण करना – इस उद्धेश्य की प्राप्ति के लिए छात्र का किसी घटना या उद्धीपन के प्रति संवेदनशील होना आवश्यक है। इस उद्धेश्य के द्वारा छात्रों में तीन प्रकार की योग्यताओं का विकास होता है – (क) घटनाओं का विकास करना अर्थात् अभिज्ञान, (ख) घटनाओं को ग्रहण करने की तत्परता। (ग) नियन्त्रित एवं चयनात्मक ध्यान ।
2 ) अनुक्रिया – छात्र किसी घटना या उद्धीपन के सम्बन्ध में क्रियाशील होता है तथा उसके अनुरूप व्यवहार करता है, इस उद्धेश्य के द्वारा छात्र में अनुक्रिया की इच्छा होती है, छात्रों में अनुक्रिया से ज्ञानोपलब्धि होती है। इससे छात्रों में तीन प्रकार योग्यताओं का विकास होता है – (अ) अनुक्रिया करने को तैयार करना। (ब) अनुक्रिया करने की तत्परता और (स) अनुक्रिया की सन्तुष्टि ।
3 ) मूल्यन या आंकलन – छात्रों की अनुक्रियाओं के आधार पर किसी वस्तु, घटना आदि को व्यवहार की कसौटी पर, परख कर उनका मूल्य निर्धारित करना ही ‘मूल्यन’ है। छात्रों द्वारा आत्मसात किए गए मानव-मूल्यों का आंकलन करना अध्यापक का प्रमुख लक्ष्य होता है । इस उद्धेश्य से छात्रों में भी तीन प्रकार की योग्यताएं विकसित होती है – (अ) किसी मूल्य की स्वीकृति, (ब) किसी मूल्य के लिए अधिक अभिरूचि या लगाव और (स) प्रतिबद्धता ।
4) संगठन या व्यवस्थापन – इस उद्धेश्य के द्वारा छात्र में एक प्रणाली समान मूल्यों का संगठन करने की क्षमता पैदा होती है। विभिन्न प्रकार के मूल्यों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इससे छात्रों में दो प्रकार की योग्यताएं विकसित होती है। (अ) एक मूल्य प्रणाली को धारण करना। और (ब) एक मूल्य प्रणाली का संगठन करना ।
5 ) चरित्र निर्माण या विशिष्टीकरण – इसमें मूल्य समूह का विशिष्टीकरण किया जाता है । इसके अन्तर्गत व्यक्ति या छात्र मानव मूल्यों को अन्तःकरण से स्वीकार करता है। व्यक्ति या बालक के व्यवहार जो उसकी विशेषताओं को प्रकट करें, विशिष्टीकरण कहलाते हैं। शिक्षण की प्रक्रिया का यह अन्तिम उद्धेश्य माना जाता है, क्योंकि इसका सम्बन्ध छात्रों के व्यक्तिगत, सामाजिक एवं संवेगात्मक समायोजन से है, इससे छात्रों में दो प्रकार की योग्यताएं विकसित होती है – (अ) सामान्यीकृत समुच्चय और (ब) मूल्यों को आत्मसात करना ।
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