महादेवी वर्मा के जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख कीजिए तथा साहित्य में उनकी भूमिका का निर्धारण कीजिए।
जीवन परिचय- महादेवी वर्मा का जन्म होलिकोत्सव के दिन संवत् 1964 वि० में उ0 प्र0 के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा और उनकी माता श्रीमती हेमरानी देवी, दोनों शिक्षित एवं शिक्षा-प्रेमी थे। महादेवी के नाना भी ब्रजभाषा के एक कवि थे। इस प्रकार बचपन से ही महादेवी जी में कविता करने की रुचि उत्पन्न हो गयी थी। महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर म० प्र० में हुई। वहाँ उन्होंने छठी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की। घर पर चित्रकला और संगीत की शिक्षा भी उन्हें दी गयी। तुलसी, सूर और मीरा का साहित्य उन्होंने अपनी माता से ही पढ़ा। सं० 1973 में उनका विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा के साथ हुआ। इससे उनकी शिक्षा का क्रम टूट गया। उनके ससुर लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में नहीं थे। लेकिन जब उनका देहान्त हो गया, तब महादेवी जी पुनः शिक्षा प्राप्त करने की ओर अग्रसर हुई। उन्होंने प्रयाग से सं० 1977 में प्रथम श्रेणी में मिडिल उत्तीर्ण किया था।
महादेवी वर्मा का संयुक्त प्रान्त के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान था जिसके परिणामस्वरूप उन्हें छात्रवृत्ति मिली लगी। सं० 1981 में उन्होंने इंट्रेस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और पुन: प्रान्त भर में उन्हें सर्वप्रथम स्थान मिला। इस बार भी उन्हें छात्रवृत्ति मिली। सं० 1983 में उन्होंने इंटरमीडियट परीक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज से पास की तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सं० 1985 में बी०ए० और सं० 1990 में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार उनका विद्यार्थी जीवन आदि से अन्त तक बहुत सफल रहा। बी०ए० की परीक्षा में उनका एक विषय दर्शन भी था, इसलिये उन्होंने भारतीय दर्शन का गम्भीर अध्ययन किया। इस अध्ययन की छाप उन पर बराबर बनी रही।
उल्लेखनीय है कि महादेवी जी में बचपन से ही कविता करने की रुचि थी। कुछ बड़ी होने पर वे अपनी माता के पदों में अपनी ओर से कुछ कड़ियाँ जोड़ दिया करती थीं। स्वतंत्र रूप से भी वे तुकबंदियाँ करती थीं लेकिन वे अपनी तुकबंदियाँ किसी को दिखाना पसन्द नहीं करती थीं। उस समय उनमें एक झिझक भी जो धीरे-धीरे शिक्षा की उन्नति के साथ निकल गयी। फिर उन्होंने अपनी रचनायें ‘चाँद’ में प्रकाशित होने के लिये भेजी। हिन्दी-संसार में उनकी उन प्रारम्भिक रचनाओं का अच्छा स्वागत हुआ इससे महादेवी जी को अधिक प्रोत्साहन मिला और फिर वे नियमित रूप से काव्य साधना की ओर अग्रसर हो गयीं।
महादेवी जी का सम्पूर्ण जीवन शिक्षा विभाग में व्यतीत हुआ था। एम.ए. पास करने के पश्चात् वे प्रयाग महिला-विद्यापीठ की प्रधानाचार्या नियुक्त हुईं। उनके सतत् उद्योग से उक्त विद्यापीठ ने उत्तरोत्तर उन्नति की। वे ‘चाँद’ की सम्पादिका भी रह चुकी हैं। सं० 1991 में ‘नीरजा’ पर 500 रु० का ‘सेकसरिया पुरस्कार’ और सं० 2001 में ‘आधुनिक कवि ‘रश्मि’ और निहार पर 1,200 रुपये का ‘मंगला प्रसाद’ पारितोषिक और भारत भारती और ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुका है। भारत सरकार द्वारा ‘पद्य-भूषण’ की उपाधि से भी अलंकृत हुईं। भाषा, साहित्य, संगीत और चित्रकला के अतिरिक्त उनकी रुचि दर्शनशास्त्र के प्रति भी थी। इनकी मृत्यु संवत 2044 (11 सितम्बर 1987) को प्रयाग में हुई।
महादेवी वर्मा की भारतीय धर्म, संस्कृति, संगीत और चित्रकला में गहरी आस्था और पैठ थी। वे एम.ए. करने के बाद प्रयाग महिला विद्यापीठ में आचार्या हो गई। वे नारी की पीड़ा से परिचित थीं, इसलिए अपने अवकाश के समय ग्रामीणों को शिक्षा देने के लिए आश्रम भी चलाया करती थीं जिसकी कटु एवं मधुर स्मृतियाँ आज भी हमारे साथ हैं। आपने कुछ दिन चाँद नामक पत्रिका का संपादन किया। आपने साहित्यकारों को सहायता प्रदान करने के लिए प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ की भी स्थापना की।
महादेवी वर्मा की को बहुत बार विभिन्न पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया है। नीरजा पर 500 रुपये का सेकसरिया पुरस्कार, यामा पर 1200 रुपये का मंगला प्रसाद पारितोषक तथा बहुत से अन्य पुरस्कार मिले 11956 ई. में भारत सरकार ने आपको पद्मविभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सुशोभित किया गया है।
कृतित्व- महादेवी वर्मा की प्रमुख साहित्यिक निधियाँ निम्नवत् हैं-
काव्य-संग्रह- नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, यामा, संधिनी, नीहार, रश्मि, हिमालय, आदि।
संस्मरण व रेखाचित्र- श्रृंखला की कड़ियाँ, पथ के साथी, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, क्षणदा, परिक्रमा, मेरा परिवार।
आलोचना- साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध काव्य-संग्रहों की भूमिकाएँ।
अनुवाद- सप्तपर्णा ।
काव्य-विमर्श- महादेवी वर्मा के काव्य में उनका व्यक्तित्व साफ-सुथरा झलकता प्रतीत होता है। हिमालय उनके द्वारा सम्पादित कविता संकलन है, जिसमें विभिन्न विचारों की कविताओं का संकलन किया गया है। कविता के समान गद्य क्षेत्र में भी इन्होंने प्रौढ़ रचनाएँ लिखी हैं। इनमें अधिकतर सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर विचारात्मक निबन्धों को स्थान दिया गया है। उन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को रेखाचित्रों में बाँधकर रखा है।
छायावाद के आधार- छायावादी स्तम्भकारों में भी महादेवी जी का प्रमुख स्थान है। उन्होंने अपनी कविताओं में कल्पना, प्रकृति-सौन्दर्य, सूक्ष्म अभिव्यंजना आदि छायावादी तत्वों को समुचित स्थान दिया है। किन्तु छायावादी रहस्य दर्शन पर उनका अधिक बल रहा है। उनकी रहस्यवादी कविताओं में आलौकिक प्रियतम के प्रति जिज्ञासा, साक्षात्कार के लिये विकलता और मिलन का मार्मिक चित्रण हुआ है। उन्होंने एक ओर सर्ववाद के सिद्धान्त के अनुसार ईश्वर को सब कहीं व्याप्त माना है और दूसरी ओर आत्मा को पत्नी तथा परमात्मा को पति के रूप में ग्रहण किया है। आध्यात्मिक विरह का वर्णन उनकी प्रमुख काव्य प्रवृत्ति है जो कहीं विप्रलम्भ शृंगार और कहीं करुण रस के माध्यम से व्यक्त हुई है। छायावाद के अनुरूप प्रकृति के क्रियाकलापों का मानवीकरण भी उनकी कविताओं में सहज प्राप्य है। उनके प्रकृति चित्रों में कल्पना और रहस्य-दर्शन के समावेश है।
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