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मिथ्यावर्णन से आप क्या समझते हैं? मिथ्यावर्णन के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
मिथ्यावर्णन का आशय – मिथ्यावर्णन का शाब्दिक अर्थ है- असत्य कथन । असत्य कथन दो प्रकार से किया जा सकता है- (1) निर्दोष भाव से (2) जानबूझकर धोखा देने के उद्देश्य से। निर्दोष भाव से किये गये असत्य कथन को मिथ्या वर्णन तथा जानबूझकर धोखा देने के उद्देश्य से किये गये असत्य कथन को कपट कहते हैं। अनुबन्ध करते समय या अनुबन्ध करने से पूर्व किसी पक्ष द्वारा अज्ञानवश या निर्दोष भाव से किये गये तथ्य सम्बन्धी असत्य कथन को ही मिथ्या वर्णन कहा जाता है। परन्तु कानून की दृष्टि से इसके अतिरिक्त परिस्थितियों में भी सहमति मिथ्या वर्णन से प्रभावित मानी जाती है।
धारा 17 के अनुसार, जब कोई किसी दूसरे को अनुबन्ध करने के लिए लापरवाही से कोई असत्य बात समझ कर कहता है; जिसका उद्देश्य दूसरे को धोखा देना नहीं है पर उसे धोखा हो जाता है तो इसे हम कपटपूर्ण मिथ्या वर्णन कहेंगे। उदाहरण-‘अ’ ‘ब’ से पूछता है कि क्या यह सोना है। ‘ब’ बिना देखे ‘हाँ’ कह देता है जबकि वह वास्तव में सोना नहीं है। यह मिथ्या वर्णन होगा क्योंकि कथन असावधानीपूर्वक दिया गया और उस कथन का उद्देश्य ‘अ’ को धोखा देना नहीं है।
धारा 18 के अनुसार, जब मिथ्या वर्णन अज्ञानवश किया जाता है तो उसे निर्दोष मिथ्या वर्णन कहते हैं। भारतीय अधिनियम में इसे ही मिथ्या वर्णन कहते हैं।
उदाहरण- ‘अ’ ‘ब’ से पूछता है कि क्या यह सोना है। ‘ब’ बिना देखे ‘हाँ’ कह देता है जबकि वह वास्तव में सोना नहीं है। यह मिथ्या वर्णन होगा क्योंकि कथन असावधानीपूर्वक दिया गया है और इस कथन का उद्देश्य ‘अ’ को धोखा देना नहीं है।
धारा 18 में के अनुसार मिथ्या वर्णन में निम्नलिखित कृत्यों को सम्मिलित किया गया है-
(1) निश्चयात्मक कथन द्वारा मिथ्या वर्णन- धारा 18 (1) के अनुसार किसी असत्य बात को सत्य समझते हुए उसका वर्णन करना, निश्चात्मक कथन द्वारा मिथ्या वर्णन कहलाता है।
(2) कर्तव्य भंग द्वारा मिथ्या वर्णन- धारा 18 (2) के अनुसार बिना कपट के अभिप्राय से किया गया ऐसा कर्तव्य भंग जिससे ऐसा करने वाले व्यक्ति अथवा उसके अधीन अधिकार रखने वाले व्यक्ति को कुछ लाभ होता है और उससे दूसरे पक्षकार का अहित होता है, मिथ्या वर्णन कहलाता है। सद्भावना वाले अनुबन्ध इसके प्रमुख उदाहरण है।
(3) अज्ञानतावश मिथ्या वर्णन द्वारा त्रुटि करना- धारा 18 (3) के अनुसार जब एक पक्षकार अनुबन्ध की विषय-वस्तु के सार तत्व के सम्बन्ध में अज्ञानतावश कोई प्रदर्शन करता है। मिथ्या वर्णन कहलाता है।
मिथ्या वर्णन के प्रभाव
धारा 19 के अनुसार पीड़ित को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं-
(1) अनुबन्ध को रद्द करने का अधिकार- जिस पक्षकार के साथ मिथ्या वर्णन का प्रयोग किया गया है वह पक्षकार अनुबन्ध को रद्द कर सकता है परन्तु ऐसा तब ही सम्भव है। जबकि परिस्थितियाँ ऐसी हो कि वह आसानी से सत्य बात का पता न लगा सके।
(2) अनुबन्ध की अभिपुष्टि करने का अधिकार– यदि उसके हित में हो तो वह अनुबन्ध की अभिपुष्टि कर सकता है और अनुबन्ध की सभी शर्तों को पूरा करवाने के लिए दूसरे पक्षकार को बाध्य कर सकता है।
(3) प्रत्यास्थापना का अधिकार- अनुबन्ध को रद्द करने की दशा में वह प्रत्यास्थापना की मांग कर सकता है अर्थात् यदि कोई धन अथवा सम्पत्ति उसने पक्षकार को दी है तो वह उसको वापस प्राप्त करने का अधिकारी है। परन्तु यह क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता।
(4) सिद्ध करने का भार- मिथ्या वर्णन के आधार पर रद्द करने वाले पक्षकार को यह सिद्ध करना पड़ता है कि उक्त अनुबन्ध से मिथ्या वर्णन द्वारा उसकी सहमति प्राप्त की गयी थी। इसके अतिरिक्त उसे निम्नलिखित बातें भी सिद्ध करनी पड़ती है-
- मिथ्या वर्णन अनुबन्ध की विषय वस्तु के सम्बन्ध में था।
- मिथ्या-वर्णन अनुबन्ध करते समय अथवा इससे पूर्व किया गया था।
- मिथ्या-वर्णन वास्तव में बिल्कुल असत्य था।
- उसने मिथ्या-वर्णन पर विश्वास करके ही अनुबन्ध किया था।
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