भूगोल शिक्षण में भ्रमणात्मक विधि एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण विधि है। जैसा कि फेयरग्रीव का कहना है- “भूगोल का अधिकांश भाग मस्तिष्क की अपेक्षा पैरों द्वारा सीखा जाता है” (“More Geography is learnt by feet rather than by head.”)
यह विधि स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलती है। इस विधि से भौगोलिक तथ्यों की जानकारी उनके स्वाभाविक वातावरण है में होती है। निरीक्षणात्मक विधि तथा भ्रमणात्मक विधि का घनिष्ठ सम्बन्ध है। वास्तव में, निरीक्षणात्मक विधि का ही विस्तृत रूप भ्रमणात्मक विधि है। भ्रमणात्मक विधि के द्वारा छात्रों को कक्षा से बाहर ले जाकर प्रकृति के सम्पर्क में लाया जाता है और वे भूगोल की बातों को निरीक्षण के माध्यम से सीखते हैं।
इस विधि का अनुसरण अध्यापक तीन प्रकार से कर सकता है-
1. निम्न माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों को एक दिन की यात्रा पर ले जाया जा सकता है, और उन्हें बाजार या मेले की सैर, नदी, झील, फसलों, सिंचाई के साधन, यातायात एवं अन्य मनुष्यों के रीति-रिवाज एवं उद्योगों का ज्ञान कराया जा सकता है।
2. लघु कक्षाओं में चालीस या 45 मिनट की यात्रा में विद्यालय के पास-पड़ोस की भूमि की बनावट, फसलें, यातायात, लोगों का खान-पान, रहन-सहन एवं उद्योग धन्धों का ज्ञान कक्षा से बाहर ले जाकर कराया जा सकता है।
3. उच्च कक्षाओं में छात्रों का शारीरिक व मानसिक विकास अत्यधिक हो जाता है। वे अपना उत्तरदायित्व समझने लगते हैं। उन्हें लम्बी छुट्टियों में कई दिन या कई सप्ताह के लिये भौगोलिक यात्राओं पर अपने शहर से बाहर ले जाया जा सकता है। यात्राओं द्वारा वे अध्यापकों के निर्देशन में पड़ौसी राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं।
भ्रमणात्मक विधि की सफलता
भ्रमणात्मक विधि की सफलता निम्न बातों पर निर्भर करती है-
1. भ्रमण के लिये कितना ही समय मिले, शिक्षक को उसका अधिक से अधिक सदुपयोग करना चाहिये।
2. भ्रमण के समय बालकों के प्रश्नों का उत्तर अवश्य देना चाहिये।
3. भूगोल शिक्षक स्वयं पर्यटन प्रेमी एवं उत्साही हो।
4. भ्रमण के लिये पूर्व से ही एक योजना बना लेनी चाहिये, और निरीक्षण की जाने वाली वस्तुओं एवं स्थानों की सूची तैयार की जानी चाहिये।
5. यात्रा काल में बालकों की सुरक्षा का ध्यान अवश्य रखा जाये।
6. बालकों के ज्ञान को स्थायी बनाने के लिये भ्रमण के समय देखी गई वस्तुओं का विवरण तैयार कराया जाय तथा नक्शे आदि बनवाये जायें।
7. भ्रमण के समय प्रत्येक बालक के पास पेन्सिल तथा नोट-बुक अवश्य होनी चाहिये।
8. इस विधि की सफलता विशेष रूप से पर्यटन करने वालों की निरीक्षणात्मक शक्ति पर निर्भर रहती है। इसलिये निरीक्षणात्मक व भ्रमणात्मक विधियाँ एक-दूसरे पर निर्भर रहती हैं।
9. अध्यापक को अपने साथ कैमरा अवश्य ले जाना चाहिये।
10. भौगोलिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण खनिज पदार्थ, मिट्टी के विभिन्न रूप वनस्पति एवं विभिन्न प्रकार की चट्टानों के टुकड़े इकट्ठे करने की प्रेरणा देनी चाहिये।
भ्रमणात्मक विधि के गुण
भ्रमण द्वारा प्राप्त किया ज्ञान स्थायी होता है।
छात्रों में सहानुभूति एवं पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास होता है।
इस विधि से, तर्क-वितर्क की शक्तियों को प्रोत्साहन मिलता है।
छात्र भौगोलिक तथ्यों की वास्तविक जानकारी प्राप्त करते हैं, क्योंकि वे वस्तुओं को स्वयं अपनी आँखों से देखते हैं।
यह बहुत ही रुचिकर विधि है। छात्र यात्रा करना बहुत पसन्द करते हैं।
छात्र अनुशासन में रहना एवं अध्यापक के निर्देशन में कार्य करना सीखते हैं।
भ्रमणात्मक विधि के दोष
यह विधि बहुत खर्चीली है।
अध्यापक को यात्रा के समय बालकों की सुरक्षा एवं अनुशासनहीनता की समस्या का भय रहता है।
समय काफी नष्ट होता है।
अध्यापक द्वारा यात्रा की योजना अगर उचित प्रकार से नहीं बन पाई है तो भ्रमण से छात्रों को कोई लाभ नहीं हो सकता है।
यात्राओं के लिये कभी-कभी छात्रों के संरक्षक अनुमति नहीं देते।
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