भीष्म साहनी का जीवन परिचय देते हुए व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त, 1915 को रावलपिंडी (पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता का नाम हरवंश लाल था। बचपन की घटनाओं का आपके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। सन् 1956 से सन् 1963 तक आप रूस की राजधानी मास्को में रहे। मास्को में रहकर आपने भाषा प्रकाशन गृह में अनुवादक के रूप में कार्य किया। आपने मास्को में रहकर में टालस्टाय, आस्त्रास्की आदि महान् विचारकों की रचनाओं के अनुवाद भी किये। आपकी मृत्यु 11 जुलाई, 2003 को दिल्ली में हुई।
रचनाएँ- आपकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं—
कहानी संग्रह- आपके तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- (1) भाग्य रेखा, (2) पहला पाठ, (3) भटकती राख।
उपन्यास – झरोखे, कड़ियाँ, तमस इत्यादि।
कहानी-कला- नये कथाकारों में भीष्म साहनी का नाम भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आपकी विचार दृष्टि राष्ट्रीय और समाजपरक है। आपने नगर-जीवन की विभिन्न समस्याओं को अपनी कहानियों तथा उपन्यासों का विषय बनाया है। आप मध्यवर्गीय परिवारों के अंतरंग चित्र बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं। उपेन्द्रनाथ अश्क ने आपके सम्बन्ध में लिखा है “भीष्म निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के अन्तरंग चित्र प्रस्तुत करते हैं। उन चित्रों को देखते-देखते कभी होठों पर मुस्कान आ जाती है-कभी कंठ में गोला सा अटकता है, कभी आँखें हल्के से झलमला जाती है और कभी-कभी कहानी के अन्त में पहुँचकर हृदय में गहरी टीस उठती है। उनकी कहानियाँ समाजपरक है।… कहानी का सीधा सरल चित्र मन को बाँध रखता है, भाव चढ़ते-उतरते रहते हैं और कहानी के अन्त तक पहुँचकर मन को असंतोष नहीं होता।” आपकी प्रायः समस्त कहानियों में यह विशेषता दृष्टिगोचर होती है। जैसे-प्रोफेसर, सिर का सदका, अपने-अपने बच्चे, कुछ और साल, चीफ की दावत इत्यादि । वर्तमान समाज का यथार्थ जीवन आपकी कहानियों का प्रमुख विषय है।
चरित्र चित्रण— आपकी कहानियों के सभी पात्र सजीव, जागरूक एवं विश्वसनीय हैं। आज सामाजिक जीवन और विचारों में सर्वत्र उत्क्रान्ति दिखाई दे रही है। आजकल विभिन् समस्याओं को लेकर कहानियाँ लिखी जा रही हैं। दिन-प्रतिदिन स्थितियाँ बदल रही है। बदलती हुई परिस्थितियों के प्रभाव से आज की कहानी भी अछूती नहीं रही है। नगर और ग्रामीण जीवन के जाने-पहचाने पात्र आपकी कहानियों में है। कहीं-कहीं पर आपके पत्र वर्ग-विशेष का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरणार्थ ‘चीफ की दावत’ नाम कहानी में चीफ और नायक वर्ग विशेष का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। आज की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप ही आपने पुरुष और नारी पात्रों का चरित्र चित्रण किया है।
कथोपकथन– आपकी कहानियों में छोटे और बड़े दोनों प्रकार के संवाद पाये जाते है। आपके संबाद सरल, स्वाभाविक एवं व्यंग्यपूर्ण से परिपूर्ण होते हैं। संवाद पात्रानुकूल एवं कथावस्तु को विकसित करने वाले हैं। कथोपकथनों के माध्यम से पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ प्रकाश में आ जाती है। आपके संवाद इतने मार्मिक हैं कि पाङ्गक द्रवीभूत हो जाता है। आपके संवादों की भाषा भी सरल एवं बोलचाल के शब्दों से युक्त है। सुन्दर कथोपकथन के माध्यम से ही आप वातावरण का चित्र-सा खींच देते हैं।
देशकाल (वातावरण)– वातावरण के चित्रण में भीष्म जी बहुत ही कुशल है। आपकी कहानियों की अधिकांश कथायें नगर-जीवन से ही सम्बन्धित हैं। यथार्थवादी होने के कारण वे वातावरण का यथार्थ एवं सजीव चित्र प्रस्तुत कर देते हैं। इस सन्दर्भ में डॉ. सुरेश सिन्हा ने अपने विचार निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किये हैं- “यथार्थपरक सामाजिक परिवेश में मनु के पूर्ण व्यक्तित्व को उभारने की चेष्टा, नवीन प्रगतिशील मूल्यों को उभारने एवं विघटनकारी या प्रतिक्रियावादी तत्वों को स्पष्ट करने की सजगता के कारण भीष्म साहनी की कहानियों में आज के नये यथार्थ के विभिन्न रूप बड़े प्रभावशाली ढंग से चित्रित हुए हैं।”
भाषा-शैली- आपकी कहानियों की भाषा व्यावहारिक हिन्दी हैं। उर्दू के शब्द आपकी भाषा में बहुत मिलते हैं। उर्दू के अतिरिक्त अंग्रेजी, पंजाबी और स्थानीय भाषा के शब्द भी पर्याप्त रूप से देखने को मिल जाते हैं। आपकी भाषा का सबसे बड़ा गुण स्वाभाविकता है। भाषा-शैली कलापक्ष के अन्तर्गत आती है। लेखक ने कलापक्ष की महत्ता को स्वीकार करते हुए स्वयं कहा है- “विचारपक्ष के साथ-साथ कलापक्ष की ओर भी उतना ही ध्यान देना जरूरी है।” अपनी विचारधारा के अनुरूप ही आपने भाषा-शैली पर विशेष रूप से ध्यान दिया है। भाषा और शिल्प के क्षेत्र में आप प्रेमचन्द जी से प्रभावित रहे हैं। जिस प्रकार आपकी कहानियों का वस्तु विषय व्यक्तिनिष्ठ न होकर समाजपरक है, उसी प्रकार उनकी भाषा भी पूर्वाग्रह-युक्त और लोकपरक है।
अद्देश्य– आपकी प्रत्येक कहानी सोद्देश्य है। कहानियों में प्रायः किसी न किसी प्रकार की विडम्बना को अभिव्यक्ति मिली है, जो किसी न किसी रूप में हमारे वर्तमान समाज के अन्तर्विरोधों की ओर संकेत करती है। डॉ. सुरेश सिन्हा ने भीष्म जी की कहानियों के सम्बन्ध में लिखा है- “वर्ग वैषम्य, आर्थिक विपन्नता एवं परिणामस्वरूप उत्पन्न चारित्रिक अन्तर्विरोध एवं कटुता उनकी कहानियों के मूल स्वर हैं, जिनमें जीवन के प्रति अटूट निष्ठा एवं संघर्ष पर विजयी के होने की आस्था और संकल्प का स्वर उद्घोषित होता है। भीष्म साहनी का कहानी लेखन में विशिष्ट स्थान है।
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