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मोहन राकेश की डायरी की समीक्षा | mohan rakesh diary review in Hindi

मोहन राकेश की डायरी की समीक्षा | mohan rakesh diary review in Hindi
मोहन राकेश की डायरी की समीक्षा | mohan rakesh diary review in Hindi
मोहन राकेश की डायरी की समीक्षा कीजिए।

मोहन राकेश की डायरी- मोहन राकेश बहुत पहले से डायरी लिखते थे किन्तु उनके डायरी लेखन में निरन्तरता न रह सकी। कारण कई थे। डायरी की भूमिका में उन्होंने स्वयं लिखा है- “मैं जिन्दगी भर डायरी लिखने की आदत नहीं डाल सका। मैंने कई बार कोशिश की, कई दिन लगातार कई-कई पन्ने लिखे भी, परन्तु फिर वह डायरी वहीं की वहीं छूट गयी। कभी साल छह महीने बाद मैंने फिर आगे चलने की चेष्टा की तो फिर वहीं अंजाम हुआ।” राकेश जी की यह डायरी उनकी मृत्यु के बारह वर्षों के बाद सन् 1985 में छपी। इसके प्रकाशन में अनीता राकेश तथा मित्रों का विशेष योगदान रहा है। इस डायरी का प्रारम्भ 1948 से हुआ है और है अन्तिम टिप्पणी 19.5.68 की है। इसमें उन्होंने अपनी दैनिक दिनचर्या के साथ-साथ अपने आस-पास के व्यक्तियों एवं घटनाओं का वर्णन किया हैं। उनकी डायरी पर टिप्पणी करती हुई प्रतिभा अग्रवाल लिखती हैं- “डायरी, लिखने वाले का भी अंतरंग परिचय देती है। ईमानदारी से लिखी गई डायरी आईने की तरह होती है जिसमें व्यक्ति का सब कुछ प्रतिबिम्बित रहता है, कुछ भी छिपा नहीं रहता। राकेश का अंतरंग भी डायरी में उभरा है।…. डायरी पढ़कर यह नहीं लगता है कि यह किसी महत्वपूर्ण साहित्यकार की डायरी है। ये पृष्ठ किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की डायरी के हो सकते थे। इनमें मुख्यतः व्यक्तिगत सम्बन्धों, विवाहों, विच्छेदों एवं प्रेम व्यापारों की चर्चा प्राप्त होती है। इससे गहरी निराशा होती है। इस डायरी में राकेश की लेखन प्रक्रिया, उनकी लिखने की आदतें तथा उनके सृजनात्मक विकास आदि का परिचय नहीं के बराबर प्राप्त होता है।”

प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहीत अंश ‘नहीं के बराबर प्राप्त’ में कुछ प्राप्त करने का प्रयास है। इस अंश में उनके पश्चिम प्रान्त के प्रवास के कुछ दिनों एवं पलों को संजोया गया है। संकलित अंश में राकेश जी के मुम्बई, कन्नानोर, भोपाल, कन्या कुमारी और आगरा प्रवास की प्रतिक्रियाएँ है। मुम्बई के 1948 के अंशों के साथ कन्नानोर में 8 जनवरी 1953 से 21 फरवरी 1953 तक के अंश हैं। इन अंशों में मोहन राकेश के अन्त में व्याप्त छटपटाहट, प्रकृति से तादात्म्य, कुछ नया तलाशने की उत्सुकता, मिलनसार और अनमनस्कता का स्वभाव, समुद्र तट के सौन्दर्य के प्रति आकर्षण, चिन्तन और मनन की प्रवृत्ति तथा आर्थिक अभाव परिलक्षित होता है। साथ ही राकेश जी के लेखन के लिए उपजीव्य वातावरण की भी सृष्टि होती है। कमलेश्वर ने ‘मोहन राकेश की डायरी’ में भूमिका स्वरूप, डायरियाँ- ‘एक लेखक का अपना रेगिस्तान’ शीर्षक से जो लेख लिखा है, उसमें वह राकेश की रचनाओं पर चर्चा करते समय लिखते हैं- “ राकेश लगातार सम्बन्धों के विविध आयामों को अपनी रचनाओं में खोजता और विश्लेषित करता रहा है।” लेकिन उसकी डायरियाँ अपने साथ अपने सम्बन्धों की खोज का जरिया रही हैं। राकेश के सम्बन्ध खुद राकेश के साहित्यिक ‘इमेज’ के साथ बहुत सन्तुलित थे।

राकेश के सम्बन्ध खुद राकेश के साथ बहुत हलचल भरे थे……. जिनको वह समेट नहीं पाता था। उसके यह सूत्र बिखरे ही रह जाते थे और कभी-कभी तो बहुत उलझ भी जाते थे पर अपने मन की भाषा को वह बहुत गहराई से पढ़ता रहता था और अपने बारे में वह बहुत साफ निर्णय लेता था…. और मुझे उम्मीद है कि उसकी डायरियाँ में रहस्यों, दुराव, कटुता, द्वेष और भण्डा फोड़क प्रवृत्तियों की बहुलता नहीं बल्कि उनमें समय, सम्बन्धों और व्यक्तिगत प्रश्नों के मनमाफिक उत्तर पाने की आकांक्षाएँ ही शब्दबद्ध की गयी हैं।”

प्रस्तुत अंशों में कमलेश्वर के अनुभव को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। मुम्बईः 1948 उपशीर्षक में जुगनू के माध्यम जूझ और खुद को खोजते प्रतीत होते हैं। मुम्बई में जुहू की उमड़ती नागिन जैसी लहरें स्वयं के करीब आते और दूर जाते भावों को अभिव्यक्त करती हैं। कन्नानोर का वातावरण घर से दूर होने का आभास कराता है किन्तु नवीनता की खोज में प्रयत्नरत मन राग उत्पन्न करता है। मुस्कराहट, जिसमें सबको अपना बना लेने की शक्ति होती है, उसमें व्यापारिकता के कारण आये विकारों को भी वह अनुभव करते हैं। भोपाल की शाम इतिहास का स्मरण करती है तो मुम्बई का विक्टोरिया टर्मिनल का इक्वेरियम तथा पूना का थर्ड क्लास वेटिंग रूम उन्हें मनुष्य के विभिन्न चेहरे एवं रूप-रंगों से परिचित कराता है। कन्याकुमारी का समुद्रतट उनके हृदय को एक कुवॉरी कन्या की भाँति आप्लावित करता है। वहीं आगरा की व्यावसायिकता उनको झकझोर देती है।

वहीं कन्याकुमारी में 1 फरवरी 1953 की रात्रि उन्हें अपनी आर्थिक सीमाओं का बोध कराती है। तात्पर्य यह कि डायरी का संकलित अंश मोहन राकेश के अन्दर के साहित्यकार, मनुष्य से परिचित कराने का सफल प्रयास करता है।

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Anjali Yadav

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