Contents
भुगतान के लिए प्रस्तुति से आप क्या समझते है? भुगतान के लिए प्रस्तुति सम्बन्धी नियम को स्पष्ट कीजिए।
भुगतान के लिए प्रस्तुति- धारा 64 एवं 75 के अनुसार, समस्त प्रतिज्ञा पत्र तथा चेक धारक द्वारा अथवा उसकी ओर से क्रमशः उसके निर्माता स्वीकर्ता अथवा आहार्थी (देनदार) के समक्ष भुगतान के लिए प्रस्तुत किये जाने चाहिए। ऐसी प्रस्तुति में त्रुटि करने पर अन्य पक्षकार ऐसे धारक के प्रति उत्तरदायी नहीं होते। ऐसी प्रस्तुति निर्माता स्वीकर्ता अथवा आहाय के यथोचित रूप में अधिकृत एजेन्ट को अथवा उसकी मृत्यु हो जाने पर उनके वैधानिक उत्तराधिकारियों को अथवा उसके पागल हो जाने पर उनके राजकीय प्रापक को भी की जा सकती है।
भुगतान के लिए प्रस्तुति सम्बन्धी नियम-
(1) प्रस्तुति का समय-
(i) ऐसे समस्त प्रतिज्ञ पत्र अथवा विनिमय पत्र जो तिथि अथवा दर्शन के पश्चात एक निश्चित अवधि के बाद देय हों, उन्हें परिपक्व होने पर भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए। (धारा 66)
(ii) यदि कोई प्रतिज्ञा पत्र किस्तों में देय हो, तो उसे प्रत्येक किश्त के भुगतान की निर्धारित तिथि के पश्चात तीसरे दिन भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस प्रकार प्रस्तुत करने पर भुगतान न करने का वही प्रभाव होता है। जो किसी प्रतिज्ञा-पत्र की परिपक्वता पर भुगतान न करने का होता है। अर्थात ऐसी प्रस्तुति न करने पर उत्तरदायी पक्षकार अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।
(iii) यदि कोई विलेख मांग पर देय हो, तो उसे धारक द्वारा प्राप्त करने के बाद यथोचित समय के भीतर भुगतान के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए। (धारा 74)
(2) प्रस्तुति का स्थान-
(i) निश्चित स्थान – यदि प्रतिज्ञा पत्र, विनिमय-बिल यह चेक किसी निश्चित स्थान पर देय है, तो उनके पक्षकारों दायी बनाने के लिए उसी स्थान पर प्रस्तुत करना चाहिए।
(ii) विशेष स्थान- यदि प्रतिज्ञा पत्र या बिल के भुगतान के लिए कोई विशेष स्थान निर्धारित न किया गया हो तो उन्हें व्यापार के स्थान पर या देनदार के निवास स्थान पर प्रस्तुत करना चाहिये।
(3) देनदार को दायी ठहराने के लिए चेक की प्रस्तुति- बैंकर को दायी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि धारक चैक के भुगतान के लिए चेक के लेखक तथा देनदार के सम्बन्ध में किसी प्रकार का परिवर्तन होने के पहले बैंक के सम्मुख प्रस्तुत करें।
(4) अन्य पक्षकार को बाध्य करने के लिए चेक की प्रस्तुति – लेखक के अतिरिक्त अन्य पक्षकारों को बाध्य करने के लिए चेक की सुपुर्दगी प्राप्त करने के बाद, उसे यथोचित समय के भीतर प्रस्तुत करना चाहिये। चेक के धारक का यह कर्तव्य है कि वह उसे यथोचित समय के अन्दर भुगतान के लिए बैंक के सम्मुख प्रस्तुत करे। यदि ऐसा करने में कोई त्रुटि करे और इसी बीच चेक के लेखक तथा बैंक में किसी प्रकार का व्यावहारिक परिवर्तन हो जाय तो क्षति होने पर चेक का धारक स्वयं उस क्षति के लिए दायी होगा।
प्रस्तुति किसको होनी चाहिए?
(1) लेख पत्र की स्वीकृति अथवा भुगतान के लिए लेखक या स्वीकर्ता के यथोचित के अधिकृत एजेन्ट के सम्मुख प्रस्तुत किया जा सकता है तथा
(2) उपुर्यक्त व्यक्तियों की मृत्यु पर लेख पत्र उनके वैध प्रतिनिधि को प्रस्तुत किया जा सकता है।
(3) उक्त व्यक्तियों के दिवालिया हो जाने परलेख पत्र को उनके अभिहस्तांकिती या राजकीय प्रापक (Official Receiver) के सम्मुख प्रस्तुत किया जा सकता है।
IMPORTANT LINK
- दिवालिया का अर्थ एवं परिभाषा | दिवालियापन की परिस्थितियाँ | दिवाला-कार्यवाही | भारत में दिवालिया सम्बन्धी अधिनियम | दिवाला अधिनियमों के गुण एवं दोष
- साझेदार के दिवालिया होने का क्या आशय है?
- साझेदारी फर्म को विघटन से क्या आशय है? What is meant by dissolution of partnership firm?
- साझेदार की मृत्यु का क्या अर्थ है? मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को कुल देय रकम की गणना, भुगतान, लेखांकन तथा लेखांकन समस्याएँ
- मृतक साझेदार के उत्तराधिकारियों को देय राशि के सम्बन्ध में क्या वैधानिक व्यवस्था है?
- साझारी के प्रवेश के समय नया लाभ विभाजन ज्ञात करने की तकनीक
- किराया क्रय पद्धति के लाभ तथा हानियां
- लेखांकन क्या है? लेखांकन की मुख्य विशेषताएँ एवं उद्देश्य क्या है ?
- पुस्तपालन ‘या’ बहीखाता का अर्थ एवं परिभाषाएँ | पुस्तपालन की विशेषताएँ | पुस्तपालन (बहीखाता) एवं लेखांकन में अन्तर
- लेखांकन की प्रकृति एवं लेखांकन के क्षेत्र | लेखांकन कला है या विज्ञान या दोनों?
- लेखांकन सूचनाएं किन व्यक्तियों के लिए उपयोगी होती हैं?
- लेखांकन की विभिन्न शाखाएँ | different branches of accounting in Hindi
- लेखांकन सिद्धान्तों की सीमाएँ | Limitations of Accounting Principles
- लेखांकन समीकरण क्या है?
- लेखांकन सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा | लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताएँ
- लेखांकन सिद्धान्त क्या है? लेखांकन के आधारभूत सिद्धान्त
- लेखांकन के प्रकार | types of accounting in Hindi
- Contribution of Regional Rural Banks and Co-operative Banks in the Growth of Backward Areas
- problems of Regional Rural Banks | Suggestions for Improve RRBs
- Importance or Advantages of Bank
Disclaimer