पाठ योजना की मौरिसन या इकाई उपागम का वर्णन करो।
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मौरिसन या इकाई उपागम (Morrison’s or Unit Approach)
इकाई उपागम के प्रवर्तक प्रो० एच० सी० मौरिसन ने सन् 1929 ई० में अपनी पुस्तक ‘सैकण्डरी स्कूलों में शिक्षण-अभ्यास’ (The Practice of Teaching in Secondary Schools) में ‘इकाई-पद्धति’ (Unit Method) की विस्तार से व्याख्या करते हुए बताया है कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इकाई पद्धति एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है। यह पद्धति विद्यार्थी-केन्द्रित है। विद्यार्थियों तथा अध्यापकों के सहयोग से इस पद्धति का निर्माण किया जाता है। इस उपागम का प्रयोग करते समय विद्यार्थियों की रुचियों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है। साथ ही इस उपागम में विद्यार्थियों के सामने अधिगम के उद्देश्यों को भी स्पष्ट कर दिया जाता है।
इकाई उपागम गैस्टाल्ट मनोविज्ञान (Gestalt Psychology) पर आधारित है। इस मनोविज्ञान के अनुसार हमारा ध्यान सबसे पहले पूर्ण की ओर जाता है, अंश की ओर नहीं जब हम किसी वस्तु को देखते हैं तो हमारा ध्यान सबसे पहले उसके सम्पूर्ण आकार पर जाता है तथा बाद में उसके विभिन्न अंगों पर।
इकाई उपागम से तात्पर्य है कि किसी विषय-वस्तु को इकाइयों में बाँटना तथा इन इकाइयों का शिक्षण करके विद्यार्थियों को ज्ञान प्राप्त करवाना। शिक्षक-अधिगम प्रक्रिया द्वारा विद्यार्थियों को विषय-वस्तु में दक्षता प्रदान करवाना ही इस उपागम का मुख्य उद्देश्य होता है। इस उपागम में प्रत्येक इकाई पहले पढ़ाई गई इकाई पर आधारित होती है।
इस उपागम में मौरिसन ने विद्यार्थियों के मन में अपने अधिगम उद्देश्यों की स्पष्टता पर अत्यधिक बल दिया है। हरबार्ट और मौरिसन की पाठ-योजनाओं में प्रमुख अन्तर यही है कि हरबार्ट विषय-वस्तु के प्रस्तुतीकरण पर अधिक बल देता है तथा मौरिसन विषय-वस्तु की आत्मीकरण (Assimilation) क्रिया पर।
मौरिसन या इकाई उपागम के पद (Steps of Morrison’s or Unit Approach)
शिक्षक प्रशिक्षण के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली पाठ-योजना के मौरिसन महोदय ने निम्नलिखित पद निर्धारित किये हैं-
- अन्वेषण (Exploration),
- प्रस्तुतीकरण (Presentation),
- आत्मीकरण या परिपाक (Assimilation),
- संगठन (Organization),
- वर्णन या आवृत्ति या अभिव्यक्तिकरण (Recitation) |
1. अन्वेषण (Exploration) – जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि पता लगाना। इस प्रकार अन्वेषण के दौरान अध्यापक विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान का पता लगाते हैं, क्योंकि पूर्व ज्ञान के बिना नये ज्ञान को संगठित करना अत्यधिक जटिल होता है। इस प्रक्रिया में निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है-
- (a) पाठ की इकाई से सम्बन्धित पूर्व ज्ञान का अन्वेषण।
- (b) विद्यार्थियों की रुचियों व अभिरुचियों का अन्वेषण।
- (c) प्रत्येक इकाई को प्रस्तुत करने के लिये प्रयुक्त विधियों और प्रविधियों का अन्वेषण ।
2. प्रस्तुतीकरण (Presentation)- इकाई उपागम के इस पद के अन्तर्गत पाठ्य-सामग्री की विवेचना की जाती है। शिक्षक सम्पूर्ण इकाई के स्वरूप को विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करता है। इस पद में अध्यापक प्रस्तुत इकाई के उद्देश्यों से भी अपने विद्यार्थियों को अवगत या परिचित कराता है। मौरिसन या इकाई उपागम का यह पद हरबार्ट उपागम के प्रस्तुतीकरण से मिलता-जुलता है। इस पद में शिक्षक विद्यार्थियों से अधिक सक्रिय रहता है। इस पद में अध्यापक द्वारा अगली इकाई तब तक प्रस्तुत नहीं की जाती, जब तक कि कक्षा के सभी विद्यार्थियों को पहली इकाई की सामग्री पूरी तरह से समझ नहीं आ जाती। इस प्रकार इस पद में अध्यापक कक्षा की सभी क्रियाओं पर हावी रहता है।
3. आत्मीकरण या परिपाक (Assimilation)- इस पद में प्रस्तुतीकरण के दौरान अर्जित किये गये ज्ञान को स्थायित्व प्रदान किया जाता है। इस पद में विद्यार्थी विषय-सामग्री का गहराई से अध्ययन करते हैं तथा उसे समझने का प्रयास करते हैं। इसके लिये वे पुस्तकालयों तथा प्रयोगशालाओं का प्रयोग करते हैं। इस पद में विद्यार्थी अपनी शंकाओं का समाधान करते हैं, विषय-सामग्री का पुनःस्मरण करते हैं तथा तर्क-वितर्क प्रविधियों का प्रयोग करके अपने अर्जित किये गये ज्ञान को स्थायीत्व प्रदान करते मौरिसन या इकाई उपागम में आत्मीकरण को अधिक प्रधानता दी जाती है, जबकि हरबार्ट उपागम में प्रस्तुतीकरण को ।
4. संगठन (Organisation)- इस पद के अन्तर्गत विद्यार्थी अर्जित किए गए ज्ञान को लिखित रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। ऐसा करने से विद्यार्थियों को यह पता चल जाता है कि वह अपने ज्ञान को कहाँ तक संगठित करके दुबारा प्रस्तुत कर सकता है। इस प्रकार विद्यार्थी विषय-सामग्री पर इस पद के माध्यम से अधिकार कर लेता है। मौरिसन ने इसे संगठन का नाम दिया है। इस पद की उपयोगिता विस्तृत विषय के लिये ही अधिक हो सकती है।
5. वर्णन या आवृत्ति या अभिव्यक्तिकरण (Recitation) – इस पद के अन्तर्गत विद्यार्थी पढ़े गए पाठ को अभिव्यक्त करते हैं। यह क्रिया सारी कक्षा के सम्मुख मौखिक रूप से भाषण की शक्ल (Shape) में की जा सकती है। इस पद के द्वारा विद्यार्थी में स्वयं को अभिव्यक्त करने का आत्मविश्वास बढ़ जाता है। वह अभिव्यक्ति केवल मौखिक ही नहीं वरन् लिखित रूप में भी हो सकती है।
इकाई उपागम के सिद्धान्त (Principle of Unit Approach)
इकाई उपागम के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं—
1. बालक की प्रधानता का सिद्धान्त (Principle of Child Supremacy) – इस उपागम में बालक को अधिक महत्त्व दिया जाता है। बालकों का हित प्रथम स्थान पर होता है। इस उपागम में बालकों की क्रियाओं के लिये अधिक अवसर तथा बालकों की क्रियाओं को विशेष स्थान दिया जाता है।
2. अभिव्यक्तिकरण का सिद्धान्त (Principle of Recitation) – इस उपागम में विद्यार्थी की अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण होती है। नया ज्ञान प्रदान के लिये विद्यार्थी की अभिव्यक्ति का विकास करने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार विद्यार्थी ज्ञान को आत्मीकरण कर लेते हैं तथा उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है।
3. इकाई का सिद्धान्त (Principle of Unit) – इस उपागम में अंश की अपेक्षा सम्पूर्ण को महत्त्व दिया जाता है। इसमें पूर्ण पाठ्य सामग्री को इकाइयों में बाँट कर कर प्रत्येक इकाई का शिक्षण किया जाता है।
4. रुचि एवं उद्देश्य का सिद्धान्त (Principle of Interest and Purpose) – इस उपागम में विद्यार्थियों की रुचियों एवं प्रत्येक इकाई के उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। प्रत्येक इकाई के उद्देश्य भी भिन्न होते हैं।
5. संगठन का सिद्धान्त (Principle of Organisation) – पाठ्य सामग्री का उचित संगठन ज्ञान प्रदान करने के लिये अति आवश्यक है। यदि पाठ्य सामग्री को उचित ढंग से संगठित न किया जाये तो उसका कक्षा-कक्ष में प्रस्तुतीकरण प्रभावशाली नहीं होगा।
6. गतिशीलता का सिद्धान्त (Principle of Dynamism)- इस सिद्धान्त में सभी इकाइयाँ गतिशील होनी चाहियें तथा इनका प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जाना चाहिये। इस सिद्धान्त के अनुसार इन इकाइयों का क्षेत्र भी विस्तृत होना चाहिये।
इकाई उपागम के गुण (Merits of Unit Approach)
- यह गेस्टाल्ट (Gestalt) मनोविज्ञान पर आधारित है।
- इसमें स्पष्ट उद्देश्यों के कारण प्रभावशाली अधिगम सम्भव है।
- इससे स्वाध्याय (Self-Study) की आदत पड़ती है।
- शिक्षण सामग्री का उचित प्रयोग हो सकता है।
- यह विद्यार्थी प्रधान उपागम है।
- इसमें सुगम आत्मसात (Assimilation) होता है।
- इस उपागम द्वारा सामाजिक गुणों का विकास सम्भव है।
- इस उपागम में स्वस्थ अन्तःक्रिया विकसित होती है।
- इकाइयों के कारण यह सरल और रोचक उपागम है।
- इसमें प्रत्येक प्रकार की अभिव्यक्ति की व्यवस्था है।
इकाई उपागम के दोष (Demerits of Unit Approach)
- इसके पदों (Steps) में स्पष्टता की कमी होती है।
- इस उपागम में समय का दुरुपयोग होता है।
- इसमें प्रत्येक इकाई को सार्थक बनाना कठिन है।
- इस उपागम का कार्य क्षेत्र सीमित होता है।
- इस उपागम द्वारा असन्तुलित ज्ञान दिया जाता है।
- इस उपागम द्वारा ज्ञान बहुत धीमी गति से दिया जाता है।
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