मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्यों तथा विभिन्न सोपानों का उल्लेख कीजिए।
शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रक्रिया का प्रमुख उद्देश्य, शिक्षा – को उद्देश्य केन्द्रित बनाना है, किन्तु इसके अतिरिक्त मूल्यांकन के कुछ अन्य उद्देश्य भी हैं, जिनका ज्ञान प्रत्येक शिक्षक के लिए अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षा के द्वारा हमें छात्रों के बौद्धिक, शारीरिक, सामाजिक, नैतिक, संवेगात्मक तथा स्वभाव से उचित विकास की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हमें शिक्षा में हुए परिवर्तनों की जानकारी आवश्यक है।
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मूल्यांकन के उद्देश्य (Aims of Evaluation)
मूल्यांकन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- किस उद्देश्य की प्राप्ति, किस सीमा तक हुई है, इसका विश्वसनीय ज्ञान भी, मूल्यांकन प्रक्रिया के द्वारा ही सम्भव है।
- शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में अपेक्षित सुधार के लिए विश्वसनीय जानकारी प्रदान करना भी मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य है।
- मूल्यांकन प्रक्रिया के आधार पर विद्यार्थियों की भावी उपलब्धियों के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की जा सकती है।
- मूल्यांकन प्रक्रिया के द्वारा छात्रों में निहित योग्यताओं के सम्बन्ध में वस्तुनिष्ठ जानकारी प्राप्त होती है।
- मूल्यांकन प्रक्रिया, छात्रों को अप्रत्यक्ष रूप में, परिश्रम करने और समुचित रीति से अधिगम करने की दिशा में प्रेरित करती है।
- शिक्षण प्रक्रिया के आधार पर प्रदत्त ज्ञान की सीमा भी इस प्रक्रिया द्वारा ज्ञात की जा सकती है।
- छात्रों को शैक्षिक और व्यावसायिक दृष्टि से निर्देशन प्रदान करने में भी यह प्रक्रिया सहायक है।
- इसके माध्यम से शिक्षण के विभिन्न अंगों के दोषों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है।
- मूल्यांकन प्रक्रिया अधिगम की दिशा में छात्रों को प्रेरित करने में भी सहायक है।
- छात्रों के व्यवहार सम्बन्धी विभिन्न परिवर्तनों अथवा उनके विकास की जाँच, मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा ही सम्भव है।
मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान (Steps of the Process of Evaluation)
मूल्यांकन की प्रक्रिया के तीन महत्वपूर्ण आधार हैं— उद्देश्य, अधिगम सम्बन्धी अनुभव और मूल्यांकन के उपकरण। ये तीनों आधार, एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्द्ध रखते हैं। इनमें से किसी भी एक आधार के अभाव में, मूल्यांकन की प्रक्रिया का सम्पन्न हो पाना पूर्ण रूप से सम्भव नहीं है। इन आधारों को ध्यान में रखते हुए ही मूल्यांकन की प्रक्रिया को तीन सोपानों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है। ये तीन सोपान हैं—
- शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण और परिभाषीकरण,
- व्यवहार परिवर्तन के आधार पर मूल्यांकन करना,
- शिक्षण क्रियाओं के माध्यम से अधिगम के उपयुक्त अनुभव उत्पन्न करना ।
1. शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण और परिभाषीकरण- इस सोपान के अन्तर्गत, शिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। ज्ञान, बोध, कौशल तथा प्रयोग आदि से सम्बन्धित इन उद्देश्यों के आधार पर ही बालकों के व्यवहार में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है। उद्देश्यों की उपयुक्त जानकारी का, बालकों में होने वाले व्यवहार परिवर्तनों से गहरा सम्बन्ध होता है। इनके आधार पर ही यह ज्ञात होता है कि किन-किन व्यवहार परिवर्तनों के आधार पर इन उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए उद्देश्यों का स्पष्ट ज्ञान तथा उनका समुचित निर्धारण मूल्यांकन प्रक्रिया का सर्वप्रथम सोपान है। इस सोपान के अन्तर्गत उद्देश्यों का परिभाषीकरण करना भी आवश्यक परिभाषीकरण के अन्तर्गत, यह स्पष्ट होता है कि किस उद्देश्य के सन्दर्भ में बालक में कौन-से व्यवहार परिवर्तन होंगे।
2. व्यवहार परिवर्तन के आधार पर मूल्यांकन करना- शिक्षण प्रक्रिया के द्वारा जो अधिगम अनुभव प्रदान किए जाते हैं उन्हीं अधिगम अनुभव से ही विभिन्न प्रकार के व्यवहार परिवर्तनों में सहायता प्राप्त होती है। सुप्रसिद्ध शिक्षाविद ब्लृप ने प्रत्येक उद्देश्य के सन्दर्भ में इन व्यवहार परिवर्तनों का निर्धारण किया है। ज्ञानात्मक पक्ष के लिये ब्लूम ने छः उद्देश्यों का निर्धारण किया है। ये छः उद्देश्य हैं-ज्ञान, बोध, विश्लेषण, प्रयोग, संश्लेषण तथा मूल्यांकन। इनमें से प्रत्येक उद्देश्य के लिये कुछ व्यवहार परिवर्तन भी सुनिश्चित किये गये हैं, जैसे-ज्ञान उद्देश्य से सम्बन्धित व्यवहार परिवर्तन है-नवीन नियमों, तथ्यों, सिद्धान्तों तथा सूचनाओं इत्यादि को याद करना तथा परीक्षा के समय इन्हें यथावत अभिव्यक्त करना। इसी प्रकार भावात्मक तथा क्रियात्मक स्तर से सम्बन्धित उद्देश्यों तथा इन उद्देश्यों से सम्बन्धित व्यवहार परिवर्तनों का निर्धारण भी ब्लूम ने ही किया। अतः इन व्यवहार परिवर्तनों के निर्धारण एवं जानकारी के अभाव में यह मालूम करना असम्भव है कि किस है उद्देश्य की प्राप्ति, किस सीमा तक हो चुकी है। मूल्यांकन प्रक्रिया में भी किसी उद्देश्य की प्राप्ति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए, व्यवहार परिवर्तनों को ही आधार बनाया जाता है।
3. शिक्षण क्रियाओं के माध्यम से अधिगम के उपयुक्त अनुभव उत्पन्न करना- निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति की दृष्टि से अधिगम अनुभवों का विशेष महत्व होता है। इन अनुभवों के आधार पर ही छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन किये जाते हैं। शिक्षण के अभिन्न अंग अथवा शिक्षण प्रक्रिया सम्बन्धी क्रियाकलापों द्वारा ही इन अधिगम अनुभवों को प्रदान किया जाता है। व्यवहार परिवर्तनों के लिये आवश्यक परिवर्तनों का निर्माण भी इनके द्वारा ही सम्भव हो पाता है। वस्तुतः उद्देश्यों की प्राप्ति की दृष्टि से अधिगम अनुभव ही सबसे अधिक सहायक होते हैं। किसी एक उद्देश्य की प्राप्ति हेतु, जिस प्रकार, अनेक व्यवहार परिवर्तन आवश्यक होते हैं, उसी प्रकार एक ही उद्देश्य की प्राप्ति हेतु कई अधिगम अनुभवों को प्रदान करना आवश्यक होता है। अधिगम अनुभवों के सम्प्रेषण से पहले यह अत्यन्त आवश्यक होता है कि अधिगम अनुभवों की व्यवस्था, व्यक्तिगत विभिन्नता के सिद्धान्त के आधार पर ही की जानी चाहिए। अधिगम से सम्बन्धित परिस्थितियों के सृजन और अधिगम अनुभवों के सम्प्रेषण की प्रक्रिया के अनन्त, शिक्षक की भूमिका, सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। मूल्यांकन अधिगम अनुभवों के आधार पर ही सम्भव होता है, इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अधिगम अनुभवों की व्यवस्था और उनका सम्प्रेषण जितने सही ढंग से किया जाएगा, उतना ही मूल्यांकन भी विश्वसनीय तथा वस्तुनिष्ठ सिद्ध होगा।
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