भूगोल शिक्षण में व्याख्यान विधि के गुण एवं दोष बताइये तथा इसके प्रयोग हेतु सुझाव भी दीजिए।
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(अ) व्याख्यान विधि के गुण:-
व्याख्यान विधि के निम्नांकित गुण माने जाते हैं-
- प्रेरणा देने हेतुः- व्याख्यान पद्धति छात्रों को विषय सामग्री के लिए प्रेरित करती हैं जिससे छात्रों में विषय के प्रति रूचि उत्पन्न होती हैं।
- तार्किक शक्ति के विकास हेतुः- व्याख्यान के बीच-बीच में एवं अन्त में शिक्षक एवं छात्र विभिन्न बिन्दुओं पर तर्क करते हैं, फलस्वरूप छात्रों में तर्क अथवा तार्किक शक्ति का विकास होता हैं।
- व्यक्तिगत शिक्षण हेतुः- इस प्रणाली में छात्र एवं शिक्षक आमने-सामने ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं। जिसमें विषयवस्तु को स्पष्ट करने में सहायता प्राप्त होती हैं और व्यक्तिगत विभिन्नता का पूर्ण ध्यान रखा जाता हैं।
- स्पष्टीकरण की दृष्टि से: इस पद्धति में जटिल तथ्यों को आसानी से स्पष्ट किया जा सकता हैं जिससे वो विषय छात्रों के लिए आसान एवं रूचिकर बन सकें।
- यह असंगत तथ्यों की अवहेलना कर छात्रों को संगत तथ्यों को ग्रहण कराने में सहायक हैं।
- इस विधि द्वारा विषय वस्तु को क्रमबद्ध एवं तार्किक रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं जिससे छात्र सरलता से समझ सकते हैं।
- यह विधि विषय-वस्तु को कम समय में पूर्ण करने में सहायक हैं।
- इस विधि के द्वारा चिंहित सम्बन्धों पर छात्रो के ध्यान को आकृष्ट किया जाता हैं।
(ब) व्याख्यान विधि के दोषः
व्याख्यान विधि के निम्नांकित अवगुण अथवा दोष भी हैं।
- इस पद्धति में छात्र निष्क्रिय श्रोता बन जाते हैं।
- यह शिक्षक केन्द्रित विधि हैं जबकि आधुनिक शिक्षा बाल केन्द्रित शिक्षा पर बल देती हैं।
- छात्रों में लापरवाही को जन्म देने के लिए इस विधि द्वारा उपयुक्त वातावरण प्राप्त होता हैं।
- छात्र व्याख्यान द्वारा दी गई शिक्षा को समझ ही लेंगे इस बात की गारण्टी इस विधि के द्वारा प्रदान नहीं की जाती हैं।
- इस विधि में समय का अपव्यय होने की सम्भावनायें अधिक हैं।
- व्याख्यान द्वारा दिया गया ज्ञान कभी भी स्थायी रूप से ग्रहण नहीं कर सकता।
- इस विधि में करके सीखना सिद्धान्त की पूर्ण अवहेलना होती हैं।
- छोटी कक्षाओं के लिए यह विधि शिक्षण के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त हैं।
(स) व्याख्यान विधि के प्रयोग हेतु सुझाव:- व्याख्यान पद्धति द्वारा छात्रों को मध्यम गति से शिक्षण कार्य कराया जाना चाहिए। इसमें मौखिक उदाहरण तथा शाब्दिक चित्रों का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जाना चाहिए। व्याख्यान देते समय हावभाव बनाना, पूर्ण रूप रेखा तैयार करना समस्या अथवा प्रकरण पर आधारित ही व्याख्यान देना, नियोजित कार्यक्रमानुसार अध्ययन को निश्चित करना आदि इसका प्रयोग केवल पूर्वज्ञान की पूर्ति के लिए ही किया जाना चाहिए। इस पद्धति में विषय में आये संगत तथ्यों, कठिन शब्दों आदि को स्पष्ट करना चाहिए। जब समय बचाने की आवश्यकता हो, छात्रों में रूचि उत्पन्न करनी हो अथवा अतिरिक्त जानकारी छात्रों को उपलब्ध करानी हो तभी शिक्षक को इस पद्धति का प्रयोग करना चाहिए।
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