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‘मुझे फूल मत मारो’ गीत के संदर्भ में उर्मिला कामदेव सम्बन्ध

'मुझे फूल मत मारो' गीत के संदर्भ में उर्मिला कामदेव सम्बन्ध
‘मुझे फूल मत मारो’ गीत के संदर्भ में उर्मिला कामदेव सम्बन्ध
‘मुझे फूल मत मारो’ गीत के संदर्भ में उर्मिला कामदेव सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।

प्रस्तुत कविता में उर्मिला अपने को अबला वियोगिनी कहती है। ‘मुझे फूल मत मारो यह मूल्यवान् एवं भाव प्रवण गीत मैथिलीशरण गुप्त के ‘सांकेत’ महाकाव्य के नवमसर्ग में संरचित है। इस गीत में विरह से व्यथित उर्मिला की मार्मिक भावना का चित्रण किया गया है। वह अपने को पतिवता नारी बताती है। वह अपने पति को कामदेव से सुन्दर बताती है। वासंती वातावरण होने के कारण चतुर्दिक मादकत्ता का साम्राज्य व्याप्त है। उर्मिला चित्रकला में निपुण है। यह इसके माध्यम से चित्र बना बनाकर अपना मन बहलाती है। वह अपने मस्तक पर लगे हुए सिंदूर को शिव का तीसरा नेत्र समझती है, वह कामदेय को सम्बोधित करती हुई कहती है—

“नहीं भोगिनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह यह हरनेत्र निहारो!”

उर्मिला कामदेव से कहती है, मैं तो वासना से बहुत दूर हूँ। अतः तुम्हें न तो मुझे पीड़ित करने का अधिकार ही है और न तुम मुझे पीड़ित ही कर सकते हो। इस पर भी तुम यदि स्वयं को शक्तिशाली समझते हो तो मेरे माथे पर लगे हुए इस सिंदूर के बिन्दु को शिव का तीसरा नेत्र समझो और समझ लो कि जिस प्रकार शिव के तीसरे नेत्र ने तुम्हें भस्म कर दिया था, उसी प्रकार मेरा यह सिन्दूर का बिन्दु भी तुम्हें भस्म कर देगा।

बसंत ऋतु में खुले खिले पुष्प अपनी अपूर्व रंगामा, सुषमा एवं सुगंध से सबको अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं। पतिवियुक्ता विरह विदग्धा उर्मिला की दशा ऐसे वातावरण दुःखदायी हो गयी है उसे लगता है कि ऐसे प्राकृतिक परिवेश में कामदेव उस पर फूलों के बाण चलाकर उसे अपने वंश में करना चाहते हैं। वह पुष्पधन्वा कामदेव से पहले तो प्रणता निवेदन करती है कि हे कामदेव! तुम अपने पुष्प बाणों से घायल मत करो। मैं एक तो अबला बाला हूँ, दूसरे वियोगिनी हूँ। सम्प्रति मुझे पति धन साविध्य प्राप्त नहीं है, अतः तुम मुझे पर विषवमन मत करो। तुम्हारे इस कार्य से मेरी विकलता बढ़ सकती है, किन्तु तुम अपने उद्देश्य में सफल नहीं होंगे, तुम्हें विफलता ही मिलेगी। मैं कोई भोगिनी विलासिनी सुन्दरी नहीं हूँ जो तुम जाल फैला रहे हो। मैं तुम्हारे जाल में फँसकर अपना सतीत्व किया पातिव्रत धर्म छोड़ दूँगी, यह नहीं होगा। अनंतर विरहिणी उर्मिला को क्रोध आ जाता है और फटकार भरे शब्दों में कहती है कि यदि तुममें शक्ति है तो मेरे सिंदूर बिन्दु की ओर देखो, वह साक्षात् शिवनेत्र हैं, जो तुम्हें भस्म कर देना। यदि तुमको अपने रूप का अहंकार है, तो मेरी चरणभूलि ले जाकर रति के मस्तक पर लगा दो, क्योंकि रति का तुम्हारे प्रति जो प्रेमभाव है, अपने पति के प्रति मेरा प्रेमभाव उससे अधिक गम्भीर है।

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Anjali Yadav

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