राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम के समाजशास्त्रीय एवं मनोवैज्ञानिक आधार पर प्रकाश डालिए।
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राजनीति विज्ञान का समाजशास्त्रीय आधार:-
राजनीति विज्ञान का अध्ययन मुख्यतः मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन है जिसमें लोक सर्वोपरि होता है। राजनीति विज्ञान के अध्ययन के पाठ्यक्रम में लोकतांत्रिक समाज के अनुकूल भावी नागरिक तैयार करने हेतु पाठ्यक्रम का चुनाव किया जाता है। बाइनिग के अनुसार, राजनीति विज्ञान की अध्ययन सामग्री वह आधार प्रस्तुत करती है जिसके द्वारा छात्रों की वर्तमान विश्व को समझने, उन्हें विशिष्ट कुशलताओं व आदतों का प्रशिक्षण देने तथा उसमें ऐसी अभिवृत्तियों एवं आदर्शों का विकास करने में सहायता मिलती है जिससे कि वे लोकतांत्रिक समाज के कार्यकुशल एवं प्रभावी नागरिक बन सके।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा प्रस्तुत शिक्षा क्रम में राजनीति विज्ञान अध्ययन के पाठ्यक्रम का सही समाजशास्त्रीय आधार स्पष्ट किया गया है। राजनीति विज्ञान के अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य बालक को उसके विगत तथा वर्तमान भौगोलिक एवं सामाजिक पर्यावरण से अवगत कराना है। राजनीति विज्ञान के शिक्षण के प्रभावी कार्यक्रमों द्वारा छात्रों में जन-जीवन की विधियों तथा वर्तमान भौगोलिक एवं सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक संस्थाओं की कार्य प्रणाली में तीव्र रूचि विकसित करनी चाहिए। इसके साथ बालकों में मानवीय सम्बन्धों सामाजिक मूल्यों एवं अभिवृत्तियों की अन्तर्दृष्टि का विकास किया जाना चाहिए ये सब भावी विकास मान नागरिकों को समुदाय राज्य देश तथा विश्व के मामलों में प्रभावी रूप से भाग लेने योग्य बनाते हैं अतः राजनीति अध्ययन के इस समाजशास्त्रीय आधार पर दृष्टि रखना वांछनीय है।
राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम का मनोवैज्ञानिक आधार:-
आधुनिक शैक्षणिक एवं मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों के फलस्वरूप अब शिक्षा बाल केन्द्रित हो गई है। पाठ्यक्रम निर्माण के विषय वस्तु के तार्किक संगठन एवं प्रस्तुतीकरण के स्थान पर अब मनोवैज्ञानिक क्रम अधिक प्रभावी माना जाने लगा है। बाल मनोविज्ञान की आवश्यकता के आधार पर सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रम का निर्माण समन्वित उपागम से किया जाना अब अधिक माना जाता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से माध्यमिक शिक्षा आयोग में पाठ्यक्रम निर्माण के दो आधार बताए गए है।
पहला आधार पाठ्यक्रम को परम्परागत विधियों के अलगाव के रूप में न मानकर उसे विद्यालयों के समस्त शैक्षिक एवं सहशैक्षिक क्रियाकलापों माध्यम से प्राप्त अनुभवों को समग्र रूप से माना जाना चाहिए।
दूसरा आधार छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान रखते हुए पाठ्यक्रम को गत्यात्मक तथा वैविध्यपूर्ण रखना है। इसके अतिरिक्त कक्षा स्तर एवं आयु वर्ग विशेष की योग्यता एवं क्षमता के अनुसार पाठ्यक्रम का संगठन किया जाना मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का ही परिचायक है। बालकेन्द्रित शिक्षा की कल्पना में पाठ्यक्रम का मनोवैज्ञानिक आधार निहित है।
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