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राष्ट्रीयता के गुण एंव दोष | Merits and Demerits of Nationalism
राष्ट्रीयता के गुण (merits of Nationalism)
राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद के प्रमुख गुण निम्नलिखित है-
1. देशप्रेम की प्रेरणा- राष्ट्रीयता की भावना लोगों में देशप्रेम का भाव उत्पन्न करता है और उन्हें देश के हित के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित करती है। देशप्रेम के कारण ही व्यक्ति बड़े-से-बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर हो जाता है।
2. राजनीतिक एकता की स्थापना में योगदान- राष्ट्रीयता की भावना राजनीतिक एकता की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान देती है। राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही विभिन्न जातियों व धर्मों के लोग एकता के सूत्र में संगठित हो जाते हैं और एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करते हैं।
3. राज्य का स्थायित्व- राष्ट्रीयता राज्यों को स्थायित्व भी प्रदान करती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि बीसवी शताब्दी में अनेक ऐसे राज्य जिनका निर्माण राष्ट्रीयता के आधार पर न होकर जाति व भाषा के आधार पर हुआ था, वे अल्पकालीन ही रहे। इसके विपरीत राष्ट्रीय चेतना के आधार पर निर्मित राज्य अधिक स्थायी सिद्ध हुए हैं।
4. उदारवाद को प्रोत्साहन- राष्ट्रीयता आत्म-निर्माण के सिद्धन्त को मान्यता देती है। इसलिए राष्ट्रीय मानवीय स्वतन्त्रता को स्वीकार कर उदारवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।
5. सांस्कृतिक विकास- राष्ट्रीयता देश के सांस्कृतिक विकास को प्रोत्साहित करती है। प्राचीन यूनान के महाकवि होमर, फ्रांस के दान्ते तथा वोल्तेयर, इंग्लैण्ड के टेनीसन, शैले, टामसपेन, जर्मनी के हेगल आदि ने राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही साहित्यक से प्रेरित होकर ही साहित्यिक रचनाएँ की है।
6. आत्म-सम्मान की भावना- राष्ट्रीयता व्यक्ति में आत्म-सम्मान की भावना उत्पन्न करती है और उसे आत्म-गौरव की रक्षा करने की प्रेरणा देती है।
7. विश्वबन्धुत्व की पोषक- राष्ट्रीयता व्यक्ति के दृष्टिकोण को व्यापक बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री और सहयोग को प्रोत्साहित करती है। इस प्रकार राष्ट्रीयता विश्वबन्धुत्व की पोषक भी है।
8. आर्थिक विकास में योगदान- राष्ट्रीयता राष्ट्र के आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करती है। राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर ही व्यक्ति अपने राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनाने के लिए एकजुट होकर कार्य करते हैं।
राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद के दोष (Demerits of Nationalism)
1. विश्व-शान्ति के लिए घातक- संकीर्ण और उम्र राष्ट्रीयता विश्व शान्ति के लिए घातक होती है। उग्र राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर बीसवीं शताब्दी में जर्मनी ने दो विश्व युद्धों का श्रीगणेश किया और सम्पूर्ण मानव जातिको खतरे में डाल दिया।
2. सैन्यवाद और युद्ध को प्रोत्साहन- राष्ट्रीयता का उग्र रूप सैन्यवाद और युद्ध को प्रोत्साहन देता है। इतिहास साक्षी है कि उम्र राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ही फ्रांस तथा जर्मनी अनेक बार युद्धरत हुए और दोनों देशों को जन-धन की अपार क्षति उठानी पड़ी।
3. साम्राज्यवाद का उदय- उम्र राष्ट्रीयता की भावना देशवासियों को अहंकारी तथा स्वार्थी बना देती है और वे अपने राष्ट्र को ही विश्व के रूप देखना चाहते हैं। इस मनोवृत्ति का परिणाम साम्राज्यवादी विस्तार के रूप में प्रकट होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में साम्राज्यवाद के विकास का एक प्रमुख कारण राष्ट्रवाद भी था।
4. छोटे-छोटे राज्यों का संगठन- उग्र राष्ट्रीयता की से प्रेरित होकर कभी कभी छोटे-छोटे राज्य बन जाते हैं और उनमें आपसी द्वेष के कारण देश की एकता को खतरा हो जाता है। मध्यकाल में यूरोप में अनेक छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना उम्र राष्ट्रीयता का ही परिणाम थी।
5. व्यक्ति का चरित्रिक पतन- संकीर्ण राष्ट्रीयता व्यक्ति को स्वार्थी और अहंकारी बना देती है। वह इतना पंतित हो जाता है कि मानव जाति को समूल नष्ट करने की दिशा में प्रवृत्त हो जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी ने संकीर्ण राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर यहूदियों पर भयानक अत्याचार किए थे।
6. अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में बाधक- राष्ट्रीयता की मान्यता है-एक राष्ट्र एक राज्य, लेकिन राष्ट्रीयता का यह सिद्धान्त अन्तराष्ट्रीयता के प्रतिकूल हैं। राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही विभिन्न राष्ट्रों का दृष्टिकोण अन्य राष्ट्रों के प्रति संकीर्ण तथा उपेक्षित-सा हो जाता है, जिसके फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और सद्भावना का विकास अवरुद्ध हो जाता है और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होने लगती है।
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