राजनीति विज्ञान / Political Science

राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिक पक्ष | scientific side of political science in Hindi

राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिक पक्ष | scientific side of political science in Hindi
राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिक पक्ष | scientific side of political science in Hindi
राजनीति विज्ञान की वैज्ञानिक पक्ष का वर्णन करो।

यद्यपि हमारे अध्ययन के विषय को ‘राजनीति विज्ञान’ नाम सम्बोधित किया जाता है, लेकिन इस विषय को विज्ञान मानने के विषय में राजनीति विज्ञान के विद्वानों में से ही बहुत अधिक मतभेद है। एक ओर बक्ल, काम्टे, मेटलैण्ड, एमास, बियर्ड, केटलिन, मोस्का, ब्रोगन, वर्क, आदि विद्वान हैं जो राजनीति विज्ञान को विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं करते, तो दूसरी ओर अरस्तू इसे सर्वोत्तम विज्ञान (Master Science) और बर्नार्ड शॉ इसे मानवीय सभ्यता को सुरक्षित रख सकने वाला विज्ञान कहते हैं। अरस्तू के अतिरिक्त बोदां, हाब्स, माण्टेस्क्यू, ब्राइस, ब्लंटशली, जैलीनेक, डॉ. फाइनर, लास्की, आदि अन्य विद्वान भी इसे विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं।

गार्नर के शब्दों में, विज्ञान की ठीक परिभाषा देते हुए कहा जा सकता है कि “एक विज्ञान किसी विषय से सम्बन्धित उस ज्ञान राशि को कहते हैं जो विधिवत् पर्यवेक्षण, अनुभव एवं अध्ययन के आधार पर प्राप्त की गयी हो और जिसके तथ्य परस्पर सम्बद्ध तथा वर्गीकृत किये गये हों।” चैम्बर्स डिक्शनरी में विज्ञान की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि “विज्ञान वह विज्ञान है जो पर्यवेक्षण और प्रयोग पर आधारित हो, भली-भांति परीक्षित तथा क्रमबद्ध हो और सामान्य सिद्धान्तों में समाहित हों।” चैम्बर्स डिक्शनरी, हर्नशॉ और थामसन, आदि विद्वानों द्वारा भी विज्ञान की परिभाषा इसी प्रकार से दी गयी है।

उपर्युक्त परिभाषाओं के सन्दर्भ में जब राजनीति विज्ञान पर विचार किया जाता है, तो यह नितान्त स्पष्ट हो जाता है कि राजनीति विज्ञान एक विज्ञान है। राजनीति विज्ञान के विज्ञान होने के पक्ष में अग्र तथ्य दिये जा सकते हैं।

( 1 ) राजनीति विज्ञान का ज्ञान क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित – विज्ञान का सर्वप्रथम लक्षण यह होता है कि उसका समस्त ज्ञान क्रमबद्ध रूप में होना चाहिए। यह लक्षण राजनीति विज्ञान में पूरे-पूरे तौर पर विद्यमान है। राजनीति विज्ञान राज्य सरकार, अन्य राजनीतिक संस्थाओं, धारणाओं व विचारों का क्रमबद्ध ज्ञान प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए, राजनीति विज्ञान में राज्य के भूतकालीन स्वरूप के आधार पर ही वर्तमानकालीन स्वरूप का अध्ययन किया जाता है। इसी प्रकार राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन उनकी प्रवृत्तियों के आधार पर विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करके किया जाता है। विषय में अन्तर्गत पाये जाने वाले क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित अध्ययन के ये निश्चित प्रमाण हैं।

(2) अध्ययन सामग्री की प्रकृति में स्थापित एवं एकरूपता – अध्ययन सामग्री के आधार पर ही राजनीति विज्ञान को विज्ञान मानने से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसकी अध्ययन सामग्री में कुछ सीमा तक स्थायित्व एवं एकरूपता विद्यमान है। यद्यपि मानव व्यवहार में जड़ पदार्थ जैसी एकरूपता नहीं पायी जाती है, फिर भी यह कहा जा सकता है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में मनुष्य का राजनीतिक आचरण एक निश्चित प्रकार का ही होगा। लार्ड ब्राइस के शब्दों में, “मानव प्रकृति की प्रवृत्तियों में एकरूपता तथा समानता पायी जाती है, जिसकी सहायता से हम यह पता लगा सकते हैं कि एक ही प्रकार के कारणों से प्रभावित होकर मनुष्य बहुधा समान प्रकार के कार्य ही करता है।”

( 3 ) सर्वमान्य तथ्य – राजनीति विज्ञान में कुछ सर्वमान्य तथ्य अवश्य ही हैं। आचार्य कौटिल्य ने अपने ‘अर्थशास्त्र में इसी प्रकार के सर्वमान्य का प्रतिपादन करते हुए लिखा है, “यदि दण्डका दुरुपयोग किया जाय, तो गृहस्थों की तो बात ही क्या, वानप्रस्थी और सन्यती लोग भी क्रुद्ध हो जाते हैं और विद्रोह कर बैठते हैं। इसके विपरीत, दण्ड शक्ति का ठीक रूप में प्रयोग करने पर जनता में सर्वत्र धर्म का राज्य रहता है।” इसी प्रकार कुछ अन्य बातों पर भी सभी यथा-लोकसेवाओं के सदस्य स्थायी आधार पर नियुक्ति किये जाने चाहिए तथा वे तटस्थ और निष्पक्ष होने चाहिए, न्यायपालिका स्वतन्त्र और निष्पक्ष होनी चाहिए असमानना, जातिवाद, निरक्षरता और अत्यधिक निर्धनता प्रजातन्त्र के लिए बुरी है। इसके अतिरिक्त राजनीति विज्ञान में मतैक्य का जो अभाव है उसका कारण विषय का अवैज्ञानिकत्व नहीं वरन् देश काल के अनुसार परिवर्तित होने वाली मानवीय प्रकृति और सम्बन्धित विचारकों की भावनाओं का भेद है।

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Anjali Yadav

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