शिक्षण विधियाँ / METHODS OF TEACHING TOPICS

मुक्त अभिव्यक्ति विधि | free expression method in Hindi

मुक्त अभिव्यक्ति विधि | free expression method in Hindi
मुक्त अभिव्यक्ति विधि | free expression method in Hindi

मुक्त अभिव्यक्ति विधि

छात्र जन्म से ही कलाकार होता है। वह अन्तप्रेरणा से ऐसा कोई न कोई कार्य करता रहता है जिससे उसकी कलात्मक प्रवृत्ति का परिचय मिलता रहता है, लेकिन उसकी सामर्थ्य तथा योग्यता सीमित रहने के कारण उसका कलात्मक प्रकाशन सीमित तथा अस्पष्ट हुआ करता है। मुक्त अभिव्यक्ति अन्तःप्रेरणा का उत्तम प्रयास है। छात्र जो भी भाव स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त करता है, वही उसका स्वतन्त्र भाव प्रकाशन या मुक्त अभिव्यक्ति माना जा सकता है, किन्तु जब छात्र में भावों का अभाव होगा तो वह मुक्त अभिव्यक्ति में अशक्त और विवश ही होगा। अतः छात्र में पहले भाव उत्पन्न करना आवश्यक है। तभी वह उनको अभिव्यक्ति कर सकने योग्य बनता है। जब छात्र में भाव उत्पन्न हों तब उस पर कोई विधि, कोई शैली लादी न जाए, वरन् वह अपने भावों को किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति करने में स्वतन्त्र हो, तभी मुक्त अभिव्यक्ति का आशय स्पष्ट हो सकता है।

भाव-छात्र कविता, कहानी, आदि में अधिक रुचि लेता है। अतः किसी भी उपयोगी कथा-कहानी अथवा कविता के माध्यम से छात्र में वांछित भावों का विकास कर सकते हैं। किसी प्राकृतिक दृश्य, घटना, व्यक्ति अथवा वस्तु को दिखाकर भी उपयोगी भाव भरे जा सकते हैं। छात्र के सीखने में उसके नेत्रों तथा कानों का सहयोग बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। पहले वह किसी बात को सुने फिर उसे देखे तो उसका प्रभाव मस्तिष्क पर अधिक स्थायी होता है। इस प्रकार बने ज्ञान के प्रत्यय अधिक दृढ़ तथा स्थायी होते हैं। इन्हीं भावों को यदि हाथों द्वारा (क्रिया के माध्यम से) प्रकाशित करने का अवसर प्रदान किया जाए तो वह भाव या ज्ञान जीवन का अंग बन जाते हैं।

कला मस्तिष्क, हृदय तथा हाथों में उत्तम सहयोग उत्पन्न करने का अवसर प्रदान करती है। हृदय भावों की निधि, मस्तिष्क ज्ञान की निधि एवं हाथ कर्म की निधि होते हैं। जब भाव, ज्ञान और कर्म एक साथ क्रियात्मक रूप ग्रहण कर लेते हैं तो ऐसी अवस्था में पूर्ण की गयी कृति उपादेय कलाकृति होती है। कर्म से ज्ञान और ज्ञान से भाव उत्पन्न होते हैं। अतः शिक्षक का परम कर्तव्य है कि वह छात्रों को ‘करके सीखना’ के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर प्रदान करे तभी छात्रों में सर्वश्रेष्ठ भाव उत्पन्न हो सकते हैं।

स्वतन्त्रता – स्वतन्त्र अभिव्यक्ति उज्ज्वल, उन्नत एवं उपादेय होती है। छात्रों को भाव अभिव्यक्त करने हेतु पूर्ण स्वतन्त्रता देनी चाहिए। यहाँ स्वतन्त्रता का अर्थ भावों की स्वतन्त्रता नहीं, वरन् निर्दिष्ट भावों को व्यक्त करने की स्वतन्त्रता है। कक्षा में छात्रों को एक ही कविता या कथा-कहानी सुनाकर अथवा दृश्य दिखाकर एक ही भाव उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता है। भाव दो प्रकार के होते हैं—(1) मुख्य भाव, (2) गौण भाव। छात्रों द्वारा प्रमुख भाव ही अभिव्यक्त करना होता है, जिसकी अभिव्यक्ति में गौण भाव मुख्य भाव को उन्नत बनाने में सहयोग दिया करते हैं। शिक्षक को छात्रों के समक्ष गौण भावों को उसी सीमा तक व्यक्त करना चाहिए, जहाँ व्यक्त मुख्य भाव अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता हो। इस प्रकार छात्रों को प्रमुख भाव से अनुप्रेरित करके चित्रण के माध्यम से भाव अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए। वे अपनी इच्छानुसार रंगों का प्रयोग करें, इच्छानुसार चित्रण करें, वस्तु का निर्माण करें तथा भावों को व्यक्त करें। उन पर किसी भी प्रकार की शैली या विधि न थोपी जाए।

छात्रों में उत्पन्न भावों को स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त करने की क्रिया को मुक्त अभिव्यक्ति कहा जा सकता है। छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक अभिव्यक्ति करता है तो निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति होती है—

(1) अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करना। (2) छात्र में मुक्त अभिव्यक्ति की आत्म-निर्भरता उत्पन्न होना। (3) हाथ, मस्तिष्क तथा हृदय का मिश्रित सहयोग उपलब्ध करना। (4) छात्र में सौन्दर्यानुभूति का विकास करना (5) कला के प्रति रुचि एवं अनुराग उत्पन्न होना। (6) अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता का उपयोग कराने की सामर्थ्य उत्पन्न करना। (7) छात्रों में हस्त-कौशल उत्पन्न करना। (8) छात्र का भावात्मक विकास करना।

ध्यान रखने योग्य बातें- इस विधि का कला के क्षेत्र में प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में चाहिए-

1. शिक्षक मार्ग-दर्शक के रूप में कार्य करे, मार्ग अवरोधक न बने। छात्र में कोई गन्दी आदत दिखायी दे तो शिक्षक सुधारात्मक दृष्टिकोण से उसका मार्ग दर्शन इस प्रकार करे कि उसकी स्वतन्त्रता में बाधा न पड़े।

2. रचनात्मक वातावरण- वातावरण रचनात्मक होना चाहिए। प्रत्येक छात्र अपने भाव को किसी-न-किसी प्रकार की रचनात्मक क्रिया द्वारा व्यक्त करता रहे।

3. शिक्षक द्वारा निरीक्षण- शिक्षक को छात्रों के कार्य का निरीक्षण भली प्रकार से करना चाहिए और छात्रों की असुविधा को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। शिक्षक निरीक्षण करते समय छात्रों की व्यक्तिगत सुविधाओं एवं त्रुटियों की ओर भी ध्यान दे।

4. स्वतन्त्रतापूर्ण वातावरण- स्वतन्त्रतापूर्ण वातावरण उत्पन्न होना चाहिए। छात्र अपनी इच्छानुसार रंगों, पेन्सिल द्वारा चित्रण करे, उसे टोकना नहीं चाहिए। वातावरण मुक्त होना चाहिए। शिक्षक संकेतात्मक रूप में स्नेहमय वातावरण एवं व्यवहार में छात्र के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं।

5. छात्रों पर मुक्त अभिव्यक्ति करते समय किसी प्रकार की विधि या शैली को न थोपा जाए। छात्र स्वेच्छा से मुक्त अभिव्यक्ति करे।

6. स्वतन्त्र शैलियों का उपयोग- छात्र मुक्त अभिव्यक्ति में स्वतन्त्र शैलियों का उपयोग करते हैं। कोई स्टेन्सिल द्वारा, कोई काटने और चिपकाने की क्रिया द्वारा, कोई स्प्रे कार्य द्वारा कोई मिट्टी के काम द्वारा, कोई रेखाचित्रों द्वारा कोई रंगीन चित्रों, आदि विभिन्न शैलियों द्वारा मुक्त अभिव्यक्ति करते हैं। छात्रों को स्वतन्त्रतापूर्ण वातावरण में स्वेच्छापूर्वक कार्य करने देना चाहिए।

7. साधन उपलब्ध कराना – शिक्षक मुक्त अभिव्यक्ति कराने हेतु प्रत्येक प्रकार के साधन, उपकरण तथा सुविधाएँ उपलब्ध कराए। ऐसा करने पर छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक किसी साधन, सामग्री का उपयोग सुविधानुसार कर सकेगा।

मुक्त अभिव्यक्ति के माध्यम

छात्र कथा, कहानी, कविता, दृश्य तथा निरीक्षण, आदि में रुचि लेते हैं। इन माध्यमों से भी मुक्त अभिव्यक्ति के कार्य कराए जा सकते हैं, जैसे-

1. कविता- छात्रों को शिक्षक कोई उपयोगी कविता सुनाये और उसके माध्यम से भी चित्र वह बनवा सकता है। कविता का चयन, भाव और स्तर को ध्यान में रखकर छात्रों की रुचि के आधार पर करना चाहिए।

2. छात्रों द्वारा निरीक्षण– शिक्षक योजनानुसार आवश्यकता के अनुरूप छात्रों को किसी प्राकृतिक दृश्य, घटना, व्यक्ति या स्थल को देखने का अवसर दे। जो भाव इस निरीक्षण द्वारा उत्पन्न हो, उसको चित्रित करने या व्यक्त करने का अवसर दे। किसी दृश्य, घटना अथवा स्थल, आदि देखकर छात्र में विभिन्न प्रकार के भाव उत्पन्न हो सकते हैं, लेकिन शिक्षक सतर्क होकर संकेतों तथा प्रश्नों द्वारा अभीष्ट भावों की ओर संकेत करे, जिससे छात्र एक भाव से प्रेरित हो प्रेरणा ले सकें।

3. नवीन ज्ञान- नवीन ज्ञान या कार्य छात्र की दैनिकचर्या का अंग होना चाहिए। कथा, कहानी, कविता, दृश्य, स्थल या घटनाएँ उसके जीवन से सम्बन्धित या अनुभव की होनी चाहिए। ऐसा ध्यान रखने से वे उसे भिन्न नहीं मानेंगे तथा उसके करने में रुचि लेंगे।

4. कथा तथा कहानी- किसी कथा या कहानी को छात्रों को सुनाया जाए या उनसे कहलवाया जाए तथा उसके आधार पर उनसे चित्र बनवाया जाए। कथा या कहानी की प्रमुख बातें ही चित्रित करवायी जाएँ। गौण बातों को इस प्रकार रखना चित्रित करवाया जाए कि वे मुख्य बातों को प्रभावशाली बनाएँ। कथा या कहानी छात्रों की रुचि और निर्माण के अनुसार होनी चाहिए। शिक्षक किसी कथा या कहानी के स्तर तथा भाव को स्वयं निश्चित कर मुक्त अभिव्यक्ति कर सकता है।

5. अन्य विषयों का ज्ञान- छात्रों को भाषा, इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र तथा विज्ञान, आदि विषयों में आए हुए प्रसंगों के आधार पर भी मुक्त अभिव्यक्ति का अवसर देना चाहिए। ऐसा करने से कला-शिक्षण के माध्यम से अन्य विषयों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

6. पूर्व-ज्ञान तथा अभ्यास- शिक्षक पूर्व-ज्ञान तथा अभ्यास के आधार पर पता लगाए, जब उसे उसका ज्ञान हो जाए तो प्रस्तावना के आधार पर छात्रों का ध्यान मूल पाठ की ओर आकर्षित करे।

7. बहुमूल्य वस्तुओं के प्रयोग का अभाव- शिक्षकों द्वारा छात्रों को प्रयोग करने हेतु अधिक मूल्यवान वस्तुएँ नहीं दी जानी चाहिएँ। उन्हें मिट्टी के अपारदर्शक रंग, खजूर या बाँस या रुई के बुश, मुल्तानी मिट्टी से पुती लकड़ी की तख्तियाँ, कड़े कागज के टुकड़े, स्याही, रंगीन चॉकें दी जानी चाहिएँ। जो मिट्टी का कार्य करना चाहे उसे गुथी हुई मिट्टी, गत्ते या रंगे हुए अखबारी कागज, मिट्टी के चूर्ण रंग, गेरू, नील, पेवड़ी, चूना, आदि दिए जाने चाहिएँ। उच्च कक्षाओं के शिक्षण हेतु अच्छे स्तर के उपकरण दिए जाने चाहिए।

8. छात्रों की जिज्ञासा की जानकारी – शिक्षक को प्रस्तावना बनाने से पूर्व छात्रों की जिज्ञासा, रुचि तथा उत्कण्ठा का भली प्रकार पता लगा लेना चाहिए, तभी मूल पाठ की ओर उन्हें ले जाना हितकर होगा। छात्र स्वयं अपनी रुचि व्यक्त करने के लिए उत्सुक रहते हैं। उसके बावजूद प्रश्नों के माध्यम से उनकी रुचि, जिज्ञासा तथा उत्कण्ठा का पता लगाया जा सकता है।

मुक्त अभिव्यक्ति विधि द्वारा छात्र जो भी चित्रण अथवा कलात्मक कार्य प्रस्तुत करे उसकी सुधारात्मक प्रशंसा की जानी चाहिए जो सुझाव, सराहना तथा प्रोत्साहन युक्त होना चाहिए। कविता की भावाभिव्यक्ति कोई छात्र चित्रण द्वारा, कोई कौए तथा घड़े का चित्र काट एवं चिपका कर, तो कोई स्प्रे या स्टेन्सिल द्वारा व्यक्त करने का प्रयास करेगा। अन्त में इन सभी उद्देश्यों को एक-एक इकाई मानकर रूपकारी कला के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। इन्हीं दृश्यों का चित्रण पेन्सिल तथा रंग द्वारा भी दर्शाया जा सकता है।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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