राजनीति विज्ञान के लिए एन.सी.एफ. 2005 में क्या कहा गया है।
राजनीति विज्ञान-
1. नागरिक शास्त्र को राजनीतिशास्त्र में तब्दील कर दिया जाए, तथा इतिहास को बच्चे के अतीत तथा नागरिकता की पहचान की अवधारणा पर प्रभाव डालने वाले विषय के रूप में पहचाना जाए।
2. शिक्षकों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए ढाँचागत और भौतिक सामग्री को न्यूनतम उपलब्धता और दैनिक योजना को लचीला बनाना आवश्यक है।
3. बच्चों को सीखने वालों के रूप में पहचानने वाली स्कूली संस्कृति हर बच्चे की रूचियों और उसकी संभावनाओं को और अधिक समृद्ध करती है।
4. ऐसी विशिष्ट गतिविधियों का आयोजन जिसमें सक्षम और विभिन्न अक्षमताओं को झेल रहे बच्चे भी भाग ले सकें। यह सबके सीखने के लिए एक अनिवार्य शर्त है।
5. लोकतांत्रिक तरीको द्वारा बच्चों में स्व-अनुशासन का विकास हमेशा ही प्रासंगिक रहा है।
6. ज्ञान की प्रक्रिया में समुदाय के लोगों को शामिल किए जाने से स्कूल और समूदाय में साझेदारी होने लगती है।
7. सीखने के लिए जरूरी संसाधनों के बारे में इन संदर्भों में पुनर्विचार की आवश्यकता पाठ्यपुस्तकों में अवधारणाओं की व्याख्या गतिविधियाँ, समस्याएँ और अभ्यास इस तरह से दिए गए हों कि वे उससे संबंधित चिंतन और समूह कार्य को बढ़ावा देने वाले हों।
8. विषयवस्तु में अवधारणात्मक समझ पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है बजाए इसके कि बच्चों के सामने परीक्षा के लिए रटने वाली सामग्री का अंबार खड़ा कर दिया जाए। इससे उनमें सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र तथा आलोचनात्मक रूप से सोचने का अवसर मिलेगा।
9. प्रमुख राष्ट्रीय चिंताओं; जैसे- लैंगिक न्याय, मानव अधिकार और हाशिए के समूहों तथा अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता को विकसित किए जाने की जरूरत है।
10. सहायक पुस्तकें, कार्यपुस्तिकाएँ, शिक्षकों के लिए मार्गदर्शिकाएँ आदि अभिनव चिंतन और नयी दृष्टियों पर आधारित हों।
11. शिक्षा को इकतरफा रूप से प्राप्त की जाने वाली वस्तु की जगह इसमें दोतरफा संवाद बनाने के लिए मल्टीमिडिया और सूचना एवं संचार तकनीकी के साधनों का उपयोग।
12. स्कूल का पुस्तकालय विद्यार्थियों, शिक्षकों और समुदाय के लोगों के लिए ज्ञान को गहरा करने विस्तृत संसार के साथ जोड़ने का कार्य करें।
13. शिक्षा का माहौल को बनाने के लिए स्कूल सारणी की विकेंद्रीकृत योजना तथा दैनिक सारणी और शिक्षक को पेशेवर कार्यों के लिए स्वायत्तता अनिवार्य हैं।
14. पाठ्यचर्या के दस्तावेज द्वारा प्रस्तावित उपागम ज्ञान के क्षेत्रों की विशिष्ट सीमाओं को पहचानता है और साथ ही ‘पानी’ जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों के लिए समाकलन पर जोर देता है।
15. समूहों की दृष्टि से समाज विज्ञान के अध्ययन का प्रस्ताव करते हुए नजरिए में एक पूरी तब्दीली की सिफारिश की गई है। सामाजिक विज्ञान के सारे पहलुओं में जेंडर संदर्भ में न्याय और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के मसलों को लेकर जागरूकता तथा अल्पसंख्यक संवेदनशीलता के प्रति सजगता होनी चाहिए।
16. नागरिक शास्त्र को राजनीति विज्ञान के रूप में ढ़ालना चाहिए और बच्चों के अतीत और नागरिक अस्मिता की अवधारणा पर इतिहास के प्रभाव के महत्त्व को पहचानना चाहिए।
17. व्यवस्थागत सुधार का एक प्रमुख लक्षण है, गुणवत्ता की चिंता जिसका मतलब हुआ कि संस्था में अपनी कमजोरियों की पहचान कर नयी क्षमताओं का विकास करते हुए खुद को सुधारने की क्षमता हो।
18. यह वांछनीय है कि समान स्कूल व्यवस्था विकसित की जाए ताकि देश के अलग-अलग क्षेत्रों की तुलनीय गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सकें क्योंकि जब अलग अलग पृष्ठभूमियों के बच्चे साथ-साथ पढ़ते हैं तो इससे शिक्षण की गुणवत्ता में विकास होता है और स्कूल का माहौल समृद्ध होता है।
19. आगामी योजना के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की शुरूआत स्कूलों से करते हुए, संकुल तथा खण्ड स्तर पर हो। बाद में इनका समेकन करते हुए विस्तृत रूपरेखा बनाई जा सकती है। यह आगे जिला स्तर पर विकेन्द्रीकरण योजना नीति बनाने में मदद कर सकती है।
20. प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के सहयोग से सार्थक अकादमिक योजना का विकास।
21. पठन-पाठन के संदर्भ में प्रत्येक स्कूल के साथ सतत अन्तः क्रिया की जानी चाहिए ताकि गुणवत्ता का निरीक्षण किया जा सकें।
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