Contents
मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
गुप्त जी के काव्य की महत्ता इस बात से अधिक मुखरित होती है कि आलोचकीय अनिच्छा के बावजूद भी वे आधुनिक काल के एक बड़े कवि ठहरते हैं। उनकी लोकप्रियता के पीछे कई कारण हैं, जैसे-सरल भाषा, पौराणिक कथानकों का चुनाव, ग्रहस्थ जीवन की महिमा का आख्यान, व्यापक हिन्दू नैतिक मूल्यों का समर्थन और राष्ट्रीय भाव-धारा की अभिव्यक्ति आदि। कविता और निजी जीवन दोनों में उन्होंने अंग्रेजी या संस्कृत दोनों का न तो आतंक माना और न ही अवज्ञा की। साधारण बोलचाल की खड़ीबोली, के जातीय मात्रिक छन्द, ग्रहस्थ जीवन में प्रचलित पौराणिक आख्यान और कुल मिलाकर अपनी साधारणता में विनम्र आत्म विश्वास ये ही वे बुनियादी तत्व हैं जिनसे मैथिलीशरण गुप्त का रचनात्मक व्यक्तित्व निर्मित हुआ है। गुप्त जी की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताएँ निम्न हैं-
(क) भावपक्षीय विशेषताएँ-
(1) रस योजना-मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपने काव्य में विविध रूपों की छटा बिखेरी है। ‘यशोधरा’, ‘शकुन्तला’ आदि उनकी श्रृगांरपरक उत्कृष्ट रचनाएँ, ‘साकेत’ में श्रृंगार के दोनों पक्षों संयोग एवं वियोग का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। उर्मिला प्रिय के वियोग में आरती के समान जलती रहती है-
मानस मन्दिर में सती, पति की प्रतिमा थाप
जलती-सी उस विरह में, बनी आरती आप।
गुप्त जी के काव्य में अनेक स्थल ऐसे हैं, जहाँ पात्र अपने गंभीर स्वभाव को भूलकर परिहासमय बन गये हैं। गुप्त जी करुणा की धारा प्रवाहित करने में पूर्ण सफल हुए हैं। उनके प्रबन्ध काव्य ‘यशोधरा’ और ‘साकेत’ में करुण रस प्राधान्य है। ‘यशोधरा’ में यशोधरा कहती है-
यह प्रभात या रात है घोर तिमिर के साथ,
नात कहाँ हो हाय तुम? में अदृष्ट के हाथ!
इसी प्रकार ‘भारत-भारती’ तथा ‘सिद्धराज’ में वीर रस का दर्शन होता है। अभिमन्यु के वध का समाचार सुनकर अर्जुन क्रोध के वशीभूत हो जाते हैं-
श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे,
सब शोक अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि गुप्त जी ने अपने काव्य में प्रायः सभी रसों का यथास्थान समावेश किया है।
( 2 ) मार्मिक एवं कोमल प्रसंगों की उद्भावना- गुप्त जी ने कविता-कामिनी को प्रभावमयी बनाने के लिए अपने काव्य में ऐसे स्थलों का चित्रण किया है, जो पाठक के मनोभाव को झंकृत कर देते हैं। ‘साकेत’ में गुप्त जी ने राजसभा में कैकेयी द्वारा आत्म-प्रताड़ना “में की उद्भावना की है। कैकेयी स्वयं कहती है-
युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी,
रघुकुल में भी थी एक अभागिन नारी।
( 3 ) नारी की दशा का चित्रण – गुप्त जी भारतीय नारी को समाज में उच्च वर्ग द्वारा हेय व विलासिता की वस्तु समझने पर गुप्त जी के नारी के प्रति विचार इस प्रकार हैं ‘यशोधरा’ के शब्दों में-
चेरी भी वह आज भी कहाँ, कल थी जो रानी,
दानी प्रभु ने दिया उसे क्यों यह मनमानी?
( 4 ) प्रकृति-चित्रण – गुप्त जी द्वारा प्रकृति के लगभग सभी रूपों का दर्शन काव्य में कराया गया है। गुप्त जी ने प्रकृति के आलम्बन और उद्दीपन दोनों रूपों का चित्रण किया है। प्रकृति का स्वतन्त्र चित्रण भी उनसे खूब पड़ा है। पंचवटी में प्रकृति का स्वतन्त्र चित्रण दर्शनीय है-
चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल-थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बर तल में।।
गुप्त जी ने जहाँ एक ओर प्रकृति का संयोग श्रृंगारिक रुप प्रस्तुत किया है वहीं उन्होंने प्रकृति में विरहदशा का भी चित्रण किया है।
(ख) कलापक्षीय विशेषताएँ-
( 1 ) भाषा- गुप्त जी ने खड़ीबोली के सहज रुप को अपने काव्य का साधन बनाया। उसकी भाषा सरल, सुसंगठित, प्रसाद तथा ओज-गुण से युक्त है। गुप्त जी ने अपने काव्य में संस्कृत, अँग्रेजी, उर्दू तथा तत्कालीन प्रचलित विदेशी शब्दों का भी प्रयोग किया है।
( 2 ) शैली- गुप्त जी ने विविध शैलियों में काव्य रचना की है। ‘साकेत’, जयद्रथ वध’, ‘सिद्धराज’ में प्रबन्धात्मक शैली प्रयुक्त की है। ‘हिन्दू’ और ‘गुरुकुल’ उनके अलंकृत उपदेशात्मक शैली का उदाहरण हैं। ‘पंचवटी’, भारत-भारती’ में विवरणात्मक शैली का ‘यशोधरा’, ‘कुणाल गीत, ‘साकेत’ आदि काव्यों में नीति शैली का प्रयोग किया गया है।
( 3 ) छन्द – गुप्त जी का अधिकतर काव्य छन्द है। उन्हें वर्णिक और मात्रिक दोनों प्रकार के छन्द प्रिय है। वर्णिक छन्दों में उन्होंने मालिनी, मन्दक्रान्ता, द्रुतविलम्बित, वसन्ततिलका छन्द तथा मात्रिक छन्दों में दोहा, सवैया, आर्या, त्राटक मनहरज, गीतिका आदि छन्दों से अपनी कविता कामिनी का मधुरिम श्रृंगार किया है।
( 4 ) अलंकार- गुप्त जी ने अपने काव्य में प्रायः सभी अलंकारों का प्रयोग किया है। किन्तु उन्हें सादृश्य मूलक अलंकार अत्यन्त प्रिय है। यमक, श्लेष और रुपक अलंकारों के प्रयोग में उनके पाण्डित्य का सर्वाधिक प्रदर्शन हुआ है।
IMPORTANT LINK
- सूर के पुष्टिमार्ग का सम्यक् विश्लेषण कीजिए।
- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- सूर की काव्य कला की विशेषताएँ
- कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए।
- सूफी काव्य परम्परा में जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- ‘जायसी का वियोग वर्णन हिन्दी साहित्य की एक अनुपम निधि है’
- जायसी की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- जायसी के पद्मावत में ‘नख शिख’
- तुलसी के प्रबन्ध कौशल | Tulsi’s Management Skills in Hindi
- तुलसी की भक्ति भावना का सप्रमाण परिचय
- तुलसी का काव्य लोकसमन्वय की विराट चेष्टा का प्रतिफलन है।
- तुलसी की काव्य कला की विशेषताएँ
- टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त | Tagore’s theory of education in Hindi
- जन शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, स्त्री शिक्षा व धार्मिक शिक्षा पर टैगोर के विचार
- शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या तत्त्व उनके अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य
- गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन | Evaluation of Gandhiji’s Philosophy of Education in Hindi
- गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के गुण-दोष
- स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
- गाँधीजी के शैक्षिक विचार | Gandhiji’s Educational Thoughts in Hindi
- विवेकानन्द का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान | Contribution of Vivekananda in the field of education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- घनानन्द की आध्यात्मिक चेतना | Ghanananda Spiritual Consciousness in Hindi
- बिहारी ने शृंगार, वैराग्य एवं नीति का वर्णन एक साथ क्यों किया है?
- घनानन्द के संयोग वर्णन का सारगर्भित | The essence of Ghananand coincidence description in Hindi
- बिहारी सतसई की लोकप्रियता | Popularity of Bihari Satsai in Hindi
- बिहारी की नायिकाओं के रूपसौन्दर्य | The beauty of Bihari heroines in Hindi
- बिहारी के दोहे गम्भीर घाव क्यों और कहाँ करते हैं? क्या आप प्रभावित होते हैं?
- बिहारी की बहुज्ञता पर प्रकाश डालिए।
Disclaimer