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योजना विधि (Project Method)
योजना विधि का आधार प्रयोजनवाद (Pragmatism) है। इस विधि के जन्मदाता सर विलियम किलपैट्रिक (Sir William Kilpatrick) हैं। इनके अनुसार छात्रों के सामने ऐसे अवसर लाये जाने चाहियें, जिनमें वे अपने मित्रों की मदद से यह निर्णय कर सकें कि उन्हें क्या व कहाँ तक पढ़ना है। इस दौरान उन्हें सफलता की मात्रा भी ज्ञात रहनी चाहिए।
किलपैट्रिक महोदय ने योजना (Project) की व्याख्या इस प्रकार से की है-
“योजना यह उद्देश्यपूर्ण कार्य है, जिसे लगन के साथ सामाजिक वातावरण में पूरा किया जाता है।”
स्टीवेन्सन महोदय के अनुसार- “योजना एक समस्यामूलक कार्य है, जिसे स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है।
वेलार्ड महोदय के अनुसार- योजना यथार्थ जीवन का ही एक भाग है, जो विद्यालय में प्रदान किया जाता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर योजना शब्द का अर्थ इस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है—”किसी समस्या का स्वाभाविक परिस्थितियों या सामाजिक वातावरण में रहकर (विद्यालय) ही हल खोज निकालने के लिये स्वीकृत प्रयास है।”
विधि की कार्य प्रणाली (Working Process of Method)
योजना विधि से कार्य करने में निम्नलिखित सोपानों का अनुकरण करना पड़ता है-
- परिस्थिति निर्माण करना (Provising a Situation),
- योजना का चुनाव (Selection of the Project),
- योजना का कार्यक्रम बनाना (Planning of the Project),
- योजना का कार्यान्वयन करना (Execution of the Project),
- कार्य का मूल्यांकन (Evaluation of the Project),
- समस्त कार्यों का रिकार्ड तैयार करना (Recording of the Project) |
परिस्थिति का निर्माण – कक्षा में ऐसी परिस्थिति का निर्माण किया जाता है, जिसमें कक्षा समस्या का सामना करे। यह परिस्थिति शिक्षक निर्माण कर सकता है या विद्यार्थी स्वयं। इस तरह से विद्यार्थी अपने लिए किसी योजना को हाथ में लेते हैं।
योजना का चुनाव — छात्रों अथवा शिक्षक की ओर से योजना के प्रस्ताव आते हैं। इनके चयन में छात्रों को स्वतन्त्रता रहती है। फिर कक्षा में इस विषय को लेकर चर्चा होती है कि किस योजना का कार्य किया जाये। शिक्षक के निर्देशन में कक्षा किसी योजना को चुनती है एवं उसके उद्देश्य को स्पष्ट करती है।
योजना का कार्यक्रम बनाना – योजना का चुनाव हो जाने के बाद यह तय किया जाता है कि इसको किस प्रकार पूरा किया जायेगा। अतः इसके लिए कार्यक्रम बनाया जाता है। इस कार्यक्रम में निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार किए जाते हैं-
(क) योजना में आने वाली कठिनाइयाँ, (ख) साधनों की उपलब्धि, (ग) समय तथा कुछ अनुमानित घन का व्यय, (घ) विविध कार्य, (ङ) कार्यों का विभाजन, (छ) कार्य-सीमा इत्यादि ।
इस प्रकार उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर समस्या (योजना) के समाधान के लिए कार्यक्रम बनाया जाता है।
योजना के कार्यक्रम का कार्यान्वयन – जब योजना के लिए कार्यक्रम बना लिया जाता है, तब अगले चरण में उसे कार्यान्वित करना होता है। छात्रों की रुचि व क्षमतानुसार उन्हें कार्य बाँट दिया जाता है ताकि वे पूरी योग्यता व सामर्थ्य के अनुसार अपना-अपना भाग पूरा कर लें। अपने कार्य को पूरा करते समय वे कई बातें भी सीखते जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर अपने शिक्षक की सहायता भी प्राप्त करते रहते हैं।
कार्य का मूल्यांकन करना- पूरे कार्यक्रम के बीच में कभी-कभी किए जा चुके कार्यों का मूल्यांकन भी कर लिया जाता है, ताकि आगे बढ़ने में मदद मिलती रहे। इसके लिए कुछ प्रश्नों द्वारा या विचारगोष्ठी द्वारा अपनी सफलता का मूल्यांकन करते हैं। जहाँ कहीं अशुद्धि मिलती है, इस मूल्यांकन के द्वारा संशोधन कर लिया जाता है। योजना के कार्यक्रम की समाप्ति पर भी सफलता आँकनी पड़ती है।
समस्त कार्यों की रिपोर्ट तैयार करना—छात्र योजना के चुनाव से लेकर अन्त तक किए गए समस्त कार्यों की रिपोर्ट तैयार करते हैं। कार्यक्रम पूरा करते समय वे अपने स्वयं के अनुभवों को भी लिखते हैं।
योजना विधि के गुण (Merits of Project Method)
इस विधि के निम्नलिखित गुण हैं-
1. इस विधि में छात्रों को स्वतन्त्रता का वातावरण मिलता है, क्योंकि छात्र स्वतन्त्र होकर अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करते हैं।
2. पूरी योजना काल में छात्र सक्रिय रहते हैं।
3. योजना द्वारा बालक को प्राथमिकता मिलती रहती है। इससे बालकों की रुचि, मनोवृत्ति, आदर्ते व स्वभाव की जानकारी मिलती रहती है।
4. बालक में प्रयोग करने की क्षमता का विकास होता है।
5. इस विधि से प्राप्त ज्ञान वास्तविक तथा स्थायी होता है।
6. बालक करके सीखता है।
7. छात्रों को प्रजातांत्रिक वातावरण में बढ़ने का अवसर प्राप्त होता है। इस प्रकार ‘रहने द्वारा सीखने’ का अवसर मिलता है।
8. वास्तविक जीवन में कठिनाइयाँ सुलझाने की नींव यहाँ पड़ती है।
9. बालकों में सामाजिक गुणों का विकास होता है
10. हाथ से कार्य करने की कुशलता का विकास होता है।
11. गणित का व्यावहारिक रूप से प्रयोग करना सीखते हैं।
12. योजना की पूर्ति में मानसिक कार्य के साथ शारीरिक कार्य का भी अवसर प्राप्त होता है।
13. छात्र अनुशासन में रहते हैं।
14. योजना की पूर्ति के लिए वे एकाग्रचित होकर काम करते हैं।
15. छात्रों में आत्मनिर्भरता विकसित होती है।
योजना विधि के दोष (Demerits of Project Method)
इस विधि के प्रमुख दोष एवं सीमाएँ अधोलिखित हैं-
1. हमारे विद्यालय अभी इतने सम्पन्न नहीं हैं कि योजना विधि का बहुलता से प्रयोग कर सकें, क्योंकि योजना कोई भी हो, व्ययपूर्ण होती है।
2. योजना पूरी होने में समय लगता है। अतः पाठ्यक्रम इस विधि से पूरा नहीं किया जा सकता।
3. इस विधि में अध्यापक का कार्य अधिक हो जाता है, जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं। अतः यदि छात्र अधिक हुए और भी कठिन हो जाता है। सैद्धान्तिक व व्यावहारिक, दोनों ही दृष्टि से आवश्यक नहीं कि शिक्षक कुशल व प्रवीण हो ।
4. कई बातों में छात्र कौशलों का विकास सही ढंग से नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उचित वातावरण का यहाँ अभाव रहता है।
5. इस विधि के पालन करने से क्रमबद्ध रूप से ज्ञान नहीं दिया जा सकता, क्योंकि योजना को सफल बनाना ही प्रमुख उद्देश्य बन जाता है। शिक्षण अव्यवस्थित ढंग से होता रहता है। इस प्रकार ज्ञान अपूर्ण तथा अक्रमबद्ध होता है। यह बालकों के लिए खतरनाक है।
6. योजना विधि को प्रयोग में लेने में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी हैं, जैसे—विस्तृत पाठ्यक्रम, सीमित आर्थिक साधन, पाठ्य पुस्तकों का अभाव, योजना विधि से कार्य कराने में प्रवीण अध्यापकों की कमी आदि। इनके कारण यह विधि विद्यालय में प्रचलित नहीं हो सकती है।
इस प्रकार इस विधि की अपनी सीमाएँ हैं, गुण हैं तथा दोष हैं। फिर भी विद्यालय को चाहिए कि पूरे सत्र में एक या दो योजनाएँ अवश्य ली जाएँ और इस विधि के गुणों का लाभ उठाया जाये।
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