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राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में सम्बन्ध

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राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में सम्बन्ध

श्री गुरूमुख निहालसिंह के अनुसार, “प्रारम्भिक दिनों में अर्थशास्त्र को राजनीति विज्ञान की एक शाखा माना जाता था। उसका विषय राज्य के लिए राजस्व प्राप्त करना था। इसी कारण इसे ‘घरेलू अर्थशास्त्र’ की अपेक्षा “राजनीतिक अर्थशास्त्र” कहा जाता था। राजनीतिक अर्थशास्त्र शब्द यह प्रकट करता था कि अर्थशास्त्र राजनीति विज्ञान के अधीन है।” मैकियावेली, लॉक, मेंडीसन, जेम्समिल, बैंथम, जे. एस. मिल, आदि विद्वानों ने आर्थिक एवं राजनीतिक विषयों की एक साथ व्याख्या की है। आधुनिक राज्य लोक कल्याणकारी राज्य है, जिसके मुख्य कार्य आर्थिक हैं।

अर्थशास्त्र का सम्बन्ध समाज तथा व्यक्ति के आर्थिक क्रियाकलापों से है। इसे ‘धन’ का विज्ञान भी कहा जाता है। राजनीति विज्ञान का अर्थशास्त्र से घनिष्ठ सम्बन्ध हैं प्राचीन यूनानी विचारक अर्थशास्त्र को एक स्वतंत्र विषय नहीं मानते थे, उसका अध्ययन राजनीति विज्ञान के अंग के रूप में करते थे। इसलिए वे अर्थशास्त्र को ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ कहते थे। उदाहरण के लिए अरस्तू की ‘राजनीति’ नामक पुस्तक का उल्लेख किया जा सकता है। प्राचीन भारतीय विचारक भी इसी मान्यता के थे, मनु द्वारा रचित ‘मनुस्मृति’ में राजनीतिक विचारों के साथ आर्थिक विचार भी मिलते हैं, कौटिल्य ने तो अपनी राजनीति सम्बन्धी पुस्तक का नाम ही ‘अर्थशास्त्र’ रखा।

19 वीं सदी के महान् दार्शनिक कार्ल माक्स ने अर्थशास्त्र को राजनीति का अंग मानने के बजाय राजनीति को अर्थशास्त्र का एक पहलू मात्र माना। आधुनिक अर्थशास्त्र के जन्मदाता ‘एडम स्मिथ’ ने अपनी पुस्तक का नाम ‘वेल्थ ऑफ नेशन्स’ रखा तथा अर्थशास्त्र को जनता एवं राज्य को समृद्ध करने वाला शास्त्र बताया। आज बहुत से देशों में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के अध्ययन की एक ही संस्था है, जैसे- लन्दन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइन्स’, केनेडियन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइंस आदि।

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Anjali Yadav

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