“भूगोल शिक्षण का महत्वपूर्ण उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को माना गया है।” समझाइये।
कोठारी शिक्षा आयोग ने अपने प्रतिवेदन में लिखा है-
“माध्यमिक स्तर पर यथा सम्भव विश्व भूगोल के संदर्भ में भारत का भूगोल पढ़ाया जाना चाहिए। उचित स्थानों पर भौगोलिक विश्व संस्कृतियों और सामाजिक विकास की प्रधान विशेषताओं से सम्बन्धित कुछ पाठों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।”
माध्यमिक स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करने के लिए विश्व भूगोल शिक्षण के अग्रलिखित लक्ष्य स्पष्ट होते है-
- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना बढ़ाने में विश्व भूगोल का अतिमहत्वपूर्ण स्थान है।
- विश्व भूगोल शिक्षण उग्र राष्ट्रीयता की भावना के स्थान पर विश्व राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करने में सहायक है।
- भूगोल शिक्षण से छात्रों में “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना जागृत की जा सकती है।
- “मानव सभ्यता के विकास में किसी एक जाति अथवा राष्ट्र का ही योगदान नहीं है”, यह तथ्य विश्व भूगोल शिक्षण से स्पष्ट किया जा सकता है तथा छात्र मानव मात्र का मानव सभ्यता में हाथ है, को समझ सकता है।
- वर्तमान विश्व अन्तर्राष्ट्रीय आयात निर्यात के माध्यम से अपने नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है तथा मनुष्य विश्व भौगोलिक परिस्थतियों का ही एक अभिन्न अंग है, की भावना का विकास विश्व भूगोल शिक्षण से किया जा सकता है।
- “वर्तमान सभ्यता एवं संस्कृति तथा मानवता को विनाश बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की महत्ती आवश्यकता है, यह तथ्य विश्व भूगोल शिक्षण से छात्रों को समझाया जा सकता है।”
भूगोल शिक्षण अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास करने में सहायक है, के मत की पुष्टि करते हुए श्री सी.पी. हिल का कथन है कि “भूगोल के शिक्षण से छात्र को सत्य की खोज करने के लिए तत्पर किया जा सकता है और विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों एवं प्रभावों तथा उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक परिस्थितियों को समझने की क्षमता उत्पन्न करके अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास किया जा सकता है।
भूगोल शिक्षण “अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का आधार है” के मत पर बल देते हुए कुछ विद्वानों का कथन है कि “अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सद्भाव भूगोल के अध्ययन का पारितोषिक सिद्ध होगा।” उपर्युक्त कारणों से ही भूगोल शिक्षण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य “अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास” माना गया है।
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