ब्लूम के अनुसार संज्ञानात्मक पक्ष के शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण कीजिए?
संज्ञानात्मक पक्ष – संज्ञानात्मक पक्ष के अन्तर्गत मस्तिष्क से सम्बन्धित क्रियाओं को समावेशित किया गया है। ‘ब्लूम’ ने इस पक्ष के उद्धेश्य को छः उपवर्गो में विभक्त किया है-
(1) ज्ञान ज्ञान में मुख्यतः छात्रों के प्रत्यास्मरण तथा अभिज्ञान की क्रियाओं को तथ्यों शब्दों, नियमों तथा सिद्धान्तों की सहायता से विकसित किया जाता है ।
ज्ञान वर्ग के भी पाठ्यवस्तु/पाठ्य-विवरण की दृष्टि से तीन स्तर होते है-
- विशिष्ट तथ्यों तथा शब्दों का ज्ञान देना।
- सामान्यीकरण, नियमों तथा सिद्धान्तों का ज्ञान देना।
- उपायों, साधनों व स्त्रोत की पहचान का ज्ञान देना।
छात्र के ज्ञान का मूल्यांकन सामान्यतः पुनः स्मरण प्रश्नों तथा बहुविकल्प प्रश्नों की सहायता से किया जा सकता है।
(2) बोध- बोध के लिए ज्ञान का होना आवश्यक है। अर्थात् जिस पाठ्यवस्तु का ज्ञान प्राप्त किया है अर्थात् प्रत्यास्मरण और अभिज्ञान का विकास हो चुका है, उन्हीं का अपने शब्दों में अनुवाद करना, व्याख्या करना आदि क्रियाएँ बोध उद्धेश्य के स्तर पर की जाती है। पाठ्यवस्तु की दृष्टि से बोध-उद्धेश्य की क्रियाओं के भी स्तर होते है-
- तथ्यों, शब्दों, नियमों, साधनों तथा सिद्धान्तों को अनुवाद करके अपने शब्दों में व्यक्त करना
- पाठ्यवस्तु की व्याख्या करना ।
( 3 ) अनुप्रयोग – अनुप्रयोग में सिखें हुए ज्ञान तथा बोध की गई विषयवस्तु का अन्य नवीन परिस्थितियों में प्रयोग करना होता है । पाठ्यवस्तु का अनुप्रयोग उद्धेश्यों में भी तीन स्तरों पर प्रस्तुत कर रहे है।
- नियम सिद्धान्तों व स्त्रोत साधनों का सामान्यीकरण करना
- विषयवस्तु सम्बन्धी न्यूनताओं को जानने के लिए निदान करना
- विषयवस्तु का अन्य परिस्थितियों में प्रयोग करना।
(4) विश्लेषण इस उद्धेश्य के लिए तीनों ही उद्धेश्य की प्राप्ति होना आवश्यक है । इसमें पाठ्यवस्तु के नियमों, सिद्धान्तों तथा प्रत्ययों को दो स्तरों पर प्रस्तुत किया जाता है। (अ) विषयवस्तु सम्बन्धी तत्वों का विश्लेषण करना । (ब) विषयवस्तु का व्यवस्थित सिद्धान्तों के रूप में विश्लेषण करना ।
(5) संश्लेषण संश्लेषण में छात्रों को अनेक स्त्रोतों से तत्वों को निकालना होता है। विभिन्न तत्वों को मिलाकर नया स्वरूप तैयार करना होता है, इससे सृजनात्मक क्षमताओं का विकास होता है। संश्लेषण के तीन स्तर होते है।
- विभिन्न तत्वों के संश्लेषण में सम्प्रेषण उत्पन्न करना है।
- तत्वों के संश्लेषण की नवीन योजना प्रस्तावित करना ।
- तत्वों के अमूर्त सम्बन्धों का अवलोकन करना ।
( 6 ) मूल्यांकन यह संज्ञानात्मक पक्ष का अन्तिम तथा अत्यधिक उच्च उद्धेश्य माना जाता है। इसमें पाठ्यवस्तु के नियमों, सिद्धान्तों तथा तथ्यों के सम्बन्ध में आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाता है। मूल्यांकन उद्धेश्य की क्रियाओं के पाठ्यवस्तु की दृष्टि से दो स्तर होते है-
- आंतरिक साक्ष्यों के आधार पर मूल्य निर्धारण
- बाह्य मापदण्डों के आधार पर मूल्य निर्धारण
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